फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर की कसरत, पूरी क़ौम के लिए मूजिब हलाकत

हज़रत ज़ैनब बिन हबश रज़ी अल्लाह अनंहू से रिवायत है कि एक दिन रसूल करीम ( स०अ०व०) उनके यँहा ऐसी हालत में तशरीफ़ लाए कि जैसे बहुत घबराए हुए हैं। फिर फ़रमाने लगे कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं, अफ़सोस सद अफ़सोस अरब के इस शर-ओ-फ़ित्ना पर, जो (अपनी हलाकत आफ़रीनी के साथ) क़रीब आ पहुंचा है।

आज याजूज माजूज की दीवार में इस क़दर सूराख़ हो गया है। ये कह कर आप ( स०अ०व०) ने अंगूठे और बराबर वाली उंगली के ज़रीया हलक़ा बनाया। हज़रत ज़ैनब रज़ी अल्लाह अनहा कहती हैं कि मैंने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह! क्या हम इस सूरत में भी हलाक कर दिए जायेंगे, जब कि हमारे दरमयान सालह ( नेक)-ओ-पाकबाज़ लोग मौजूद होंगे? (क्या हमारे दरमयान ख़ुदा के नेक बंदों के वजूद की बरकत इन फ़ितनों के फैलने और आफ़ात‍ व बलाओं के नाज़िल होने में रुकावट नहीं बनेगी?) हुज़ूर अकरम ( स्०अ०व्०) ने फ़रमाया हाँ! (तुम्हारे दरमयान उल्मा और बुज़्रगान-ए-दीन – की मौजूदगी के बावजूद तुम्हें हलाकत-ओ-तबाही में मुबतिला किया जाएगा) जब कि फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर की कसरत होगी (यानी जब मुआशरा में बुराईयां बहुत फैल जाएंगी और हर तरफ़ फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर का दौर दौरा होगा तो उन बुराईयों और फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर के सबब नाज़िल होने वाले फ़ित्ना-ओ-आलाम और आफ़ात को सलिहा-ए-और बुज़ुर्गों की मौजूदगी और उनकी बरकत भी नहीं रोक सकेगी)। (बुख़ारी-ओ-मुस्लिम)

“शर” से हुज़ूर अकरम (स०अ०व०) की मुराद इस फ़ित्ना-ओ-फ़साद और क़त्ल‍ व क़िताल की तरफ़ इशारा करना मक़सूद था, जिसकी इबतेदा मुस्तक़बिल में होने वाली थी और जिसका शिकार सबसे पहले अहले अरब बनने वाले थे।

चुनांचे क़ल्ब नबुव्वत ने अहले इस्लाम को इफ़्तेराक़‍ ओ‍ इंतेशार में मुब्तिला करने वाले जिन वाक़्यात का बहुत पहले इदराक कर लिया था और मज़कूरा इरशाद के ज़रीया गोया उनके बारे में पेशनगोई फ़र्मा दी थी, उनकी इब्तेदा ख़लीफ़ा सालस हज़रत उसमान बिन अफ्फान रज़ी अल्लाह अन्हू के सानिहा शहादत से हुई और जिन का सिलसिला किसी ना किसी सूरत में अब तक जारी है।

बाअज़ हज़रात ने ये मुराद ब्यान की है कि हुज़ूर ( स्०अ०व्०) ने गोया इस तरफ़ इशारा फ़रमाया कि जब अहले अरब को इस्लाम की बढ़ती हुई ताक़त के सबब दुश्मनों के मुक़ाबला पर फ़ुतूहात हासिल होंगी, दूसरे मुल्कों पर ग़लबा‍ ओ‍ इक़्तेदार हासिल होगा और माल-ओ-दौलत की कसरत होगी, तो इसका एक नतीजा ये भी होगा कि लोगों के ख़ुलूस-ओ-ललहीत में कमी आ जाएगी, हुकूमत-ओ-इक़तिदार और माल‍ ओ‍ ज़र से रग़बत पैदा हो जाएगी।

दुनिया तलबी-ओ-जाह पसंदी और ख़ुदग़र्ज़ी का अंफ़रीयत बाहमी मुख़ालिफ़त-ओ-मुख़ासमत और इफ़्तिराक़‍ ओ‍ इंतेशार के ज़रीया पूरी मिल्लत को मुतास्सिर कर देगा।