हैदराबाद शहर में दर्जनों ऐसी मसाजिद हैं जो गैर आबाद हैं। उन की बेहुर्मती का सिलसिला जारी है जब कि कई मसाजिद के पाक वजूद को मिटाने और मुसलमानों की इन मसाजिद तक रसाई को रोकने के लिए रास्ते तक बंद कर दीए गए हैं। ऐसी ही मसाजिद में ज़रई यूनीवर्सिटी राजिंदर नगर के अहाता में वाक़े तीन क़दीम मसाजिद भी शामिल हैं।
जिन में दो मसाजिद अह्द क़ुतुब शाही में तामीर की गई थीं। वाज़ेह रहे कि ज़रई यूनीवर्सिटी राजिंदर नगर में कम अज़ कम 70 मुस्लिम तलबा ज़ेरे तालीम हैं जब कि तदरीसी और गैर तदरीसी अमला में ज़ाइद अज़ 30 मुलाज़मीन मुस्लिम हैं।
मसाजिद में नमाज़ों की अदाएगी की इजाज़त ना होने के बाइस उन मुस्लिम मुलाज़मीन और तलबा को नमाज़ों की अदाएगी के लिए यूनीवर्सिटी के बाहर जाने पर मजबूर होना पड़ रहा है। याद रहे कि क़ुतुब शाही दौर में तामीर कर्दा दो मसाजिद में से एक इंतिहाई शिकस्ता हो गई है जब कि दूसरी मस्जिद जो यकख़ाना की है अच्छी हालत में है।
इसी तरह 3 मार्च 1977 में इस यूनीवर्सिटी में एक पाँच कमानों वाली मस्जिद का अफ़ज़लुल उल्मा प्रोफेसर अब्दुल वहाब ग़ाज़ी के हाथों संगे बुनियाद रखा गया था। 5 कमानों वाली ये मस्जिद अगर्चे अब भी अच्छी हालत में है लेकिन इस पर क़ुफ़ुल पड़ा हुआ है। तीन कमानों वाली मस्जिद के करीब एक ख़ूबसूरत चोखन्डी में एक दरगाह शरीफ़ भी है लेकिन तीनों मसाजिद के साथ साथ दरगाह शरीफ़ को भी जंगली झाड़ियों से छिपा दिया गया है। दरगाह शरीफ़ की तावीज़ का मुशाहिदा करने पर बड़े ख़ूबसूरत अंदाज़ में आयात करानी कुंदा की गई हैं।
ये दरगाह पी जी हॉस्टल के करीब ही वाक़े है। अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि किसी ने भी इन मसाजिद को आबाद करने की तरफ़ तवज्जा नहीं दी। यूनीवर्सिटी के मुतअस्सिब ओहदेदार, मसाजिद को आबाद करने में रुकावट बने हुए हैं। कम अज़ कम इस मुआमले में रियासती वज़ीर औक़ाफ़ अक़लीयती बहबूद अहमद उल्लाह को मुदाख़िलत करनी चाहीए।
वाज़ेह रहे कि ज़रई यूनीवर्सिटी राजिंदर नगर 5500 एकड़ अराज़ी पर फैली हुई है। और 12 जून 1964 को इस का क़ियाम अमल में आया। साबिक़ वज़ीरे आज़म आँजहानी लाल बहादुर शास्त्री ने इस यूनीवर्सिटी का 20 मार्च 1965 को इफ़्तिताह अंजाम दिया था। उम्मीद है कि फ़िक्रमंद मुसलमान एक वफ़्द की शक्ल में वाइस चांसलर ज़रई यूनीवर्सिटी डॉक्टर ए पद्म राजू और दीगर आला हुक्काम से नुमाइंदगी करेंगे।