हैदराबाद 30 नवंबर (सियासत न्यूज़) मजलिसे बलदिया की जानिब से पिछे चंद माह से 40 माइक्रोनस से कम जसामत(मोटाई) रखने वाले कैरी बयागस पर इमतिना आइद है औरमुताल्लिक़ा महिकमा की जानिब से 40 माइक्रोनस वाले कैरी बयागस के फ़वाइद और नुक़्सानात पर काफ़ी दिनों तक बहस व मबाहिस होते रहे मगर दीगर सरकारी मंसूबों की तरह ये मंसूबा भी ज़राए इबलाग़ की सुर्ख़ीयों से निकल कर मुकम्मल और अमली शक्ल इख़तियार नहीं करसका। चूँकि आज भी शहर के 75फीसदी दूकानों और कारोबारि मुक़ामात पर माज़ी की तरह ही 40 माइक्रोन से कम जसामत वाली प्लास्टिक के कैरी बयागस बेखौफ-ओ-ख़तर इस्तिमाल किए जा रहे हैं ।
दरअसल इस मंसूबे की नाकामी की वजह वही है जो दीगर सरकारी इक़दामात और मंसूबों की होती है,यानी किसी भी सरकारी इक़दामात ओर लाइहे अमल का ज़राए इबलाग़ के ज़रीया ख़ूब ज़ोर शोर से तशहीर किया जाता है मगर उस मंसूबे पर मोअस्सिर अमल आवरी और निगरानी का मुआमला सरकारी ओहदेदारों की लापरवाही या बदउनवानी का शिकार होजाता है। वाज़िह रहे कि अवामी भलाई के नाम पर मजलिस बलदिया की जानिब से 40 माइक्रोनस से कम जसामत रखने वाले कैरी बयागस पर इमतिना आइद करते वक़्त ये इस्तिदलाल ये पेश किया गया कि मौजूदा प्लास्टिक कैरी बयागस इस्तिमाल के बाद कचरे में फेंक दिया जाता है जो बाद में परेशानी का सबब बनता है,नाले में फंस कर पानी की निकासी में रुकावट पैदा करता है,जानवर उसे इस्तिमाल करते हैं जो बादअज़ां बीमारी की वजह बनती है,और सब से अहम बात ये कि ये माहौलियात के लिए ख़तरनाक साबित हो रहा है।
मगर शहर के कई माहीरीन-ए-माहूलीयात ने उसी वक़्त इस ख़दशे का भी इज़हार किया था कि इस इमतिनाके बाद गै़रक़ानूनी तरीक़े से और ग़ैर मयारी कैरी बयागस की तैय्यारी के भी इमकानात हैं चूँकि 40 माइक्रोन की तख़सीस (ख़ास कर देने)के बाद आम आदमी मज़ीद उलझन का शिकार है जो 40 या इस से कम माइक्रोन के दरमियान तफ़रीक़ (फर्क)करने की सलाहीयत नहीं रखते , इसलिए इस कानुन पर हुकूमत को सख़्त निगरानी करनी होगी वर्ना इस का अंजाम भी नशा आवर अश्या की फ़रोख़त पर आइद पाबंदी की तरह होगा जो क़ानूनी कमगै़रक़ानूनी ज़्यादा फ़रोख़त होता है।
दूसरी तरफ़ प्लास्टिक कैरी बयागस फ़रोख़त करने वाले एक ताजिर का कहना है कि इस क़ानून से सिर्फ कैरी बयागस तैय्यार कर ने वाली कंपनीयों कोफ़ाइदहो रहा है जो कम से कम अफ़रादी क़ुव्वत में और कम वक़्त में ज़्यादा माल तैय्यार कर सकते हैं ,ये बात इस शोबे से वाबस्ता अफ़राद बेहतर तौर पर समझ सकते हैं। जहां तक आम आदमी की बात है उन्हें माली तौर पर तो नुक़्सान ही होगा,क्योंकि प्लास्टिक हमारी ज़िनदगी का हिस्सा बन चुका है ,खाने पीने से लीकर पहनने तक की बे शुमारअश्या प्लास्टिक थैलों मेंही पैक की जाती हैं ,ज़ाहिर है किसी भी चीज़ की पैकिंग की लागत में इज़ाफ़ा होगा तो उसकी इज़ाफ़ी क़ीमत आम आदमी के जेब से ही वसूल की जाएगी ।
उन्हों ने कहा कि दुकानदार जब महंगी क़ीमत में कैरी बयागस खरीदकर लाया है तो वो गाहक को मुफ़्त में फ़राहम नहीं कर सकता,या तो वो अलग से कैरी बयाग की क़ीमत तलब करेगा या मुताल्लिक़ा अश्या की क़ीमतों में ही एक दो रुपय का इज़ाफ़ा कर देगा। इत्तिला के मुताबिक़ शहर के अहम शोरूमस और बड़ी दुकानों को छोड़ कर आम शाहराहों ,फल फ़रुट्स तरकारियां ,ख़ुर्द नोश (खाने पिने) की अक्सर अशीया , तलन की बंडियों और दीगर आम दुकानों में पहले ही की तरह आम कैरी बयागस का इस्तिमाल किया जा रहा है।सवाल ये है के वसीअ पैमाने परपाबंदी आएद किए जाने के बावजूद इस पर मुकम्मल अमल आवरी क्यों नहीं हो पा रही है और क्या मुताल्लिक़ा ओहदेदारों की मर्ज़ी ओर ला इलमि के बगै़र ये कैरी बयागस तैय्यार किए जा रहे हैं ? अगर हाँ तो इस का ज़िम्मेदार कौन है?
एक समाजी कारकुन सय्यद काशिफ़ का कहना है कि इस किस्म की ग़ैर मूसिर पाबंदीयों से मुताल्लिक़ाओहदेदारों केलिए बदउनवानी और रिश्वत का एक नया रास्ता खुल जाता है और इस पाबंदी के साथ भी यही होरहा है । वर्ना इतने बड़े पैमाने पर गै़रक़ानूनी तौर पर कैरी बयागस की तैय्यारी अमल में नहीं आती। उन्हों ने कहा कि 40 माइक्रो नून वाली कैरी बयागस को इस्तिमाल करने के बाद उसे भी लोग जहां तहां फेंक देते हैं , ज़ाहिर है उसे भी कचरे का हिस्सा बनना होगा,तो ऐसी सूरत में असल मसला तवज्जों का तूं बरक़रार रहेगा,अलबत्ता अवाम जो पहले ही महंगाई से परेशान है,की परेशानी में मज़ीद इज़ाफ़ा हो जाऐगा,बल्कि इज़ाफ़ा होचुका है।