2 G केस में वज़ीर ए आज़म के दफ्तर की सर जनिश

नई दिल्ली,०१ फरवरी (पी टी आई) 2G स्क़ाम मुक़द्दमा में हुकूमत को आज उस वक़्त पशेमानी का सामना करना पड़ा जब सुप्रीम कोर्ट ने वज़ीर आज़म के दफ़्तर की सरज़निश की और कहा कि किसी ख़ानगी शहरी को अवामी ख़िदमतगुज़ार के ख़िलाफ़ क़ानूनी चाराजोई की इजाज़त के बारे में अंदरून चार माह फैसला किया जाना चाहीए ।

2G केस में इस वक़्त के वज़ीर टेलीकॉम ए राजा के ख़िलाफ़ इस्तिग़ासा की कार्रवाई पर फ़ैसला करने में नाकामी केलिए सुप्रीम कोर्ट ने आज वज़ीर-ए-आज़म को रास्त तौर पर ज़िम्मेदार ना ठहराते हुए वज़ीर-ए-आज़म के दफ़्तर (पी ऐम ओ) की सरज़निश की इस के इलावा किसी रिश्वतखोर अवामी ख़िदमात गुज़ार के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई के आग़ाज़ पर फ़ैसला करने के लिए चार माह की मोहलत मुक़र्रर कर दी है।

जनता पार्टी के सदर सुब्रामणयम स्वामी की दिल्ली हाइकोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ दायर करदा दरख़ास्त को क़बूल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रिश्वत सतानी के मुआमलात में किसी अवामी ख़िदमत गुज़ार के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की इजाज़त तलबी से मुताल्लिक़ शहरी के हक़ को जायज़ क़रार दिया।

वाज़िह रहे कि दिल्ली हाइकोर्ट ने राजा के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई के लिए वज़ीर-ए-आज़म को हिदायत करने से मुताल्लिक़ डाक्टर स्वामी की दरख़ास्त को मुस्तर्द कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि किसी ख़ानगी शहरी को किसी अवामी ख़िदमत गुज़ार के ख़िलाफ़ रिश्वत सतानी मुआमला में मुक़द्दमा चलाने की इजाज़त तलब करने का जायज़ हक़ हासिल है।

अदालत-ए-उज़्मा ने वज़ीर-ए-आज़म के दफ़्तर (पी ऐम ओ) पर इल्ज़ाम आइद किया कि वो राजा के ख़िलाफ़ मुक़द्दमा चलाने केलिए वज़ीर-ए-आज़म से मंज़ूरी लेने से मुताल्लिक़ दरख़ास्त पर ख़ामोश बैठा रहा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इल्ज़ामात की संगीनी पर वज़ीर-ए-आज़म को वाक़िफ़ कराने के पाबंद लोग अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में नाकाम होगए।

अगर वज़ीर-ए-आज़म को इस सूरत-ए-हाल की संगीनी से बा‍ ख़बर किया जाता तो वो इस ज़िमन में कोई फ़ैसला कर सकते थे, लेकिन वो लोग (वज़ीर-ए-आज़म का दफ़्तर) ऐसा करने में नाकाम हुए हैं।

अटार्नी जनरल जी ई वाहना वित्ती की बेहस-ओ-दलायल को मुस्तर्द करते हुए जस्टिस जी एस सिंघवी और जस्टिस ए के गंगोली पर मुश्तमिल बंच ने मुक़द्दमा चलाने की दरख़ास्त के लिए डाक्टर सुब्रामणियम स्वामी के जवाज़ और दलायल को दरुस्त क़रार दिया।

बंच ने रिमार्क किया कि ये बड़ी बदबख़ती की बात है कि जिन से वज़ीर-ए-आज़म को मुनासिब मश्वरा दिए जाने और तमाम हक़ायक़-ओ-क़ानूनी मौक़िफ़ पेश करने की तवक़्क़ो थी वो ऐसा करने में नाकाम हो गए हैं।

हमें इस बात पर कोई शक-ओ-शुबा नहीं हैकि अगर वज़ीर-ए-आज़म इस मसला पर तमाम हक़ायक़ और क़ानूनी मौक़िफ़ और दरख़ास्त गुज़ार की तरफ़ से पेश करदा तफ़सीलात से बाख़बर किया जाता तो यक़ीनन वो इस ज़िमन में कोई मुनासिब फ़ैसला कर सकते थे और इस मसला को एक साल से ज़ाइद अर्सा तक लेत-ओ-लाल का शिकार रहने ना दिए होते थे।

