फ़ौजी सरबराह की उम्र का तनाज़ा

हिंदूस्तानी फ़ौज में एक जनरल की बाग़ियाना रविष से ये सवाल उठ रहे हैं कि क्या मुस्तक़बिल में फ़ौज के अंदर बाग़ियाना सरगर्मीयां ख़राब मिसाल बन जाएगी । हुकूमत के ख़िलाफ़ फ़ौजी सरबराह की लड़ाई के अवाक़िब-ओ-नताइज संगीन नौईयत इख्तेयार करेंगे। हुकूमत ने फ़ौजी सरबराह के उमूर के मसला पर जो रवैय्या इख्तेयार किया है इस से क़ौमी सतह के आला इदारा को ग़ैर ज़रूरी तनाज़ा में उलझना पड़ा।

आज एक जनरल सरबराह ने हुकूमत को अदालत में घसीटा है। कल एक सिपाही अपने आला ओहदेदार को भी अदालत में घसीट सकता है। उम्र के तनाज़ा पर जनरल वे के सिंह ने हुकूमत को अदालत तक ले जाने का फ़ैसला करके इस क़ौमी दिफ़ाई इदारा की इफ़ादीयत या उस की कारकर्दगी के हदूद का सवाल खड़ा करदिया है। फ़ौजी शोबा कुमलक के दीगर शोबों में एक मुनफ़रद और आला मुक़ाम हासिल है।

दीगर इदारों से हट कर फ़ौजी या दिफ़ाई इदारे को क़ौमी सलामती उसूलों, ज़ाबतों और इक़तिदार की सतह पर क़ायम रह कर काम करना होता है। हुकूमत को भी किसी फ़ौजी सरबराह की उम्र के मसला को एक तल्ख़ सतह तक ले जाने के बजाय इदारा जाती ख़ुतूत पर तसफ़ीया-ए-तलब हल निकालने की कोशिश की जानी चाहीए थी।

फ़ौजी जनरल वे के सिंह की उम्र के बारे में ये नहीं कहा जा सकता कि हुकूमत का इस्तिदलाल दरुस्त है लेकिन इस मसला से निमटने में हुकूमत ने जो तरीका-ए-कार इख्तेयार किया है इस पर तन्क़ीदें हो रही हैं। जनरल वे के सिंह की उम्र पैदाइश 10मई 1951-ए-है तो वज़ारत दिफ़ाई इस पैदाइशी तारीख़ को 10 मई 1950 -ए-बताकर उन्हें एक साल क़बल ही सुबकदोशी का रास्ता दिखाना चाहती है।

वज़ारत-ए-दिफ़ा को जनरल वे के सिंह के इद्दिआ को मुस्तर्द करने से क़बल उस की संगीनी का भी जायज़ा लेना ज़रूरी था। लेकिन इस ने वे के सिंह की उम्र के मुआमले में कोई सुलह मश्वरा नहीं किया। हुकूमत ने फ़ौजी सरबराह की हरकत को बद बख्ता ना क़रार दिया है। बिलाशुबा फ़ौज के आला ओहदेदार की ये हरकत ग़ैर सहतमनदाना है इस के मुस्तक़बिल में मनफ़ी असरात मुरत्तिब हो सकते हैं।

ये मामला निहायत इस हस्सास नौईयत का है इसी लिए मुसल्लह अफ़्वाज के ज़हनों में किसी मनफ़ी ख़्याल के घर कर जाने से क़बल हुकूमत को इस मसला से निमटने में ग़ैर दानिशमंदी का मुज़ाहरा नहीं करना चाहीए था। वे के सिंह को अदालत तक पहुंचने के लिए मजबूर करने वाले अवामिल पर अगर ग़ौर किया जाय तो हुकूमत आज अदालती कठहरे में खड़ी नहीं होती।

जनरल वे के सिंह का इद्दिआ है कि वो 1951-ए-की पैदाइश रखते हैं और वज़ारत-ए-दिफ़ा ने उन की तारीख़ पैदाइश का रिकार्ड यू पी एससी में दर्ज तारीख़ से निकाला है। नैशनल डीफ़ैंस एकेडेमी और दीगर रेकॉर्ड्स से उन की तारीख़ पैदाइश 1950 बताई जा रही है। जबकि जनरल सिंह का इद्दिआ है कि वो 1951 में पैदा हुए।

