बेगुनाह होकर भी 9 साल तक आतंकवादी ठप्पे के साथ जीने वाले वाहिद शेख़ ने लिखी किताब

एक स्कूल में पढ़ाने वाले 40 साल के वाहिद शेख़ सिर्फ मुस्लिम नाम होने के कारण पिछले नौ सालों से आतंकवादी पहचान के साथ ज़िन्दगी जीने पर मजबूर थे। हर एक मुसलमान को हमारे देश में जिस बात का डर होता है वैसा ही कुछ वाहिद शेख के साथ हुआ।

शेख बताते हैं कि सिर्फ मुस्लिम होने की वजह से आज तक वो मुम्बई ब्लास्ट से लेकर सिमी संस्था रेड तक सब मे आरोपित ठहराए जा चुके हैं। साल 2015 में शेख 9 साल की बेगुनाही की सज़ा काट कर रिहा हुए हैं। मुम्बई में हुए 2006 के ब्लास्ट में जिसमे 180 लोगो की मौत हो गयी थी उस हमले के आरोप में शेख को गिरफ्तार किया गया था।

वहीं शेख ये भी बताते हैं कि इससे पहले 2001 में मेरा सिमी के साथ कोई सम्बन्ध ना होने के बाद भी मुझे गैरकानूनी रूप से सिमी की बैठक करने के आरोप में पूछताछ के लिए ले जाया गया था। हालाँकि कोई सुबूत या कोई निशान ना मिलने के कारण उनको छोड़ दिया गया।

वाहिद शैख़ ने मुस्लिम होने के नाते इतने सभी आरोपों और आतंकवादी के तौर पर जेल में जीवन के 9 साल काटने के बाद भी इन सब के अनुभवों से कुछ सीख कर बेगुनाह क़ैदी के नाम से एक किताब लिखी है। जिसका विमोचन 1 मार्च को मुम्बई में कुछ बड़ी हस्तियों की मौजूदगी में किया जाएगा।

शेख ने बताया कि उनकी किताब पूरी उनके केस पर आधारित है। उन्होंने किताब में उन सभी एटीएस अधिकारियों के बारे में बताया है जिनको शेख के बेकुसूर होने का इल्म था लेकिन राजनीतिक दबाव के कारण वे कुछ नहीं कर पाते थे। टार्चर करने वाले और परिवार को धमकियां देने वाले कुछ पुलिस अधिकारियों का नाम भी उन्होंने किताब में स्पष्ट रूप से लिखे है।

किताब के एक चैप्टर में शेख ने पूर्व एसीपी विनोद भट्ट और आरोपी एहतेशाम सिद्दीक़ी, जिसको सज़ा-ए-मौत दी गयी थी के बीच के संवादों को जगह दी है। इस किताब के अनुसार एसीपी ने कथित रूप से क़ुबूल किया है कि एहतेशाम बेकुसूर था लेकिन उनके ऊपर वरिष्ठ अधिकारी पूर्व एटीएस प्रमुख केपी रघुवंशी और पूर्व कमिश्नर ऐएन रॉय का दबाव था।

शेख ने आगे बताया कि उन्होंने समाज के कुछ भागों को दर्शाने के लिए ये किताब लिखी है। मीडिया भी पुलिस के बताई हुई चीज़ों का प्रसार करती है और हम बेकुसूर लोग सब के लिए आतंकवादी बन जाते हैं। हमारे परिवार वालों को और हमे इस हद तक टार्चर किया जाता है कि हम किसी भी कागज़ पर साइन करने को तैयार हो जाते हैं और हमे इस तरह आतंकवादी बना दिया जाता है।

शेख की यह किताब पहले उर्दू में रिलीज़ की जायेगी लेकिन कुछ ही महीनों में इसका हिंदी और इंग्लिश में भी अनुवाद कराया जाएगा।