फ़ौज में इलाक़ा वारियत की बुनियाद पर बहाली ग़ैर दस्तूरी

फ़ौज में ख़ित्ते से ताल्लुक़ रखने वाले अफ़राद का ग्रुप बनाना ग़ैर दस्तूरी है। ये क़दम ज़ात पात, इलाक़ा वारियत और मज़हबी असास पर इमतियाज़ हुए जाने की तारीफ़ में आता है।

फ़ौज में भरतियों के अमल से ताल्लुक़ इख़तियार करदा पालिसी को चालेंज करते हुए एक दर्ख़ास्त गद्दार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि फ़ौज में भर्तियां ज़्यादा तर एक इलाक़ा के अफ़राद के ज़रिया की जाती हैं और उनका ग्रुप बनाया जाता है जो दस्तूर के मुखालिफ‌ है। सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल करदा एक हलफनामा में ज़ोर दे कर कहा गया है कि फ़ौज जिस ने इंतिज़ामी सहूलियात और अमली इक़दामात के तक़ाज़ों को पूरा करने केलिए अपनी पालिसी को हक़बजानिब क़रार दिया है।

दर्ख़ास्त गुज़ार ने अपील की है कि इस तरह की पालिसी को फ़ौरी बर्ख़ास्त कर दिया जाना चाहिए क्योंकि इस पालिसी पर हिंदुस्तानी बहरिया और फ़िज़ाईया की जानिब से अमल नहीं किया जाता। फ़ौज ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वो ज़ात पात, इलाक़ा वारियत और मज़हब की बुनियाद पर भर्तियां अमल में नहीं लाती हैं बल्कि रेजिमेंट इंतिज़ामी सहूलत और अमली इक़दामात के तक़ाज़ा के मुताबिक़ है।

फ़ौज की जानिब से इख़तियार करदा मौक़िफ़ का जवाब देते हुए दर्ख़ास्त गुज़ार ने आई एस यादव ने जो हरियाणा में रेवारी से ताल्लुक़ रखने वाले डाक्टर हैं कहा कि मुद्दई (फ़ौज) ने हिंदुस्तानी बहरिया और फ़िज़ाईया में भर्तियों को हक़बजानिब क़रार देता है जो ज़ात पात और इलाक़ा वारियत की बुनियाद पर नहीं होते।

यहां ज़ात पात की असास पर भी बहाली अमल में नहीं लाए जाते लेकिन इस अमल को फ़ौज में ख़ासकर इलाक़ा वारियत, ज़ात पात और मज़हब की बुनियाद पर भर्तियां की जा रही हैं। उन्होंने इल्ज़ाम आइद किया कि नौजवानों की अक्सरियत के साथ ज़ात पात, इलाक़ा वारियत और मज़हब की बुनियाद पर ग़ैरमुन्सिफ़ाना तौर पर इमतियाज़ बरता जा रहा है।