1500 अपार्टमेंट कब्जे में लेगी हुकूमत, 5 हजार अहले खाना हो सकत हैं बेघर

रांची : दारुल हुकूमत के 5000 खानदान बेघर हो सकते हैं। जिला इंतेजामिया 200 एकड़ जमीन पर बने 1500 अपार्टमेंट, होटल, इमारत, मकान के खिलाफ कब्जा की कार्रवाई की तैयारी में है। यानी हुकूमत या तो उसे अपने कब्जे में लेगी या फिर उसे तोड़ देगी। वजह यह है कि ये तमाम तामीर खासमहाल जमीन पर हुए हैं। 30 साल की लीज पर ली गई इस जमीन का 48 सालों से रिन्यूअल नहीं कराया गया है। इससे सरकार को करोड़ों रुपए के आमदनी का नुकसान हो रहा है। डीसीएलआर संजय कुमार के मुताबिक, रांची जिले में कुल 400 एकड़ खासमहाल जमीन है। इसमें आधे से ज़्यादा हिस्से पर तामीर किया गया है। 1591 लीज लेने वालों में महज़ 14 ही लीज नेनुवल कराते आ रहे हैं।
बाकी का कोई अता-पता नहीं है। इन लीज लेने वालों को 15 दिन का अल्टीमेटम दिया गया है। लीज की शर्तों के मुताबिक, मौजूदा में खासमहाल जमीन सरकार की है। अगर लीज लेने वाले इस जमीन का रिन्यूअल कराते हैं तो उनके नाम की जमीन बरकरार रहेगी, नहीं तो हुकूमत को मजबूर होकर खासमहाल की जमीन से कब्जा हटाना होगा। कबीले ज़िक्र है कि वजीरे आला बार-बार खासमहाल जमीन की हालत की जानकारी मांग रहे हैं, लेकिन लीज लेने वाले सामने नहीं आ रहे हैं।

पूरे रियासत में खासमहाल जमीन है। इसमें सबसे ज़्यादा पलामू जिले में खासमहाल जमीन है। एक तरह से देखा जाए तो पूरा मेदिनीनगर खासमहाल जमीन पर बसा है। मुश्तरका बिहार में मौजूदा वज़ीर इंदरसिंह नामधारी ने खासमहाल जमीन की लीज कब्जा करने वालों के नाम कराने के लिए काफी मशक्कत की थी, पर कामयाब नहीं हुए। पलामू शहर की कुछ जमीन नामधारी के कब्जे में है।

बिहार सरकार के एक में यह निज़ाम दी गई कि लीज लेने वाले अपनी जमीन दूसरे को ट्रांसफर कर सकते हैं, लेकिन इसके बदले उन्हें जमीन की बाजार शरह से ज़्यादा रकम हुकूमत के खाते में जमा करानी होगी। इस निज़ाम के बाद लोगों ने खासमहाल जमीन लीज लेने वालों से औने-पौने दाम पर एग्रीमेंट करा लिया।

खासमहाल जमीन अंग्रेज हुकूमत की निज़ाम है। उस वक्त राजा-रजवाड़े और जमींदारों के कब्जे वाली जमीन अंग्रेज हुकूमत ने लेकर वहां हॉस्पिटल, सरकारी दफ्तर, रेलवे स्टेशन वगैरह के दफ्तर खोल दिए थे। साथ ही ज़िंदगी गुज़र बसर और खेती-बारी करने के लिए रैयतों को भी मुफ्त में 30 साल की लीज पर जमीन दे दी थी। इस शर्त पर कि लीज मुद्दत खत्म होने से पहले वे रिन्यूअल करा लेंगे, नहीं तो सरकार को जमीन लौटानी होगी। बाद में कुछ को छोड़कर ज़्यादातर रैयतों में लीजरिन्यूअल में दिलचस्पी नहीं ली। जिन्होंने इसे संजीदगी से लिया, वे रिन्यूअल कराते रहे। 1966 के बाद बहुत कम लोगों ने लीज का रिन्यूअल कराने में दिलचस्पी ली।

साल 1966 के बाद लीज लेने वालों ने अपने नाम पर ली खासमहाल जमीन बेचनी शुरू कर दी। हल यह है कि आधी से ज़्यादा जमीन बेच दी गई है। हुकूमत की शर्तों के मुताबिक, अगर लीज लेने वालों ने जमीन बेच दी है तो मौजूदा बाजार कीमत के मुताबिक आधी रकम उसे हुकूमत को देनी होगी। इधर, जिन लाेगों ने खासमहाल जमीन खरीदी है, उनके पास कागजात नहीं हैं। सिर्फ एग्रीमेंट किया हुआ है। कुछ ने रजिस्ट्री भी कराई है, लेकिन खासमहाल जमीन की वजह से उसका म्यूटेशन नहीं हो सका है।