ज़बान-ओ-अदब के समाज पर गहरा असर

देगलूर, 13 फरवरी: बज़मे तनवीर अदब एजुकेशनल सोशल वेलफ़ेर सोसाइटी के ज़ेरे एहतिमाम फ़रोग़ कौंसल बराए उर्दू दिल्ली और बलदिया देगलूर की मदद से एक बड़ा जुलूस, जश्न उर्दू निकाला गया। ये जुलूस ईदगाह मैदान से मौलाना अबूलकलाम आज़ाद उर्दू हाई स्कूल‍ और‌ जूनियर‌ कॉलेज तक लाया गया। जिस में 2500 तलबा‍ -ओ- तालिबात ने कसीर तादाद में हिस्सा लिया।

तलबा‍ -ओ- तालिबात के नारों की गूंज ने लोगों को हैरत में डाल दिया और कहा कि उर्दू ज़ुबान हमारी ज़बान, शीरीं ज़बान उर्दू ज़बान, मराहटी की सहेली उर्दू ज़बान जैसे नारा लगा रहे थे। इस जुलूस में सैक्ड़ों मुअल्लिमीन‌ और मुअल्लिमात ने हिस्सा लिया। बज़मे तनवीर अदब के सदर क़ाज़ी सय्यद इमदाद अली ख़तीब आज़म मोतमिद सय्यद क़ासिम मसाजिद इंजीनियर‌ सय्यद लायक़ अली कन्वीनर मौलाना आज़ाद के साबिक़ा मुदर्रिस मुहम्मद ज़मीरुद्दीन पटेल जो जुलूस के मोरचे पर कड़ी नज़र रखे हुए थे।

इस के बाद मौलाना आज़ाद उर्दू हाई स्कूल में एक समिनार रखा गया। जिनका उनवान था इंसान की ज़हनी नशोनुमा में मादरी ज़बान का हिस्सा था। जिसमें से 58 मक़ाला जात मौसूल हुए। ग्रुप अव्वल से जनाब शाबान बेदार नाज़िम हुसैन साहब, आलिम-ओ-फ़ाज़िल बी ए साल दोम तौहीद उर्दू स्कूली भय विन्दी महाराष्ट्रा में मुहतरमा सिद्दीक़ी रिहाना अबदुलसत्तार बी ए बी एड गोंडी मुंबई महाराष्ट्रा और ग्रुप 8 से जनाब मुहम्मद शकीब सिद्दीक़ी महमूद सिद्दीक़ी भोपाल, जनाब मसऊद याफ़ई बिन अबदूल्लतीफ़ चाउश, जम्हूर उर्दू जूनिय‌र कॉलेज ओ दीगर जो मौलाना आज़ाद जूनियर‌ कॉलेज के लेक्चर्र असदुल्लाह हाश्मी के भांजे हैं।

इन तमाम लोगों को मोमिन्टो शाल गुलपोशी-ओ-इनामात से नवाज़ा गया। इस के बाद मुख़्तलिफ़ शुरका में मौलाना शाहिद क़ासमी और डा. इमाम, मौलाना अबदुर्रशीद नदवी, डा. सलीम मुहीउद्दीन और ख़ुसूसी मुक़र्रर मौलाना नदीम सिद्दीक़ी सदर जमइयतुल‌उलमा महाराष्ट्रा और डा. सय्यद ज़हीर क़ाज़ी सदर अंजुमन इस्लाम मुंबई जैसे इल्म के पैकर के लिए अपनी तक़ारीर के ज़रीये कहा कि किसी भी ज़बान का अदब इंतिहाई हमागीर होता है और समाजी ज़हन पर इस के असरात इंतिहाई अहम‌ होते हैं।

अदब का रुख़ दरअसल लोगों के ज़हनों का रुख़ मुतय्यन करता है। बाज़ारी अदब, उरयां, लिटरेचर, घटिया तहरीरें ज़हन-ओ-दिमाग़ को पस्त ख़्यालात सतह सोच का असीर बनादेती हैं। इंसान की फ़िक्र का दायरा पेट और जिन्स के ज़ंजीरों में बंध जाता है और वो हर चीज़ को इस नुक़्ता-ए-नज़र से देखने और समझने लगता है।

डा. ज़ुबेर अहमद क़मर ने कहा कि अदब में नाज़ुक ख़्यालात फ़िक्रमंदी और बारीक त्रिमानी-ओ-मुतालिब की तर्जुमानी होती है। ये सारी बातें अगर इंसान की मादरी ज़बान में होतो फ़ित्री सलाहियतों को निखर जाने के मौक़े ज़्यादा खुलते हैं। अदब तहक़ीक़ किताबों , इल्मी तसनीफ़ात और इन्किशाफ़ी तहरीरों को भी शामिल है। मुहम्मद अनवर इस्माईल मुदर्रिस नवीद अंजुम ने गुलपोशी की। अय्याज़ सय्यद क़ासिम, मक़बूल अहमद लेक्चर्र, जोशी मुहम्मद आबादी ( मरहूम ) की अहलिया ने तरग़ीबी इनाम शाहजहां को दिया है।