1993 मुंबई ब्लास्ट : हाई कोर्ट ने रुबीना मेनन की पैरोल याचिका ख़ारिज की

मुंबई: बाम्बे हाई कोर्ट ने 1993 के मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट के दोषी रुबीना सुलेमान मेमन की याचिका खारिज कर दी है| अपनी याचिका में रुबीना ने पैरोल पर रिहाई की मांग की थी |

हाल ही में एक फैसले में न्यायमूर्ति वी के ताहिलरमानी और ए एम बदर की एक पीठ ने कहा कि रुबीना को आतंकवादी गतिविधियों में उसकी संलिप्तता के लिए एक टाडा अदालत ने दोषी करार दिया गया था | इस लिए हम उन्हें पैरोल पर रिहा नहीं कर सकते हैं |टाइगर मेमन की भाभी रुबीना मार्च 1993 में हुए बम धमाको में शामिल थीं| इन बम धमाको में 257 लोगों की जान गई और 700 से अधिक अन्य घायल हो गए थे|

2006 में मुंबई की एक टाडा अदालत ने रुबीना सहित परिवार के तीन अन्य सदस्यों के साथ-साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी | जबकि उसके पति सुलेमान को सबूतों के अभाव के कारण बरी कर दिया गया था | और उसके पति के भाई याकूब को आतंकवाद के आरोपों की वजह से फांसी दे दी गयी थी |

रुबीना, वर्तमान में पुणे की यरवदा जेल में बंद है | उन्होंने  22 जनवरी 2015 को पैरोल पर रिहाई लिए जेल अधिकारियों को आवेदन किया था | हालांकि, उसकी याचिका को 15 जनवरी, 2016 को खारिज कर दिया गया था | रुबीना की एक अपील को इस साल मई में भी बर्खास्त कर दी गयी थी |

इसके बाद उन्होंने एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी जिसको  पिछले सप्ताह खारिज कर दिया गया है|रुबीना के वकील फरहाना शाह ने तर्क दिया था कि रुबीना के तीन सह आरोपी जिन्हें इसी मामले में टाडा के तहत दोषी ठहराया गया है | उनको पैरोल पर जेल से रिहा कर दिया गया है| जिनमें सरदार शाहवली खान को 9 जून 2014 को , ईसा अब्दुल रजाक मेमन को 10 जून 2014 को और नासिर अब्दुल कादर को 27 जून 2014 को रिहा किया गया था | फरहाना ने कहा कि जिन तीन सह आरोपियों को  1993 के बम विस्फोट मामले में रुबीना के साथ रखा गया है उनको थोड़े दिन के लिए रिहा कर दिया गया है | इसलिए उनकी याचिकाकर्ता को भी ये सुविधा दी जानी चाहिए|

अतिरिक्त लोक अभियोजक एच जे डेडिया ने कहा कि रुबीना की  थोड़े दिन की रिहाई के लिए याचिका को कारागार नियम, 1959 के नियम 4 (4) के तहत खारिज किया गया है | इस नियम के मुताबिक़ सामाजिक शांति और सौहार्द बनाये रखने की वजह से अगर क़ैदी की पैरोल पर रिहाई के लिए पुलिस कमिश्नर और डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट से सलाह नहीं मिली है उसको कुछ दिन की रिहाई नहीं दी जा सकती है |

अभियोजक ने कहा कि इसी आधार पर रुबीना की याचिका को ख़ारिज किया गया क्यूंकि याचिकाकर्ता याकूब मेमन के भाई की पत्नी है | वह अपनी कुछ दिन की छुट्टियों को मुंबई के महिम इलाक़े में बिताएंगी वहां सभी समुदायों के लोग रहते हैं|आदेश में कहा गया कि अगर उनको पर पैरोल लोगों पर रिहा किया गया तो बड़ी संख्या में लोग उनसे मिलने आयेंगे जिसकी वजह से एक कानून और व्यवस्था की समस्या हो जाएगी  | विशेष रूप से इस तथ्य के मद्देनजर कि याकूब मेमन के अंतिम संस्कार के दौरान भी भारी भीड़ मौजूद थी |

अभियोजक ने ये भी कहा कि रुबीना को कारागार नियम 4 (13) के तहत टाडा के तहत दोषी पाया गया है इसलिए उनको पैरोल पर रिहा नहीं किया जा सकता | इस नियम के तहत जो कैदी आतंकवादी अपराध के लिए दोषी हैं उसको पैरोल पर रिहा नहीं किया जा सकता है | अभियोजक के तर्क को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने रुबीना मेमन की पैरोल याचिका को खारिज कर दिया|