फ़ितनों के ज़हूर में कोई शक नहीं है

हज़रत अबू बक्र रज़ि० कहते हैं कि रसूल करीम स०अ०व० ने फ़रमाया इस में कोई शुबा नहीं कि अनक़रीब फ़ितनों का ज़हूर होगा। याद रखो! फिर फ़ित्ने पैदा होंगे और याद रखो इन फ़ितनों में से एक बहुत बड़ा फ़ित्ना (यानी मुसलमानों की बाहमी महाज़ आराई और ख़ूँरेज़ी का हादिसा पेश आएगा)।

इस फ़ित्ना में बैठा हुआ शख़्स चलने वाले शख़्स से बेहतर होगा और चलने वाला शख़्स इस फ़ित्ना की तरफ़ दौड़ने वाले शख़्स से बेहतर होगा। पस आगाह रहो! जब वो फ़ित्ना पेश आए तो जिस शख़्स के पास (जंगल में) ऊंट हो, वो अपने ऊंटों के पास (जंगल में) चला जाये। जिस शख़्स के पास बकरियां हों, वो बकरियों के पास चला जाये और जिस शख़्स के पास (इस फ़ित्ना की जगह से कहीं दूर) कोई ज़मीन-ओ-मकान वगैरह हो, वो अपनी इस ज़मीन पर या इस मकान में चला जाये।

(हासिल ये कि जिस जगह वो फ़ित्ना ज़ाहिर हो, वहां ना ठहरे, बल्कि उस जगह को छोड़कर कहीं दूर चला जाये और गोशा आफ़ियत पकड़ ले या इस फ़ित्ना से गैर मुतवज्जा होकर अपने कारोबार में मशग़ूल-ओ-मुनहमिक हो जाये)।

एक शख़्स ने (ये सुन कर) अर्ज़ किया कि या रसूल अल्लाह! मुझे ये बताईए कि अगर किसी शख़्स के पास ना ऊंट और बकरियां हो और ना (किसी दूसरी जगह) कोई ज़मीन-ओ-मकान वगैरह हो (कि जहां वो जाकर गोशा आफ़ियत इख़तियार करे और इस फ़ित्ना की जगह से दूर रह सके तो उस को क्या करना चाहीए?। हुज़ूर स०अ०व० ने फ़रमाया उस को चाहीए कि वो अपनी तलवार की तरफ़ मुतवज्जा हो और उस को पत्थर पर मारकर तोड़ डाले (यानी इस के पास जो भी आलात हर्ब और हथियार हो, उन को बेकार और नाक़ाबिल इस्तेमाल बना दे, ताकि इस के दिल में जंग-ओ-पैकार का ख़्याल ही ना पैदा हो और वो मुसलमानों के बाहमी जंग-ओ-जदाल के इस फ़ित्ना में शरीक ही ना हो सके।