ज़िमनी इंतिख़ाबात के नताइज

मर्कज़ की हुक्मराँ पार्टी के क़ुव्वते अमल को इस की हेमाक़तों, बदउनवानीयों और एस्क़ामस ने कमज़ोर करदिया है। इस का सबूत मुल्क में ज़िमनी इंतिख़ाबात के नतीजा से मिलता है। पिर के दिन ऐलान करदा ज़िमनी इंतिख़ाबात के नताइज में कांग्रेस को एक पर भी कामयाबी नहीं मिली। तेलंगाना मैं इलाक़ाई जज़बा ने काम किया। बानसवाड़ा ज़िमनी इंतिख़ाबात में टी आर ऐस उम्मीदवार पी सरीनवास रेड्डी को भारी अक्सरीयत से कामयाबी मिली। कांग्रेस अपनी ज़मानत बचाने पर शर्मिंदगी से बच गई। इस हलक़ा से तेलगु देशम ने मुक़ाबला नहीं किया। इलाक़ाई अवाम के जज़बात को मल्हूज़ रख कर तेलगु देशम ने उम्मीदवार खड़ा ना करने का फ़ैसला किया था। अगर कांग्रेस भी ऐसा है फ़ैसला करती तो इस की कमज़ोर साख यूं बेनकाब ना होती। मलिक की दीगर रियास्तों में हुए ज़िमनी इंतिख़ाबात में कांग्रेस क़ियादत को सब से ज़्यादा धक्का हरियाणा के हलक़ा हिसार में लगा जहां इंसिदाद रिश्वत सतानी मुहिम कार अन्ना हज़ारे ने कांग्रेस के ख़िलाफ़ नारे बुलंद किए थी। रिश्वत के ख़िलाफ़ जद्द-ओ-जहद का असर दिखाई दिया है जिस तरह कांग्रेस ज़िमनी इंतिख़ाबात में अपने ज़ोअम पर मुक़ाबला किया था, इसी तरह उस को शिकस्त खानी पड़ी है। इस के लिए वक़्त था कि वो अपने अस्क़ामस और बदउनवानीयों से होने वाली बदनामियों का जायज़ा लेकर इंतिख़ाबी हिक्मत-ए-अमली इख़तियार करती। इंतिख़ाबी पालिसी पर ग़ौरोफ़िक्र करने के बजाय इस ने इंतिख़ाबी मैदान को क़ुव्वत-ए-बाज़ू की मुक़ाबला आराई मुतसव्वर किया। अवाम ने बदउनवानीयों की बढ़ती लानत का नोट लिया है। बिहार , आंधरा प्रदेश और महाराष्ट्रा की असैंबली नशिस्तों पर कांग्रेस ने ग़ैर मुतवक़्क़े नाकामी का मुंह देखा है। शिकस्त के बाद ये कहा जा रहा है कि इन तीनों हलक़ों में पहले ही से कांग्रेस का असर नहीं था मगर महाराष्ट्रा में ज़िला पौने की असैंबली नशिस्त को इस ने इन सी पी हलीफ़ पार्टी की हिमायत में मुक़ाबला किया मगर बी जे पी को शिवसेना की हिमायत से कामयाबी मिली। टामलनाडो में भी कांग्रेस का पहले ही से वजूद नहीं के बराबर है। अब यहां मुक़ामी बलदयात के इंतिख़ाबात में उसे सख़्त आज़माईश से गुज़रना पड़ेगा। आम तौर पर ज़िमनी इंतिख़ाबात के नताइज पर कोई ख़ास ध्यान नहीं देता लेकिन रिश्वत सतानी के ख़िलाफ़ मुहिम और 2G एस्क़ाम , सी डब्लयू जी धांदलियों के इलावा दीगर ख़राबियों ने हुकमरान पार्टी कांग्रेस की शबिया को दागदार बनादिया है तो अवाम की निगाहें उस की कारकर्दगी के इव्ज़ मिलने वाले नताइज पर मर्कूज़ थीं। ये ज़िमनी इंतिख़ाबात ना सिर्फ अप्पोज़ीशन पार्टीयों के लिए बल्कि अन्ना हज़ारे की टीम के लिए भी एहमीयत के हामिल थी। एक तरह से ये नताइज कांग्रेस के ख़िलाफ़ अवाम का रैफ़रंडम मुतसव्विर किए जाएं तो बी जे पी या सिंह परिवार की हिमायत वाली अन्ना हज़ारे टीम के हौसले बुलंद