ज़िम्नी इंतेख़ाबात और पैसा की ताक़त

आंधरा प्रदेश में ज़िम्नी इंतेख़ाबात का बुगल बज चुका है । 18 असेंबली हलक़ों और एक लोक सभा हलक़ा में 12 जून को राय दही होगी । ज़िम्नी इंतेख़ाबात के लिए तमाम सयासी जमातों ने तैयारीयों का आग़ाज़ (शुरूआत) कर दिया है और खासतौर पर वाई एस आर कांग्रेस पार्टी बरसर‍ ए‍ इक़्तेदार कांग्रेस और असल अपोज़ीशन तेलगूदेशम के माबेन ( बीच में) इस दौरान ज़बरदस्त सयासी रसा कशी देखने को मिल सकती है औरा नून तमाम जमातों ने ज़्यादा से ज़्यादा राय दहिंदों को अपनी जानिब रिझाने और उन की ताईद (हिमायत) हासिल करने की कोशिशों का आग़ाज़ कर दिया है ।

वैसे तो इंतेख़ाबात ( चुनाव) में अवाम का वोट हासिल करने के लिए मुख़्तलिफ़ फ़लाही स्कीमात के वायदे किए जाते हैं और उन्हें इंतेख़ाबात के बाद सहूलयात फ़राहम करने के सब्ज़ बाग़ दिखाए जाते हैं । ये अलग बात है कि सयासी क़ाइदीन के ये वायदे कभी वफ़ा नहीं हुए और राय दहनदे फिर भी वायदे करने वालों पर एतबार करने से नहीं चूकते ।

कहीं कहीं वादों से इन्हिराफ़ (एक ओर स फिर जाना) सयासी क़ाइदीन को महंगा पड़ता है । ताहम ( फिर भी) आंधरा प्रदेश के ज़िम्नी इंतेख़ाबात कई पहलूओं से अहमियत के हामिल हैं । जहां वाई एस आर कांग्रेस पार्टी अपनी ताक़त का मुज़ाहरा ( प्रदर्शन) करने और अवाम की ताईद ( मदद) हासिल रखने के दावे की तौसीक़ करने की कोशिश करेगी वहीं बरसर‍ ए‍ इक़्तेदार कांग्रेस पार्टी अपनी हुकूमत को हज़ीमत से बचाने के लिए सर धड़ की बाज़ी लगाने की कोशिश करेगी ।

असल अपोज़ीशन जमात तलगोदेशम भी इन ज़िम्नी इंतेख़ाबात में जहां-जहां मुम्किन हो सके कामयाबी हासिल करते हुए 2014 के असेंबली इंतेख़ाबात की तैयारीयों का मुसबत अंदाज़ में आग़ाज़ करने की कोशिश करेगी । इन तीनों जमातों की सयासी रसा कुशी के माबेन ज़िमनी इंतिख़ाबात का माहौल काफ़ी गर्म होने की तवक़्क़ो है ।

हर जमात ( पार्टी) राय दहिंदों को ज़्यादा से ज़्यादा वादों के ज़रीया सबज़ बाग़ दिखाते हुए उन की ताईद हासिल करने की कोशिश करेगी लेकिन असल फैसला राय दहिंदों को करना है कि वो किस के वादों पर यक़ीन करते हैं और किस को अपने वोट का हक़दार समझते हैं।

सयासी जमातों की इंतेख़ाबी जंग में अब सब से अहम पहलू पैसा और शराब की ताक़त के इस्तेमाल का उभर कर सामने आया है । अभी जबकि इंतेख़ाबी सरगर्मियां बाज़ाबता ( नियम पूर्वक़) तौर पर शुरू भी नहीं हुई हैं इसी इत्तेलात है कि इन हलक़ों में बेदिरेग़ ( अंधाधुंध) पैसा ख़र्च किया जा रहा है और राय दहिंदों को शराब से खरीदने की कोशिश की जा रही है ।

रियासत के चीफ इलेक्टोरेल ऑफीसर मिस्टर भंवरलाल ने कल ही बताया कि जिन अज़ला ( जिले) में ज़िमनी इंतिख़ाबात होने वाले हैं वहां तलाशियों के दौरान 5 करोड़ 35 लाख रुपय की रक़म ज़ब्त की गई जो गैरकानूनी तौर पर मुंतक़िल की जा रही थी । इस के इलावा हज़ारों लीटर शराब भी ज़ब्त की गई है ।