अदालत अज़मी ने कहा कि चीफ़ वीजलनस कमिशनर (सी वि सी) ने तहक़ीक़ात के बाद अपनी रिपोर्ट सी बी आई को पेश किया था ताकि 2G स्पेक्टरम स्क़ाम मैं मुजरिमाना साज़िश के बारे में मुकम्मल तहक़ीक़ात की जाएं।

बंच ने मज़ीद कहा कि पेश करदा मवाद से हैं भी ये ज़ाहिर नहीं होता कि सी बी आई ने वज़ीर-ए-आज़म की ईमा पर इस ज़िमन में कोई मुक़द्दमा दर्ज किया था या तहक़ीक़ात का आग़ाज़ किया था।

सुप्रीम कोर्ट बंच ने हुकूमत के इस इस्तेदलाल को भी मुस्तर्द कर दिया कि जिस में किसी अवामी ख़िदमत गुज़ार के ख़िलाफ़ रिश्वत सतानी के ज़िमन में मुक़द्दमा चलाने की इजाज़त तलब करने के लिए सुब्रामणियम की शख़्सियत के जवाज़ को चैलेंज किया गया था।

अदालत ने मज़ीद कहा कि 1988-ए-के क़ानून इंसिदाद रिश्वत सतानी और 1973 के फ़ौजदारी ज़ाबता में ऐसी कोई दफ़ा नहीं है जो किसी शहरी को इस अवामी ख़िदमत गुज़ार के ख़िलाफ़ शकात करने से रोक सकती है जिस (अवामी ख़िदमत गुज़ार) ने मुबय्यना तौर पर किसी जुर्म का इर्तिकाब किया है।

चुनांचे अदालत-ए-उज़्मा भी अटार्नी जनरल के इस इस्तिदलाल को मुस्तर्द करती हैकि राजा के बारे में शिकायत करने केलिए सुब्रामणियम स्वामी की कोई शख़्सी हैसियत नहीं थी और ना ही कोई क़ानूनी जवाज़ था। अदालत-ए-उज़्मा ने मुअय्यना मुद्दत में क़ानूनी कार्रवाई चलाने की हिदायत भी की।

मज़ीद बरआँ ये कहा कि क़ानूनी इंसिदाद रिश्वत सतानी के तहत इस ज़िमन में किसी मुअय्यना मुद्दत का ताय्युन नहीं किया गया है। पार्लीमैंट इस क़ानून की दफ़ा 19 के तहत वक़्त के ताय्युन पर ग़ौर कर सकता है।

वज़ीर-ए-आज़म की जानिब से इस मसला को निमटने के अंदाज़ के बारे में बंच ने कहा कि इन के ओहदा की बुनियादी नौईयत के मुताबिक़ वज़ीर से ये तवक़्क़ो नहीं की जा सकती कि वो अपने इजलास पर पेश किए जाने वाले तमाम उमूर-ओ-मसाइल का लम्हा बह लम्हा और सतर बह सतर जायज़ा ले सकें। चुनांचे उन्हें अपने मुशीरों और ओहदेदारों पर इन्हिसार करना पड़ता है।

शेक्सपीयर के ड्रामा का हवाला

सुप्रीम कोर्ट ने 2G मुक़द्दमा में ए राजा और दीगर के ख़िलाफ़ क़ानूनी चाराजोई की इजाज़त देने के मुआमला में वज़ीर-ए-आज़म के मौक़िफ़ पर विलियम शेक्सपीयर के ड्रामा “Kind Henry IV” का हवाला दिया और बिलख़सूस इस क़ौल का इआदा किया कि जिस सर पर ताज रखा जाता है, वो यक़ीनन दुशवार किन हालात से दो-चार होता है ।

सुप्रीम कोर्ट डीवीज़न बंच ने क़ानूनी चाराजोई की इजाज़त का फैसला करने में वज़ीर-ए-आज़म के दफ़्तर की ताख़ीर पर इस क़ौल का हवाला दिया। बंच ने कहा कि इजाज़त देने में ताख़ीर अफ़सोसनाक है हालाँकि वज़ीर-ए-आज़म के ख़िलाफ़ एतिमाद के फ़ुक़दान यह नापाक इरादों का कोई इल्ज़ाम नहीं पाया जाता।

दरख़ास्त गुज़ार ने ये इल्ज़ाम आइद किया कि वज़ीर-ए-आज़म की जानिब से दानिस्ता तौर पर ताख़ीर की गई है, तब जस्टिस गंगोली ने कहा कि हमारी जमहूरी सियासत में वज़ीर-ए-आज़म के मौक़िफ़ को इख़तिसार के साथियों बयान किया जा सकता है कि जिस सर पर ताज रखा जाता है, वो यक़ीनन दुशवार किन हालात से दो-चार होता है ।