100 से ज्यादा मौत, 15 लाख नौकरियां खाकर वापस लौटे 99 फीसदी पुराने नोट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को भ्रष्टाचार की रोकथाम और देश में काला धन के प्रवाह को रोकने के लिए नोटबंदी (Demonetisation) लागू की थी. देशवासियों के लिए यह हैरान कर देने वाला फैसला था, क्योंकि इसके कारण पीएम की घोषणा के चंद घंटे बाद से ही 500 और 1000 रुपए के नोटों से किसी भी तरह का लेन-देन या खरीदारी बंद हो गई. पीएम मोदी ने कहा था कि काला धन की रोकथाम के लिए सरकार ऐसा कर रही है. सरकार के इस फैसले से देश के लाखों-करोड़ों लोगों ने अगले करीब दो महीनों तक नगदी संकट झेला. बैंकों या एटीएम से समय पर नगदी न मिलने के कारण 100 से ज्यादा लोगों को जान गंवानी पड़ी.

वहीं, नोटबंदी का प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा, छोटे और मंझोले उद्योग से जुड़े व्यापारियों का कारोबार प्रभावित हुआ. इसके अलावा, निजी क्षेत्र में रोजगार में भीषण कमी आई. नोटबंदी का असर इतना व्यापक था कि एक साल बाद तक लाखों लोग बेरोजगार रहे. अंग्रेजी अखबार द गार्जियन में छपे एक लेख के अनुसार, वर्ष 2017 के शुरुआती 4 महीनों में ही करीब 15 लाख लोगों को अपनी नौकरियां गंवानी पड़ी. इससे देश की जीडीपी में 1 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. बहरहाल, नोटबंदी के 3 साल बाद अब जाकर भारतीय रिजर्व बैंक ने घोषणा की है कि नवंबर 2016 में नोटबंदी के बाद चलन से बाहर हुए 99 फीसदी से ज्यादा नोट उसके पास लौट चुके हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि अगर चलन से बाहर किए गए 99 फीसदी से ज्यादा नोट रिजर्व बैंक में वापस लौट गए, तो काला धन कहां गया.

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बुधवार को विमुद्रीकृत नोटों के संबंध में घोषणा की थी कि 8 नवंबर 2016 के बाद चलन से बाहर किए गए नोटों में 99.3 प्रतिशत नोट बैंक को वापस लौट चुके हैं. आरबीआई ने 2017-18 की अपनी सालाना रपट में कहा कि चलन से बाहर हुए 500 और 1,000 रुपए के प्रतिबंधित नोटों की जांच प्रक्रिया पूरी होने के बाद पाया गया कि बैंक के पास वापस हुए कुल विमुद्रीकृत नोटों का मूल्य 15.3 लाख करोड़ रुपए है, जो आठ नवंबर, 2016 को कुल विमुद्रीकृत नोटों के मूल्य 15.4 लाख करोड़ रुपए का 99.3 फीसदी है. रपट में आरबीआई ने कहा है कि चलन से वापस हुए एसबीएन (विशिष्ट बैंक नोट) का कुल मूल्य 15,310.73 अरब रुपए है. अपनी सालाना रिपोर्ट में रिजर्व बैंक ने कहा है कि सत्यापन व समाधान के बाद आठ नवंबर, 2016 को एसबीएन (विशिष्ट बैंक नोट) का कुल मूल्य 15,417.93 अरब रुपए था.
द गार्जियन के अनुसार, नोटबंदी लागू करने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी समेत केंद्र सरकार के तमाम मंत्रियों ने इसके पक्ष में कहा था कि यह देश की अर्थव्यवस्था में आमूल-चूल बदलाव के लिए जरूरी कदम है. बैंकों और एटीएम सेंटरों पर लोगों के कतारों में होने पर खुद पीएम मोदी ने कुछ दिनों की मोहलत मांगते हुए कहा था कि नोटबंदी से देश में कैश-लेस व्यवस्था लागू करने में मदद मिलेगी, साथ ही अर्थव्यवस्था का डिजिटलीकरण किया जा सकेगा. वहीं, पीएम मोदी ने नोटबंदी को, टेरर-फंडिंग यानी आतंकवाद और नक्सलवाद के लिए धन मुहैया कराने वालों पर रोक लगाने वाला कदम भी बताया था. नोटबंदी देश में मौजूद काला धन को बाहर निकालने की बड़ी कवायद के तौर पर प्रचारित की गई. लेकिन बुधवार को जारी भारतीय रिजर्व की सालाना वार्षिक रिपोर्ट की मानें, तो चलन से बाहर किए गए नोटों में से 99.3 फीसदी का वापस लौटना, सरकार के काला धन के बारे में लगाए गए अनुमान के बिल्कुल उलट स्थिति है. इस पर टिप्पणी करते हुए पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा कि देश को नोटबंदी की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है. द गार्जियन के अनुसार, चिदंबरम ने ट्वीट करते हुए कहा, ‘नोटबंदी का देश की अर्थव्यवस्था पर व्यापक दुष्प्रभाव पड़ा है. जीडीपी में 1.5 प्रतिशत की गिरावट आई, यह सालाना 2.25 लाख करोड़ रुपए का सीधा नुकसान है. 100 से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. वहीं 15 करोड़ दैनिक वेतनभोगियों को कई हफ्तों तक रोजगार नहीं मिला. हजारों छोटे और मंझोले उद्योग-धंधे बंद हो गए. लाखों लोगों की नौकरियां चली गईं.’

 

डिजिटल लेन-देन में भी नहीं दिखा अपेक्षित सुधार
द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, नोटबंदी के बाद सरकार को उम्मीद थी कि देश में कैश-लेस यानी डिजिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा मिलेगा. वर्ष 2017 के शुरुआती महीनों में ऐसा दिखा भी, लेकिन यह दीर्घकालिक नहीं हो सका. रिजर्व बैंक ने कहा है कि डिजिटल ट्रांजेक्शन में वृद्धि के साथ-साथ बैंक नोट के इस्तेमाल में भी बढ़ोतरी देखी गई है. रिजर्व बैंक के अनुसार बैंक नोट के चलन में पिछले वर्ष की तुलना में 37.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गई है. वर्ष 2016 के पहले 500 और 1000 रुपए के नकली नोटों के पकड़े जाने की घटनाओं को देखते हुए नोटबंदी से उम्मीद की गई थी कि इस कवायद से नकली नोटों के अवैध प्रसार पर रोक लगेगी. लेकिन हाल के दिनों में देश में कई जगहों पर 500 और 2000 रुपए के नए नोटों की नकली खेप पकड़े जाने से यह धारणा भी धराशायी हो गई. द गार्जियन के अनुसार, नोटबंदी के फायदे और नुकसान बताते हुए अर्थशास्त्री गुरुचरण दास कहते हैं, ‘नोटबंदी से घरों में छुपाकर रखा गया पैसा बैंकों तक पहुंचा, यह काफी अच्छी बात थी. बैंकिंग सिस्टम में पैसा पहुंचने से अर्थव्यवस्था को ही फायदा होता है. साथ ही जिन लोगों ने अपने पैसे जमा कराए, वे भविष्य में कर-दाता होंगे. लेकिन नोटबंदी को लागू करने का तरीका सही नहीं था, जिसकी कीमत आर्थिक प्रगति में गिरावट आने से हमें उठानी पड़ी. खासकर बेरोजगारी की समस्या को जल्द से जल्द सुलझाने के लिए 8 प्रतिशत की दर से आर्थिक तरक्की जरूरी है.’

साभार- इंडियाडॉट कॉम