वाशिंगटन : अमेरिका ने एक अहम फैसला लेते हुए इस्लामाबाद के लिए नई मुश्किलें पैदा कर दी हैं। एजेंसी की खबरों के मुताबिक, अमेरिका ने आतंकवाद से जंग के लिए पाकिस्तान को दी जाने वाली 30 करोड़ की सालाना मदद भी रोक दी है। जाहिर है कि अमेरिका की ओर से इस फैसले के बाद पाकिस्तान पूरी दुनिया में आतंकवाद को लेकर घिर गया है। ओबामा प्रशासन पाकिस्तान को दो टूक शब्दों में कहा है कि आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तान की जंग तब तक नहीं खत्म होगी जब तक वह अपनी जमीन से दूसरे देशों पर हमला करनेवाले गिरोहों को बर्दाश्त करने की नीति नहीं बदलता। प्रशासन ने यह बयान अमेरिकी सीनेट की विदेश मामलों की समिति के सामने अफगानिस्तान पर हुई एक बहस के दौरान दिया है।
अफगानिस्तान-पाकिस्तान मामलों पर अमेरिका के विशेष दूत रिचर्ड ऑलसन का कहना था कि पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ बातचीत में यह स्पष्ट किया जा चुका है कि उन्हें बगैर भेदभाव के सभी चरमपंथी गुटों को निशाना बनाना होगा। ऑलसन का यह भी कहना था, ‘पाकिस्तान को सभी पनाहगाह खत्म करने होंगे और उन गुटों के खिलाफ भी कार्रवाई करनी होगी जो पड़ोसी मुल्कों को निशाना बनाते हैं।’
कुछ सीनेटरों की राय थी कि पाकिस्तान भरोसेमंद साझेदार नहीं है और हक्क़ानी नेटवर्क का साथ देकर अफगानिस्तान में अमेरिका के खिलाफ काम कर रहा है। उसके जवाब में ऑलसन का कहना था, अगर पाकिस्तान इन गिरोहों के खिलाफ कार्रवाई करता है तो इससे इलाके में स्थिरता कायम होगी, पड़ोसी देशों और अमेंरिका के साथ उसके ताल्लुकात बेहतर होंगे। लेकिन अगर पाकिस्तान ऐसा नहीं करता है तो वह पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़ जाएगा। ऑलसन ने हक्कानी नेटवर्क और भारत के खिलाफ काम कर रहे गुटों पर कार्रवाई नहीं होने की एक वजह यह भी बताई कि पाकिस्तान देश के अंदर काम कर रहे चरमपंथी गुटों के साथ-साथ दूसरे गुटों के साथ भी एक नई जंग नहीं शुरू करना चाहता।
पिछले महीनों में अमेरिकी कांग्रेस में पाकिस्तान के खिलाफ नाराजगी बढ़ी है और उसका असर एफ-16 लड़ाकू विमानों की बिक्री और तीस करोड़ डॉलर की मदद पर लगाई गई रोक पर भी नजऱ आया है। पाकिस्तान की शिकायत यह रही है कि वह चरमपंथ के खिलाफ जितनी भी कार्रवाई करे उससे हमेशा और करने की उम्मीद की जाती है।
खास बात यह है कि भारत की तरह अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान को वैश्विक मंचों पर घेरा है, जिससे पाकिस्तान आंतकवाद पर पूरी दुनिया में अकेला पड़ गया है। बता दें कि जिस तरह से भारत पिछले कुछ दशकों में आतंकवाद से जूझ रहाहै, वैसे ही अफगानिस्तान भी तालिबान के शासन के अंत के बाद अभी भी आतंकवाद से जूझ रहा है और इसमें हाथ पाक प्रायोजित आतंकवाद का ही बताया जा रहा है। इसी के दृष्टिगत भारत और अफगानिस्तान ने मिलकर फैसला लिया है कि दोनों ही देशों की सरकारें आतंकवाद के सभी प्रायोजकों, पनाहगाहों, आतंकी कैंपों और ठिकानों को खत्म करने का संकल्प लिया है।