पैसे और शराब का गैरकानूनी और बेदिरेग़ ( अंधाधुंध) इस्तेमाल हिंदूस्तानी जम्हूरियत के माथे का कलंक है और ऐसा लगता है कि आंधरा प्रदेश के ज़िमनी इंतेख़ाबात में सयासी जमायतें इस कलंक को धोने की कोशिश करने की बजाय उसे मज़ीद (और भी) गहरा करने की कोशिश कर रही हैं।

हर जमात अपने आप को पाक साफ़ और उसूलों की पाबंद ज़ाहिर करने की कोशिश करती है और दूसरी जमातों पर इंतेख़ाबी ज़ाब्ता अख़लाक़ और क़वानीन की ख़िलाफ़वर्ज़ी का इल्ज़ाम आइद किया जाता है । एक दूसरे के ख़िलाफ़ इलेक्शन कमीशन से शिकायतें भी की जाती हैं लेकिन ख़ुद के गैरकानूनी कामों को तर्क करने की ज़रूरत कोई भी जमात महसूस नहीं करती ।

कोई जमात ये साबित करने में कामयाब नहीं हो सकती कि इस के उम्मीदवार और इस की मुहिम बेदाग़ रही है और किसी तरह की इंतेख़ाबी ख़िलाफ़वर्ज़ी नहीं की गई है । इंतिहाई ख़तीर रक़ूमात का इस्तेमाल करते हुए राय दहिंदों को खरीदने और उन का वोट खरीदने की हर जमात कोशिश करती है और एक उम्मीदवार इस में आगे भी निकल जाता है । जब वोट खरीदे जाते हैं तो कोई भी उम्मीदवार अवाम की पसंद का नुमाइंदा होने का दावे नहीं कर सकता ।

ये हिंदूस्तानी जम्हूरियत के साथ एक मज़ाक़ और अलमीया है और इस सिलसिला को तर्क करने की ज़रूरत है । ये सियासतदां जो अवामी ताईद के ज़रीया क़ानूनसाज़ इदारों में दाख़िला चाहते हैं वो दाख़िला की कोशिश ही क़ानून की ख़िलाफ़वर्ज़ीयों के ज़रीया करते हैं ।

सियासतदानों का ये तर्ज़ अमल इंतिहाई नापसंदीदा और नामुनासिब है और इससे बचने की हर मुम्किन कोशिश की जानी चाहीए ।

इंतिख़ाबी मुहिम के बाज़ाबता आग़ाज़ और सरगर्मियों में शिद्दत से क़ब्ल ही भारी रक़ूमात ( रुपये) की ज़ब्ती और शराब का बहाव काबिल तशवीश है । ख़ुद राय दहिंदों को भी इस ताल्लुक़ ( संबंध) से अपने शऊर का मुज़ाहरा करना चाहीए और सूचना चाहीए कि जो उम्मीदवार अपने इंतेख़ाब के लिए ही गैरकानूनी तरीका कार इख्तेयार करेगा और उन का वोट खरीदने की कोशिश करेगा वो कामयाबी हासिल करने के बाद क़ानून की धज्जियां उड़ाने से गुरेज़ क्यों करेगा ? ।

क्या अवाम के वोट खरीदने वाले अवाम के ख़िदमत गुज़ार भी बन सकते हैं ? । ये ऐसे सवाल हैं जिन के जवाब ख़ुद राय दहिंदों को सोचने होंगे और उन्हें अपने वोट का इंतिहाई शऊर के साथ और काफ़ी ग़ौर-ओ-ख़ौज़ के बाद इंतिहाई एहतियात से करना चाहीए ।

सिर्फ़ चंद रूपयों और शराब की ख़ातिर वोट का इस्तेमाल करना दर असल क़ानूनशिकनी करने वालों को इस का मौक़ा फ़राहम करने और अपने दस्तूरी और जमहूरी हक़ को ज़ाए कर देना है जिसकी ज़िम्मेदारी दूसरों पर आइद नहीं की जा सकती । इस के लिए राय दहनदे भी ज़िम्मेदार होंगे । इस बात को ज़हन नशीन रखते हुए वोट डालना होगा।