महबूबनगर 03 अक्टूबर: हिन्दुस्तान में तमाम तबक़ात को मसावी हुक़ूक़ हासिल है और हर तबक़ा से ताल्लुक़ रखने वाले को अपने हक़ के लिए जद्द-ओ-जहद करने की आज़ादी भी दस्तूर ने फ़राहम की है। मुस्लमानों को अपनी मआशरती-ओ-तालीमी तरक़्क़ी के लिए ज़रूरी हैके वो जद्द-ओ-जहद का रास्ता इख़तियार करें और हुकूमत के 12 फ़ीसद तहफ़्फुज़ात के वादे को काबिले अमल बनाने पर तवज्जा करें।
आमिर अली ख़ान न्यूज़ एडीटर सियासत ने महबूबनगर में मुनाक़िदा सेमीनार से ख़िताब के दौरान ये बात कही। उन्होंने बताया कि अगर तेलंगाना में तहफ़्फुज़ात की फ़राहमी के बग़ैर मख़लवा जायदादों पर तक़र्रुत शुरू होते हैं तो आइन्दा 20 बरसों तक भी तहफ़्फुज़ात मुस्लमानों के लिए बेफ़ैज़ साबित होंगे क्युंकि जब मख़लवा जायदादों के तक़र्रुर में ही मुस्लमानों को हिस्सा हासिल नहीं होगा तो तहफ़्फुज़ात कोई मअनी नहीं रखेंगे।
आमिर अली ख़ान ने मदीना गांधीजी में मुनाक़िदा इस सेमीनार में कहा कि सियासत की तरफ से शुरू करदा मुहिम का मक़सद सिर्फ अवाम में शऊर उजागर करना और हुकूमत को इंतेख़ाबात के दौरान किए गए वादों की याद-दहानी करवाना है।
उन्होंने बताया कि जब तक ज़ालिम को ज़ुलम से रोकते हुए हक़ के पर्चम को बुलंद नहीं किया जाता कामयाबी हासिल करना दुशवार है। आमिर ख़ान ने कहा कि ख़ाहिशात नफ़सानी के ख़ातमे के ज़रीये अपनी ज़िंदगी को अल्लाह और इस के रसूल (स०) की मर्ज़ी के ताबे करना ही दरहक़ीक़त ईसार-ओ-क़ुर्बानी है। उन्होंने बताया कि गांधी जी ने इस्लाम का गहराई से मुताला किया था और उन्होंने इस्लाम और सहाबा किराम की सीरत पर उबूर हासिल किया था जिसका नतीजा ये हुआ कि उनकी तालीमात-ओ-अक़्वाल में इस्लामी तालीमात की अक्कासी होती है।
उन्होंने कहा कि गांधीजी ने हिन्दुस्तान को सेकुलरिज्म का गहवारा क़रार देते हुए हर किसी को मसावी हुक़ूक़ की वकालत की थी। शुरका को न्यूज़ एडीटर सियासत ने क़ुरआन-ए-मजीद की आयत मुबारका और तर्जुमा पढ़ने की तलक़ीन करते हुए कहा कि रोज़ाना कम अज़ कम 3 आयात मआ तर्जुमा पढ़ी जाएं तो इस से रूह को पाकीज़गी हासिल होगी।
आमिर अली ख़ान ने तेलंगाना के मुख़्तलिफ़ अज़ला में सियासत की शुरू करदा तहफ़्फुज़ात की तहरीक पर अवामी रद्द-ए-अमल को ख़ुश आइंद क़रार देते हुए कहा कि मिल्लत को चाहीए कि वो तहफ़्फुज़ात की ज़रूरत पर अवाम में शऊर उजागर करें क्युंकि 12 फ़ीसद तहफ़्फुज़ात के हुसूल के लिए हुकूमत पर दबाव डालना मुस्लमानों की ज़िम्मेदारी है और वो इस ज़िम्मेदारी को पूरा करके आइन्दा नसलों की तरक़्क़ी को यक़ीनी बना सकते हैं।