ज़बान पर नाम ए नामी जब भी आया है महमद स.व. का

रबीउल अव्वल का बहार आफ़रीं (बहूत अछ्छा ) महीना था, दो शंबा(सोम्वार) का मुबारक दिन था, सुबह सादिक़ का सुहाना समां था कि हमारे आक़ा, महबूब ए ख़ुदा, अहमद ए मुजतबा, मुहम्मद मूस्तफ़ा स.व. पैदा हुए।

सितारों ने झुक कर रूख-ए-अनवर का बोसा लिया, नसीम‍ ए‍ सहर मचल कर जिस्म अतहर पर क़ुर्बान हुई, कलीयों ने सदाए मर्हबा बुलंद की, फूलों ने महक कर विलादत बा सआदत(मूबारक जन्म) की ख़बर अतराफ़-ए‍आलम(वीश्व के कोने कोने) में फैलाई।
शाम के महेल नूर ए नबुव्वत से जगमगा उठे, फ़ारीस के क़सरे शाही के चौदह कंगरे(14 रूम) रोब ए रिसालत से गिर पड़े,
आतीश कदा-ए-ईरान की हज़ार साला आग शरम‌ से पानी पानी हो गई और बूहैरा‍ ए‍ तीब्रीया(तीब्रीया संमूद्र) का पानी ज़मीन की तहों में रुपोश हो(छूप) गया।

रबी उलअव्वल का महीना वो बाबरकत और पुर अज़मत(अज्मतों से भरा) महीना है, जिस में हक़ तआला जल्ल मज्दूहू ने(पर मात्मा) अपनी रबूबियत-ओ-उलूहियत(इश्वरी) को आश्कारा(जाहीर) करते हुए अपने रहीमी-ओ-करीमी का सब से अज़ीम मुज़ाहरा(बडा प्रदर्शन) फ़रमाया। यही वो माह-ए-मुबारक है, जिस में इस हादी आलम ने(विश्व को सीधा रास्ता दिखाने वाले) सफ़ा-ए-हस्ती पर क़दम रखा(जन्म पाया), जिस पर रिसालत-ओ-नबुव्वत का सिलसिला ख़तन हो गया।

यही वो माह ए रहमत है, जिस में हक़तआला ने अपने हबीब को रहमतू ल्लीलआल‌मीन के मंसब जलील(बडे ओहदे) पर फ़ाइज़ कर
के मख़लूक़ की हिदायत-ओ-रहनुमाई के लिए दुनिया में भेजा।
यही वो माह ए मुक़द्दस है, जिस में इस अज़ीम हस्ती ने आलम-ए-आब-ओ‍गुल(दूनया) में नुज़ूल इजलाल फ़रमाया(जन्म हूआ), जो ख़ालिक़-ओ-मख़लूक़ के दरमयान सही राबिता क़ायम करने का ज़रीया बना और जिस के ज़रीया इंसानियत की ख़ैर-ओ-फ़लाह और नजात के लिए नाक़ाबिल तरमीम और महफ़ूज़ दस्तूर उल-अमल और ज़ाबता-ए-हयात क़ुरआन‌-ए-पाक अता किया गया। यही वो माह रहमत-ओ-अज़मत है, जिस में हक़ को सरबूलंद और बातिल को सुरनीगों(जलील‌), ख़ैर को ग़ालिब और शर को मग़्लूब और आलमों(विश्वों) को नूर ए हिदायत से रोशन करके गुमराहियों की अंधेरियों से नजात दिलाने वाला ज़ाहिर हुआ, जिन का नाम ए नामी इस्म ए गिरामी हज़रत मुहम्मद मूस्तफ़ाए स.व. है।

ज़बां पर नाम-ए-नामी जब भी आया है मुहम्मद का
लिए होंटों ने दोनों मीम पर बोसे मुहम्मद के

