नुमाइंदा ख़ुसूसी शहर के मुस्लिम अक्सरीयती इलाक़े कामाटी पूरा में इंतिहाई वसीअ-ओ-अरीज़ अराज़ी पर गर्वनमेंट सिविल डिसपेंसरी की आला शान इमारत खड़ी है । इस दवाख़ाना की तामीर का इफ़्तिताह साबिक़ वज़ीर आला एन चंद्रा बाबू नायडू के दौर-ए-वज़ारत 2003 में हुआ था । क़ुली क़ुतुब शाह अर्बन डेवलपमेन्ट अथॉरीटी की जानिब से इस दवाखाने में 30 बिस्तरों के फ़राहम करने का मंसूबा था । मगर अफ़सोस कि आज इस दवाखाने में 30 तो दूर की बात वही 3 बिस्तर भी नज़र नहीं आते ।
ये दवाख़ाना पालम दवाख़ाना के नाम से जाना जाता है । आज से तक़रीबन 50 साल कब्ल मद्रास से पालम नाम के एक तजरबा कार डाक्टर यहां आए थे । जो प्लेग के ईलाज के हवाले से माहिर माने जाते थे । शहर के कोने कोने से उन के पास मरीज़ आते थे । अल्लाह पाक ने उन के हाथ में ज़बरदस्त शिफ़ा रखी थी । उन्ही के नाम से ये दवाख़ाना भी पालम दवाखाने से मशहूर होगया । ये दवाख़ाना तक़रीबन एक एकड़ अराज़ी पर वाक़ै है ।
इस की शानदार इमारत और महल वक़ूअ को देखकर बिलकुल महसूस नहीं होता कि ये 30 बिस्तरों से कम का दवाख़ाना होगा । एसा लगता है कि ये अच्छा ख़ासा सरकारी दवाख़ाना होगा । जहां मुक़ामी ख़वातीन की ज़चगीयां भी की जाती होंगी । लेकिन एसा कुछ नहीं है । दौरान मुआइना हम ने देखा कि इमारत शानदार होने के बावजूद अंदर एक भी बिस्तर नहीं ।
यानी इफ़्तिताह के मौक़ा पर लगाई गई तख़्ती में जली अलफ़ाज़ में जो लिखा गया था कि ये दवाख़ाना 30 बिस्तरों पर मुश्तमिल है । सिर्फ एक झूट , धोका और लोगों के साथ एक भोंडा मज़ाक़ था । दवाख़ाना ना सिर्फ बिस्तरों से महरूम है बल्कि आप को अदवियात भी यहां नज़र ना आएंगी । नीज़ आप को ताज्जुब होगा कि इस दवाखाने में सिर्फ चार अफ़राद पर मुश्तमिल एक स्टाफ़ और अमला है ।
दवाखाने के बाहर नसब शूदा काली तख़्ती में सफेद हुरूफ़ के साथ दवाखाने के औक़ात भी दर्ज हैं कि सुबह 9 ता दोपहर 12 बजे और शाम 4 ता 6 बजे मरीज़ों की तशख़ीस की जाएगी लेकिन इस मुआमला में भी अमल नदारद है । डाक्टरज़ सिर्फ सुबह के औक़ात में ही बैठते हैं और शाम को वहां कोई डाक्टर मौजूद नहीं रहता और इस में भी सिर्फ बुख़ार , खांसी , ज़ुकाम जैसी छोटी मोटी बीमारियों की दवाएं दी जाती हैं । जब कि मुक़ामी अफ़राद के मुताबिक़ कभी इस में कोढ़ , जज़ाम , टी बी और ख़ारिश जैसी ख़तरनाक बीमारियों का भी बेहतर ईलाज-ओ-मुआलिजा किया जाता था ।
मैडीकल ऑफीसर डाक्टर शोभा देवी के मुताबिक़ मादा , खसरा , ज़ियाबीतिस और दीगर अमराज़ के शिकार अफ़राद क़िला गोलकुंडा से यहां ईलाज के लिए आते थे । लेकिन हुकूमत की जानिब से दवाखाने को नज़र अंदाज किए जाने की वजह से यहां मरीज़ों की शिरकत की कोई सहूलत फ़राहम नहीं है । मुक़ामी हज़रात पराईवेट हॉस्पिटल का रुख करने पर मजबूर हैं ।
क़ारईन ! इस दवाखाने में रुजू होने वाले मरीज़ों की कसरत का अंदाज़ा इस से लगाया जा सकता है कि 2011 मैं 10 हज़ार 765 मरीज़ों ने इस दवाखाने से दवा ली और रोज़ाना 250 मरीज़ दवा के लिए यहां आते हैं । मरीज़ों की सालाना तादाद बाहर नसब बोर्ड पर लिख दी जाती है । ताहम इस दवाखाने में अच्छी अदवियात ना होने की बिना पर मुक़ामी अफ़राद को मुश्किलात का सामना है ।
कामाटी पूरा बाशिंदा , जी सुरेश ने बताया कि आज से दो साल कब्ल मुझे टाई फ़ाएड होगया था । 3000 रुपये सुदी क़र्ज़ लेकर एक ख़ानगी दवाखाने में मैं ने ईलाज कराया । बदक़िस्मती से फिर ये बीमारी लौट आई । हमारे घर के रूबरू इस अज़ीम उल-शान सरकारी दवाखाने का क्या फ़ायदा है । जब वो हमारे काम का ही नहीं । इस में कोई सहूलत ही मौजूद नहीं ।
मुक़ामी अफ़राद और दवाख़ाना इंतिज़ामीया ने बताया कि इस दवाखाने में कोई चौकीदार ना होने की वजह से चोरी की वारदात भी होती रहती है । अभी कुछ रोज़ कब्ल पानी की मोटर यहां से ग़ायब होगई थी । मज़ीद उन्हों ने बताया कि मुक़ामी बच्चे दवाख़ाना के अहाता में क्रिकेट खेलते हैं जिस की वजह से दवाख़ाना की खिड़कियों की तमाम शीशे टूट चुके हैं ।
जब कि इस मुस्लिम अक्सरीयती इलाक़ा में मज़कूरा गर्वनमैंट सिविल डिसपेंसरी को अगर संजीदगी से चलाया जाय तो कम अज़ कम उसे एक छोटे से ज़चगी ख़ाना में तब्दील किया जा सकता है । महिकमा-ए-सेहत फ़ौरी इस डिसपेंसरी में डाक्टरों की तैनाती अमल में लाए और अमला की तादाद में इज़ाफ़ा करे जिस से मुक़ामी अफ़राद के इलावा करीबी इलाक़ों की अवाम भी इस्तिफ़ादा कर सकते हैं ।
कम अज़ कम मुहल्ला के समाजी कारकुन इक़दाम कर के पैरवी करते हुए दवाख़ाना पर डाक्टरज़ और अमला की तैनाती को यक़ीनी बनाएं जिस से मुक़ामी आबादी को ही फ़ायदा होगा ।
चूँकि ये दवाख़ाना बहतरीन महल वक़ूअ और बड़ी आबादी के दरमियान वाक़ै है लिहाज़ा इस बात की शदीद ज़रूरत है कि हुकूमत अपने रवैय्या को पसेपुश्त डालते हुए इस पर ख़ुसूसी तवज्जा दे । और यहां तमाम तिब्बी सहूलयात जल्द अज़ जल्द फ़राहम करे । साथ ही 30 बिस्तर मुहय्या किए जाएं ताकि मरीज़ों को आसानी होसके ।।