ज़हरा नगर 01 न्वम्बर्: (नुमाइंदा ख़ुसूसी) बंजारा हिल में निहायत ही गंदे नाले बहते हैं, जिस पर स्लैब नहीं है। ये कैफ़ीयत आज की नहीं बल्कि बरसों से ये सिलसिला चल रहा है। नाले में फुज़ला बहता है।
अतराफ़ के अवाम इस सूरत-ए-हाल से बेहद परेशान हैं। ज़हरा नगर के लोगों की ज़िंदगी तकलीफ़देह हो गई है।
बदबू और ताफ़्फ़ुन के बावजूद लोग महिज़ मजबूर होकर यहां रहते हैं। जहां तक अज़ीम तर मजलिस बलदिया हैदराबाद के दामन में सिमटे मुख़्तलिफ़ मुहल्ला जात में बुनियादी ज़रूरीयात की फ़राहमी का सवाल है।
अक्सर सलॆम बस्तीयों (पसमांदा इलाक़ों) का मंज़र पेश करते हैं। इन इलाक़ों में तेज़ी से इंसानों के दुश्मन मच्छरों की अफ़्ज़ाइश हो रही है ।
इस तरह शहर में बाअज़ इलाक़े तो ऐसे भी हैं जहां खुले और बटहते हुए नाले मौत के नालों में तबदील होचुके हैं। इस के बावजूद इन खुले नाले पर सलाब डालने की कोई फ़िक्र नहीं! क़ारईन वैसे भी दोनों शहरों हैदराबाद-ओ-सिकंदराबाद में कसीर आबादीयों के बीच-ओ-बीच सैंकड़ों नाले खुले पड़े हैं।
जो ज़रासी ग़फ़लत पर मौत के नालों में तबदील होसकते हैं। ज़हरा नगर में आप तक़रीबन घरों के सामने खुले और बटहते हुए नाले देख सकते हैं। मासूम बच्चे अपने घरों के सामने वाले नाले में अक्सर गिरजाते हैं। इन बच्चों की थोड़ी से ग़फ़लत से एक बड़ा सानिहा पेश आ सकता है।
वैसे भी इन नालों में बटहते हुए गंदे और ताफ़्फ़ुन ज़दा पानी से ना सिर्फ बच्चों बल्कि बड़े बुज़ुर्गों को भी ख़तरा लाहक़ ही। मुक़ामी अवाम सवाल करते हैं कि क्या खिले नाली, आलूदा पानी से फैलने वाला ताफ़्फ़ुन ही हमारी क़िस्मत ही? क्या हुकूमत और इस के मुताल्लिक़ा इदारे अवाम को इस मुसीबत से नहीं बचा सकती? ज़हरा नगर के लोगों का ये भी कहना हीका हम बलदिया को टैक्स अदा करते हैं।
फिर क्यों इस मुहल्ला से सौतेला सुलूक किया जाता ही।इस इलाक़ा की अवाम का ये भी कहना हीका हमें हर किस्म की बुनियादी सहूलतों से महरूम रखा गया है।
गंदगी के बाइस मच्छरों की कसरत हो गई है, जिस के नतीजा में मासूम बच्चे और मर्द-ओ-ख़वातीन बीमारीयों का शिकार होरहे हैं जबकि सरकारी दवा ख़ानों में मरीज़ों की कसरत का ये हाल हीका वहां जाने पर बिस्तर नहीं है , का बहाना किया जाता है।
इस इलाक़े में एक बात आम थी कि घरों के दरवाज़ों के सामने से नाले बह रहे थॆ। गाड़ियां लाने और रखने की तक गुंजाइश नहीं थी। आप तसव्वुर करसकते हैं कि अगर किसी घर में कोई इंतिक़ाल कर जाएं या फिर ख़ुशी का मौक़ा आए तो कितनी परेशानीयों का सामना करना पड़ेगा। बाअल्फ़ाज़-ए-दीगर हम ये कह सकते हैं कि तक़रीबन 10 फ़ीट चौड़े नाले के किनारे अगर घर का दरवाज़ा खुलता है तो इस मुक़ाम से जनाज़ा भी नहीं गुज़र सकता। अब हाल ये हीका इन इलाक़ों के लोग अपनी मजबूरीयों का इज़हार करते हुए कहते हैं कि हम ग़रीब लोग हैं शिकायत नहीं करसकती।
सिर्फ दरख़ास्त इल्तिजा और अपीलें करसकते हैं कि हमारे साथ इंसाफ़ किया जायॆ। बहरहाल जो भी हो ज़हरा नगर के ताल्लुक़ से हुकूमत और बलदिया को होश के नाख़ुन लेना चाहीए और उन तमाम नालों पर सलाब की तामीर की जानी चाहीए जो खुले पड़े हैं। सलाब डालने से जहां लोग ख़ासकर मासूम बच्चे किसी बड़े हादिसा से महफ़ूज़ रहेंगे वहीं ये नाले सड़क का काम भी अंजाम देंगी