हज़रत शैख़ मुहद्दिस देहल्वी लिखते हैं कि रूख ए अनवर को लैलतू लक़द्र (क्द्र् की रात) से तशबी दी गई है। बैहक़ी नक़ल करते हैं कि हज़रत हमदानी कहती हैं कि मैंने हुज़ूर स.व. के हमराह (साथ) हज किया, हुज़ूर का चेहरा-ए-अक़्दस माह-ए-कामिल(चोंदहवी का चोंद्) से बढ़ कर रोशन था कि कभी ऐसा चहरा देखने और सुनने में ना आया।

सय्यदीना हज़रत सिद्दीक़ ए अकबर रज़ी. फ़रमाते हैं कि हुज़ूर स.व. का चहरा-ए-मुबारक मिसले चांद के मुनव्वर था, जिस के गर्द (आजू बाजू) नूर का हाला(घेरा) था। काब बिन मुबारक कहते हें कि हुज़ूर स.व. की पेशानी मुबारक में जब शिकन (शीकन) पड़ती तो रूये अनवर( और भी चमकदार नज़र आता। हज़रत जाबिर रज़ी फ़रमाते हैं कि मैंने एक मर्तबा चांदनी रात में हुज़ूर स.व. को सुर्ख़ कपड़ा ओढ़े हुए देखा। मैं कभी चांद को और कभी हुज़ूर को देखता था, हुज़ूर स.व. चांद से कहीं बढ़ कर नज़र आरहे थे।

हज़रत अबू हुरैरा रज़ी. फ़रमाते हैं कि मैंने किसी चीज़ को हुज़ूर स.व. से बढ़कर बेहतर और ख़ुशतर नहीं देखा। अल्लाह ताला का इरशाद है कि आप आफ़ताब हैं रोशन करने वाले। जिस तरह आफ़ताब के नूर से कूल तारे(तमाम तारे) मुनव्वर हैं, इसी तरह अनवार जनाब रिसालत मआब से(हजरत मूहम्मद स.व.के नूर से) कया ख़ासान ए ख़ुदा, क्या अन्बीया, किया औलिया सब रोशनी हासिल करते हैं।
हुज़ूर अकरम स.व. सरापा नूर(सिर से पोँव‌ तक) हैं, जो हुज़ूर से जिस क़दर ताल्लुक़ पैदा करता है, हुज़ूर स.व. उस की इस्तेदाद के मुताबिक़ इसे मुनव्वर फ़र्मा देते हैं। हज़रत शैख़ मुहद्दिस देहलवी रहमतू ल्लाह अलैहि मदारिजू न्नूबूव्वा ( नामी कीताब) में लिखते हैं कि चहरा-ए-मुबारक हुज़ूर स.व., अनवार-ए-जमाल‍ ए‍ इलाहि का आईना है और अनवार-ए‍लामूतनाही का मज़हर(प्रकट होने का स्थान) है।
आप के जिस्म ए अतहर(पाक शरीर) के जुमला मोजीजात(चमत्कारों) में से एक मोजीजा (चमत्कार) ये भी है कि वो ख़ुशबूदार था। आप के जिस्म अतहर की ख़ुशबू इतनी नफ़ीस और दिलरुबा थी कि कोई ख़ुशबू इस का मुक़ाबला नहीं कर सकती थी।
हज़रत अनस रज़ी. फ़रमाते हैं कि हुज़ूर स.व. के जिस्म अतहर का रंग सब से हसीन था और इस की ख़ुशबू नफ़ीस थी। (तहज़ीब इबन ए असाकिर)
हज़रत मआज़ बिन जबल रज़ी. फ़रमाते हैं कि हम एक सफ़र में हुज़ूर स.व. के साथ थे, आप ने मुझे अपने क़रीब होने का हुक्म दिया। जब में क़रीब हुआ तो आप के जिस्म अक़्दस में ऐसी ख़ुशबू महसूस की, जो किसी भी कस्तूरी और अंबर में नहीं। (अलख़साइस उलकुबरा)

मूशक-ओ-अंबर से भी है बढ़ कर पसीना नूर का
है मुहीत एक एक ख़ुशबू को शमामा नूर का