होंगे। हिसार के लोक सभा ज़िमनी इंतिख़ाबात में बी जे पी के हिमायती उम्मीदवार हरियाणा जन हित पार्टी के उम्मीदवार कुलदीप बिश्नोई की कामयाबी को उन के वालिद की मौत के बाद हमदर्दी की लहर के वोट हासिल होना क़रार दिया जा रहा है लेकिन दीगर हलक़ों में कांग्रेस को बदतरीन शिकस्त हुई। बिहार में जनता दल यू की कामयाबी को भी इस तनाज़ुर में देखा जा रहा है और बानसवाड़ा हलक़ा असैंबली में टी आर ऐस लीडर पर चार्म सरीनवास ने अपनी नशिस्त पर दुबारा क़बज़ा करलिया। अगर चीका कांग्रेस के लीडर सरीनवास गौड़ को 33,356 वोट मिले और वो अपनी ज़मानत बचा सकी। पोचारम सरीनवास ने तेलंगाना के लिए अपना इस्तीफ़ा दिया था और इस नशिस्त को बिलामुक़ाबला इंतिख़ाब के लिए छोड़ दिया जाता तो कांग्रेस की साख आशकार ना होती मगर हुक्मराँ पार्टी अपने सारे वसाइल झोंकने के बावजूद ये नशिस्त हासिल नहीं करसकी। तेलंगाना जज़बा के साथ खिलवाड़ करने का सबक़ यही था कि उसे बदतरीन शिकस्त से दो-चार करदिया जाई। इस के उम्मीदवार को 33 हज़ार से ज़ाइद वोट मिले हैं तो ये वोट उन के हैं जो तेलंगाना के ख़िलाफ़ हैं। कांग्रेस के लिए एक तरफ़ इलाक़ाई जज़बात का सामना था तो दूसरी तरफ़ रिश्वत के ख़िलाफ़ मुहिम कारों की नारा बाज़ी का मुक़ाबला था। इस ने हर दो महाज़ों पर अपनी वसीअ तर सयासी तजुर्बा कारी के बावजूद ख़राब मुज़ाहरा किया। माज़ी क़रीब-ओ-बईद की बेशुमार मिसालें ऐसी हैं कि इस से अंदाज़ा होता है कि सयासी पार्टीयों को उन के ज़ोअम की वजह से शिकस्त खानी पड़ी है। ज़िमनी इंतिख़ाबात के नताइज के बाद कांग्रेस क़ाइदीन ये कहने लगे हैं कि वो इंतिख़ाबी नताइज का जायज़ा लेंगे और ज़रूरी लायेहा-ए-अमल मुरत्तिब किया जाएगा। कांग्रेस को आने वाले साल कई रियास्तों में असैंबली इंतिख़ाबात में भी मुक़ाबला करना है जिन रियास्तों में उसे सख़्त आज़माईश का सामना है, वहां उस की साख पहले हि से कमज़ोर है। उत्तरप्रदेश में दलित के वोट के हुसूल के लिए इस ने कोई होमवर्क नहीं किया अलबत्ता वज़ीर-ए-आज़म की कुर्सी पर एक दलित को बिठाने का इशारा दे कर वो चीफ़ मिनिस्टर उत्तरप्रदेश मायावती के सयासी अज़ाइम को कमज़ोर करने की कोशिश की है। यहां अपनी शिकस्त की तारीख़ पर नज़र रखने वाली कांग्रेस को सयासी बे सिमरी का ग़म दूर करने के लिए पहले से ज़्यादा मेहनत करने की ज़रूरत है लेकिन इस के तर्ज़ अमल से अंदाज़ा होता है कि वो अपने नौजवान लीडर राहुल गांधी के सहारे ख़ुशगुमानी में मुबतला है और ये समझ लिया गया है कि ग़रीब की झोनपड़ीं में खाना खाने और एक किसान की चारपाई पर शब बसरी से यूपी में कांग्रेस को इक़तिदार मिल जाएगा। कांग्रेस और इस के नौजवान लीडर के इर्दगिर्द मंडलाते ग्रुप की दानाई और सयासी तजुर्बा से पता चलता है कि ये लोग कांग्रेस और इस की नौजवान क़ियादत के अतराफ़ सिर्फ काग़ज़ी गुलदस्ते सजाने के सिवा-ए-कुछ नहीं करसकती।