इस मौज़ू पर जनरल वे के सिंह अपनी बात को सदाक़त मान कर हुकूमत के पास मौजूद रिकार्ड 1950 की तारीख़ पैदाइश को मुस्तर्द करते हैं। फ़ौजी सरबराहों का रिकार्ड रखने वाले सरकारी रिकार्ड में अगर तारीख़ पैदाइश 1950 है तो जनरल वे के सिंह को इस साल 31 मई को सबकदोश होना चाहीए।

हुकूमत के साथ किसी किस्म का तज़ाद और तसादुम पैदा करने के बजाय अपनी 21 माह तवील ख़िदमात और कारनामों पर फ़ख़र करते हुए परविक़ार तौर पर ओहदा छोड़ने के लिए तैयार रहना चाहीए था, मगर उन्हों ने एक साल की मुद्दत में इज़ाफे़ की ख़ातिर हुकूमत से तसादुम का रास्ता इख्तेयार किया, अदालत का दरवाज़ा खटखटाया।

अगर ये मसला अदालत तक पहुंचने से क़बल ही वज़ारत-ए-दाख़िला, वज़ारत-ए-दिफ़ा की जानिब से हरकत में अगर कोई हल तलब राह निकालने की कोशिश की जाती तो शायद हुकूमत को अदालत के कठघरे मैं टहरने की नौबत नहीं आती थी। इस वाक़िया से एक तरफ़ हुकूमत दबाव का शिकार हो रही है दूसरी तरफ़ अवाम में फ़ौजी इदारे में पैदा होने वाली ख़राब मिसाल पर बेहस चल रही है।

फ़ौजी सरबराह की उम्र के मसला को तनाज़ा का शिकार बनाने के पीछे एक मक़सद ये भी है कि फ़ौजी क़ियादत की दौड़ में दीगर सीनीयर फ़ौजी जनरलस शामिल हैं। वे के सिंह के जांनशीन के लिए हुकूमत को नया सरबराह मुक़र्रर करने के लिए कोशिश करनी है।

इस्टर्न फ़ौजी कमांडर लेफ़टीनेंट जनरल बिक्रमजीत सिंह नए फ़ौजी सरबराह बनने की दौड़ में सर-ए-फ़हरिस्त हैं। वे के सिंह की सुबकदोशी के बाद वो फ़ौजी सरबराह बनने के मुतमन्नी हैं। हालाँकि उन पर फ़र्ज़ी एनकाउंटर में मुलव्वस होने के इल्ज़ामात भी हैं।

विक्रमजीत सिंह के जम्मू-ओ-कश्मीर में ताय्युनाती के दौरान फ़र्ज़ी एंकाउंटर के वाक़ियात पेश आए थे। इन वाक़ियात के बाद वादी कश्मीर में दहश्त फैल गई थी । एक और जनरल भी वि के सिंह के जांनशीन बनने की ख़ाहिश रखते हैं। वेस्टर्न आर्मी कमांडर लेफ्टीनेंट जनरल शंकर आर घोष भी ओहदे के मुतमन्नी हैं।

लेकिन उन के जोड़ों में दर्द होने के बाइस 30 फ़ीसद वो ख़िदमात अंजाम देने से क़ासिर हैं लेकिन उन्हों ने अपनी डयूटी अंजाम देने के लिए फिट होने की मैडीकल सर्टीफ़िकेट हासिल की है। वे के सिंह के उम्र के मसला से निमटने के लिए अगर अदालत में भी नाकाम होती है तो उसे सख़्त पशेमानी का सामना करना पड़ेगा।

बुनियादी तौर पर फ़ौज का काम जंग के मैदान में अपनी सलाहीयतों का मुज़ाहरा करना होता है। फ़ौज को अख़लाक़ी तौर पर मज़बूत बनाने की ज़रूरत होती है। लेकिन हुकूमत ने फ़ौजी सरबराह के दाख़िली मुआमला को महिकमा जाती तौर पर निमटने के बजाय सुप्रीम कोर्ट में अपने मौक़िफ़ पर बहस करने को तर्जीह दी।

अपोज़ीशन पार्टीयों ने हुकूमत को इस लिए तन्क़ीद का निशाना बनाया कि वो मसला से बेहतर तरीक़ा से निमटने नहीं सकी। हुक्मराँ पार्टी कांग्रेस भी सुप्रीम कोर्ट में जनरल सिंह की दरख़ास्त दाख़िल करने के बाद इस तनाज़ा से ख़ुद को दूर रखा है तो इस की ये हरकत अपनी क़ौमी ज़िम्मेदारीयों से फ़रार होने के मुतरादिफ़ कहलायेगी