ग़ुर्बत की सतह

हिंदूस्तानी अवाम की सब से बड़ी ट्रेजेडी ये है कि वो मुनाफ़िक़ क़ाइदीन और नाअहल क़ियादत के चेहरे ग़ौर से देखते ही नहै। इस के नतीजा में हुक्मराँ तबक़ा भी हिंदूस्तान की ग़रीब आबादी की तशरीह मनमानी तरीक़ा से अंजाम देता है। मंसूबा बंदी कमीशन के सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल करदा हलफ़नामा में ग़रीबों की सतही ज़िंदगी का जो मुवाज़ना किया गया है वो एक ज़िम्मेदार इदारा की बेएतिबारी का मुज़ाहरा कहलाता है। हलफ़नामा में ये बताया गया है कि एक शख़्स को सिर्फ उस वक़्त ग़रीब क़रार दिया जा सकता है अगर इस का माहाना ख़र्च 965 रुपय से कम हो यानी यौमिया 32 रुपय शहरी इलाक़ा का फ़र्द ग़रीब होगा और देही इलाक़ा का फ़र्द माहाना 781 रुपय ख़र्च करता है तो इस की यौमिया आमदनी 26 रुपय होगी। ग़रीबी की सतह को इस क़दर नीचे घटा देने की तरकीब हिंदूस्तान की ग़ुर्बत का शिकार आबादी के साथ एक बहुत बड़ा मज़ाक़ है। गुज़श्ता 6 दहों से मुलक का अमीर तरीन शख़्स अमीर बन रहा है और ग़रीब शख़्स ग़रीब तरीन होरहा ही। ये इस लिए है क्योंकि सरकार की पालिसीयों ने आम आदमी के दस्तूरी हक़ को भी छीन लिया है। लम्हा फ़िक्र ये है कि हिंदूस्तान की तरक़्क़ी के बावजूद मलिक का ग़रीब आदमी बेहतर ज़िंदगी गुज़ारने के हक़ से महरूम है। प्लानिंग कमीशन की जानिब से ग़ुर्बत के लिए 32 रुपय की हद मुक़र्रर करके एक बहुत बड़ा चैलेंज खड़ा करदिया गया है। मुख़्तलिफ़ गोशों से तन्क़ीदों के बाद मंसूबा बंदी कमीशन ने सतह ग़ुर्बत की मुतनाज़ा तशरीह से ख़ुद को लाताल्लुक़ करलिया लेकिन ये एक हक़ीक़त है कि आलमी सतह पर मईशत का मुक़ाबला करने वाले मलिक को अपने अवाम के लिए मआशी सलामती फ़राहम करने में कंजूसी का मुज़ाहरा करने की ज़रूरत नहीं थी। तरक़्क़ी याफ़ता ममालिक की आबादी एक अरब से ज़्यादा है और इस की आमदनी आलमी मजमूई आमदनी का इसी फ़ीसद है जबकि तरक़्क़ी पज़ीर ममालिक की आबादी पाँच अरब और इस की आमदनी आलमी मजमूई आमदनी का 20 फ़ीसद है ।कई रियास्तों ने प्लानिंग कमीशन के ग़रीबी की मुक़र्ररा हद की मुख़ालिफ़त की है और अवामी निज़ाम तक़सीम के ज़रीया सरबराह की जाने वाली अशीया को ग़रीबी की सतह से नीचे ज़िंदगी गुज़ारने वालों से हट कर सरबराह किया है। टामलनाडो, छत्तीसगढ़, आंधरा प्रदेश और दीगर कई रियास्तों में अवामी निज़ाम तक़सीम के ज़रीया राशन की सरबराही को ग़ुर्बत के पैमाना की जांच के बाद ही ज़मुरा बंदी के ज़रीया यक़ीनी बनाया जा रहा है। हर घर में एक राशन कार्ड होता है। प्लानिंग कमीशन ने ग़रीबी की जिस तरह की तशरीह की है ये रियास्तों ख़ासकर आंधरा प्रदेश के लिए काबिल-ए-क़बूल नहीं होसकती क्योंकि यहां सतह ग़ुर्बत से नीचे ज़िंदगी गुज़ारने वालों का ढांचा वसीअ तर एहमीयत रखता ही। हर एक को ग़िज़ा की फ़राहमी को यक़ीनी बनाने के ले इक़दामात करने हूँ तो हुकूमतों को फ़राख़दिलाना पालिसीयां बनानी होती हैं। देही इलाक़ों में अवाम की बड़ी तादाद यौमिया उजरत के बावजूद एक वक़्त का बेहतर खाना खाने से क़ासिर ही। क़ौमी सतह पर ग़िज़ाई सलामती की बातें करने वालों के लिए भी ये बात गौरतलब है कि यौमिया कम उजरत हासिल करने वाले ख़ानदानों की ग़िज़ाई, सलामती को किस तरह यक़ीनी बनाया जाई। ये भी अफ़सोसनाक बात है कि हिंदूस्तान ग़िज़ाई अजनास की तैय्यारी में सब से बड़ा मुलक है लेकिन इस की आबादी की अक्सरीयत ग़िज़ाई सलामती को तरस रही है। इस की वजह क़ौमी सतह पर नाक़िस मंसूबा बंदी या ग़िज़ाई सलामती को यक़ीनी बनाने में ख़राब पालिसीयां ज़िम्मेदार हैं। अजनास के ज़ख़ीरा के लिए मुनासिब गोदामों की कमी से भी ग़िज़ाई अजनास ख़राब हो रहा ही। ये बात सदमा ख़ेज़ है कि एक तरक़्क़ी पज़ीर मुल्क में 10 मुलैय्यन टन अजनास ज़ाए होते हैं तो इस का असर ग़रीब पर पड़ता ही। इफ़रात-ए-ज़र की बढ़ती तादाद की फ़िक्र करने के बजाय हुकूमत ने अपनी पालिसीयों को ग़ैर मुवाफ़िक़ बनाकर ग़रीबों के लिए मुश्किलात पैदा करदी हैं। अफ़सोस इस बात का है कि हिंदूस्तान, तरक़्क़ी याफ़ता ममालिक की तक़लीद करता है। हिंदूस्तान की हुकूमत आज़ाद कारी, डी रैगूलेशन और पराईओटाइज़ीशन यानी आलिम ग़ैरियत का दावा तो करती है लेकिन जब अमल आवरी या मुज़ाहरा की बात आती है तो कारकर्दगी में दिलचस्पी नहीं दी जाती, आज आलिम ग़ैरियत की वजह से हिंदूस्तान में जो मसाइल पैदा हुए हैं इस में बेरोज़गारी, समाजी नापायदारी और सयासी अदम इस्तिहकाम जैसी कैफ़ीयत पैदा हो रही ही। आम आदमी की मियार-ए-ज़िंदगी बेहतर बनाने में नाकाम हुकूमत अब मलिक के अवाम की ग़ुर्बत की सतह को एक मज़हकाख़ेज़ अंदाज़ में पेश करे तो इस से तनाज़आत पैदा होते हैं। प्लानिंग कमीशन के नायब सदर नशीन मोंटेक सिंह अहलुवालिया ने वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह से मुलाक़ात करके अपने हलफ़नामा की वज़ाहत की ही। सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल करदा हलफनामा ने तन्क़ीदों का महाज़ खोल दिया है। महिकमा मंसूबा बंदी कमीशन के ओहदेदारों ने ग़ुर्बत से मुताल्लिक़ प्रोग्रामों को बेहतर बनाने के लिए जो पालिसी बनाई है वो नाक़ाबिल अमल है। ग़ुर्बत के पैमाना को मौजूदा हालात के तनाज़ुर में बनाना चाहिये। मुल्क में ज़्यादा से ज़्यादा अफ़राद को ग़िज़ाई सलामती की फ़राहमी को यक़ीनी बनाया जाय तो इस से ग़ुर्बत के तहत चलाए जाने वाले प्रोग्रामों के मक़ासिद पर भी तवज्जा दीनी चाआई। अगर मंसूबा बंदी का तैय्यार करदा ढांचा अवाम के लिए मज़ाक़ बन जाय तो नाक़िस हुक्मरानी की ये एक अबतर मिसाल होगी।