फ़ी ख़ानदान एक क़ुर्बानी, अगर साहिबे निसाब भी एक हो

हैदराबाद 22 सितंबर: क़ुर्बानी के मसले पर जारी मुबाहिस से निमटने के लिए मुख़्तलिफ़ गोशों बिलख़सूस उल्मा ने अवाम पर ये वाज़िह कर दिया हैके क़ुर्बानी के मसाइल बहुत आसान हैं और हर साहिबे निसाब शख़्स पर क़ुर्बानी वाजिब है।

बाअज़ गोशों की तरफ से जारी ग़लत तशरीहात की बुनियाद पर फैल रही ग़लत-फ़हमियों को दूर करने के लिए उल्मा ने ये वाज़िह किया हैके हज़रत इमाम-ए-आज़म अब्बू हनीफ़ह(RH) के अलावा दुसरे अइम्मा किराम ने भी हर साहिबे इस्तेताअत पर क़ुर्बानी को लाज़िम क़रार दिया है।

साहिबे इस्तेताअत के मुताल्लिक़ आसानी से ये बात समझी जा सकती हैके जिस शख़्स पर ज़कात फ़र्ज़ हो, इस शख़्स पर क़ुर्बानी वाजिब होगी लेकिन ज़कात की अदायगी के लिए माल पर एक साल मुकम्मिल होना लाज़िमी है जबकि क़ुर्बानी के लिए एसा नहीं है।

अगर अय्याम क़ुर्बानी के दौरान यानी ईद-उल-अज़हा और इस के बाद 11 और 12 ज़ीलहजा को किसी शख़्स के पास ज़रूरीयात-ए-ज़िंदगी से ज़ाइद माल निसाब के बक़दर अगर पहुंच जाता है तो इस पर क़ुर्बानी वाजिब है।मौलाना मुफ़्ती अज़ीमुउद्दीन सदर मुफ़्ती जामिआ निज़ामीया ने इस हदीस और क़ुर्बानी के अहकाम के मुताल्लिक़ तफ़सीली फ़तवा जारी करते हुए ये वाज़िह किया हैके हर साहिबे निसाब पर एक क़ुर्बानी लाज़िम है।

क़ुर्बानी के लिए शरीयत मुतह्हरा ने वज़ाहत के साथ ये अहकाम जारी कर दिए हैंके एक बड़े जानवर यानी बैल, भैंस, ऊंट या ऊंटनी में सात (7) अफ़राद को शामिल किया जा सकता है और ये भी वाज़िह हुक्म दिया जा चुका हैके छोटे जानवर यानी बकरा, दुनबा, बकरी या भीड़ में एक हिस्सा होगा। तमाम अइम्मा किराम का इत्तिफ़ाक़ इस बात पर हैके एक बड़े जानवर में सात हिस्से और छोटे जानवर को एक साहिब निसाब की तरफ से वाजिब क़ुर्बानी के तौर पर जुबह किया जा सकता है।

मौलाना अबदुलमग़नी मज़ाहरी नाज़िम मुदर्रिसा सबील उलफ़लाह ने बताया कि तर्क नफ़ल पर कोई वईद नहीं है लेकिन तर्क वाजिब पर वईद है। क़ुर्बानी दुसरे फ़र्ज़ अली उल-ऐन की तरह हर साहिबे निसाब पर वाजिब अली उल-ऐन है और नबी अकरम (स०) ने इस्तेताअत रखते हुए क़ुर्बानी ना देने वालों को ईदगाहों के क़रीब भी ना आने का हुक्म दिया है।

उन्होंने इस मसले को उलझन का शिकार ना बनाने की तलक़ीन करते हुए कहा कि चंद अफ़राद की तरफ् से वाजिब अदा किया जाये और कुछ लोगों का वाजिब रह जाये तो तर्क वाजिब के गुनाहगार हो भी होंगे।

जिन्हों ने ये उलझनें पैदा की हैं। क़ुर्बानी के मुताल्लिक़ वाज़िह अहकामात के बाद ही चंद अफ़राद की तरफ् से बाज़ अहादीस का जो हवाला पेश करते हुए ये इस्तिदलाल दिया जा रहा है कि एक ख़ानदान की तरफ से एक बकरे या बिक्री की क़ुर्बानी की अदायगी से क़ुर्बानी का अमल मुकम्मिल हो जाएगीगा और तमाम की तरफ से क़ुर्बानी अदा हो जाएगीगी।