‘हमें एक लफ्ज बोलने से पहले भी सोचना पड़ता है…’

“हमारे देश ने इस साल हमे ईदी दी है…”

सभी इंसान जन्म से आज़ाद हैं और समान अधिकार और आदर पाने के हकदार हैं. उन्हें सोचने-समझने की ताकत और ज़मीर के साथ बनाया गया है. इस नेक आदर्श के बावजूद नफरत और भेदभाव का सिलसिला चलता आया है और इंसानों पर कहर ढा रहा है.

इसका यह मतलब नहीं कि हमारे लिए कोई उम्मीद नहीं. हालाँकि यह सच है कि हम अपने चारों तरफ फैली नफरत और भेदभाव को तो नहीं मिटा सकते, लेकिन हम अपने अंदर से इसे निकाल ज़रूर सकते हैं.

लोगों के बर्ताव में बदलाव आया है. डर का माहौल है. असहिष्णुता बढ़ रही है और नफरत फैलाने वाली ताकत बढ़ रही है. हर तरफ फैले इस नफरत पर द क्विंट ने एक विडिओ प्रकाशित किया है.

23 साल की एक कलाकार ने भरतनाट्यम और कविताओं के माध्यम से दिल्ली की सड़कों पर इस नफरत और प्रेम को दर्शाने की सराहनीय पहल की है.

लोगों को समाज के एक तल्ख़ हक़ीक़त को वो अपने कविताओं और घुँघरुओं से समाज के असल मुद्दों की तरफ लोगों को मोड़ने की जी तोड़ मेहनत में जुटी है. घर वापसी, लव जिहाद, गोरक्षा, आत्मरक्षा शिविरों के नाम पर समुदाय विशेष के खिलाफ लंबे अरसे से बहुसंख्यकों के मन बैठाई जा रही बातें अब हिंसा के रूप में अभिव्यक्त हो रही हैं. जुनैद, पहलू खान, मुन्ना अंसारी और मोहम्मद इखलाक जैसे लोगों को भीड़ अपना निशाना बना रही है.

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