3 साल से आप और बीजेपी के झगड़ों से त्रस्त दिल्लीवासियों के लिए राहत

दिल्ली के अधिकारक्षेत्र विवाद पर आये सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वराज इंडिया स्वागत करती है। हम मानते हैं कि अदालत के इस निर्णय को किसी पार्टी की हार या जीत के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।

स्वराज इंडिया हमेशा से कहती रही है कि एक तरफ जहां उपराज्यपाल एक पार्टी के एजेंट की तरह काम कर रहे थे वहीं आम पार्टी की दिल्ली सरकार अपनी हर विफ़लता को इसी एक पर्दे से छिपाना चाहती थी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद उम्मीद है कि ना ही सकारत्मक कार्यों में रुकावटें आएंगी और न ही सरकारी विफ़लताओं के लिए बहानेबाज़ी होगी।

स्वराज इंडिया मानती है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना चाहिए। लेकिन ये काम संसद का है जिसमें राजनीतिक पार्टियों को भी अहम भूमिका निभानी होगी। अदालत अपने फैसले के जरिये सिर्फ़ वर्तमान संविधानिक स्थिति की व्याख्या कर सकती है। जो कि उच्चत्तम न्यायालय ने इस मामले में बिल्कुल सही और स्पष्ट तरीके से किया है।

अदालत ने अपने निर्णय में कहा है कि दिल्ली के उपराज्यपाल मंत्री-परिषद की सलाह पर ही काम करेंगे और उनके काम में अड़ंगे नहीं लगा सकते। कोर्ट के अनुसार दिल्ली के फैसलों पर उपराज्यपाल की सहमति आवश्यक नहीं होगी लेकिन दिल्ली सरकार द्वारा हर निर्णय और काम की जानकारी एलजी को देना अनिवार्य होगा।

साथ ही जिन मामलों में उपराज्यपाल असहमत हों, उन्हें वो राष्ट्रपति को भेज सकते हैं। यानी कि ऐसे मसलों पर अंतिम फ़ैसला केंद्र का ही होगा। उच्च्तम न्यायालय के इस फ़ैसले की मूलभावना यह है कि उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री समन्वय, आपसी समझ और परस्पर सम्मान के साथ दिल्ली के हित में काम करें।