’11 साल सलाखों के पीछे’ :बिना गुनाह किए दहशतगर्द बने कयूम की किताब

अहमदाबाद: मुफ्ती अब्दुल कयूम को सुप्रीम कोर्ट ने गुजश्ता साल 2002 के अक्षरधाम मंदिर पर हुए दहशतगर्दाना हमले में आज़ाद कर दिया था। कयूम ने अपनी ज़िंदगी के 11 साल सलाखों पीछे काटे। इन्होंने कोई जुर्म नहीं किया था। कयूम ने गुजश्ता एक साल का पूरा वक्त 200 पेज की एक किताब लिखने में लगाया। इस किताब में इन्होंने रियासत में खुद के साथ हुई नाइंसाफी के दर्द को बयां किया है। किताब अगले हफ्ते रिलीज़ होगी।

इस किताब का टाइटल है, ’11 साल सलाखों के पीछे’। इस किताब में कयूम ने पूरी तफ्सील (डिटेल) दी है कि बिना किसी सबूत उन्हें कैसे दहशतगर्द होने का तमगा थमा दिया गया। कयूम ने एनडीटीवी से कहा, ‘यह किताब सिर्फ मुसलमानो के लिए नहीं है। यह किताब उन सभी के लिए है जो इस मुल्क का इस्तेहसाल ज़दा तब्का है।

अगर इस किताब के जरिए किसी एक शख्स को भी स्टेट की ज्यादती से जूझने में मदद मिलती है तो मुझे खुशी होगी। यह मेरे लिए सबसे बड़ी कामयाबी होगी।’

2003 में जब कयूम को गिरफ्तार किया गया था तब वह 29 साल के थे। इसके एक साल पहले अक्षरधाम मंदिर पर अटैक हुआ था। पुलिस ने इन पर इल्ज़ाम लगाया था कि इन्होंने अक्षरधाम पर हमले करने वाले दोनों दहशतगर्दो को खत लिखा था। पुलिस ने इन दोनों दहशतगर्दों को मार गिराया था। पुलिस ने दावा था कि कयूम का लिखा खत उनके पास है।

गुजरात के लोअर कोर्ट ने कयूम समेत दो लोगों को मुजरिम करार दिया था। इन्हें मौत की सजा दी गई थी। लेकिन गुजश्ता साल 17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें सारे इल्ज़ामात से आज़ाद कर दिया। अपनी रिहाई के बाद 40 साल के मदरसा टीचर अपने बची ज़िंदगी को सहेजने में जुटे हैं।

जब इन्हें गिरफ्तार किया गया था तब से 12 साल गुजर चुके हैं। तब इनका बेटा मुश्किल से 10 महीने का था। इनकी बीवी ने न सिर्फ अपने बच्चों के लिए जद्दो ज़हद किया बल्कि वह ‘दहशतगर्द की बीवी’ का धब्बा लेकर जिंदा रहने के लिए मजबूर थीं।

कयूम की बीवी ने कहा की, ‘मेरा बेटा जैसे-जैसे बड़ा हो रहा था वह मुसलसल अपने वालिद के बारे में सवाल पूछता रहा। हर दिन वह स्कूल जाने से पहले पूछता था कि पापा घर कब आएंगे। मैं उस दर्द को बयां नहीं कर सकती। हर पल दर्द के साथ जी हूं।’ कयूम की किताब बिना किसी गुनाह के सलाखों के पीछे कटे एक दहा से ज्यादा वक्त का जिंदा दस्तावेज है। उनके लिए किताब लिखना आसान था लेकिन इतनी हिम्मत नहीं है कि वह इस किताब को पढ़ सकें।