इबादत से इतर नमाज़ के शारीरिक फायदे की हमेशा से अनदेखी की जाती रही है। दिन में 5 बार होने वाली नमाज की मुद्राएं योग से मेल खाती हैं जिसे तफसील से नीचे बताया गया है।
एक बार नमाज़ में सज्दे के दौरान मैं सोचने लगा कि यह तो योग की मुद्रा की तरह है। हालाँकि मैंने पहले कभी योग नहीं किया था लेकिन इससे होने वाले फायदे से वाकिफ़ ज़रूर था।
मुझे योग और नमाज के बीच समानताएं नज़र आती हैं।
क़ियाम और नमस्ते के दौरान दोनों पैरों को एक ही तरफ रखते हैं। इससे नर्वस सिस्टम को आराम मिलता है और शरीर संतुलित रहता है। इसके अलावा एनर्जी मिलने के साथ-साथ शरीर झुका हुआ भी नहीं लगता।
इसके अलावा कुरान की आयतों को पढ़ते समय लंबे स्वरों के उच्चारण से होने वाली कंपन दिल, थायराइड, पीनियल ग्रंथि, पिट्यूटरी, अधिवृक्क ग्रंथियों और फेफड़ों को शुद्ध करती हैं।
रुकू में जाने से धड़, जांघों और मांसपेशियों में खिंचाव होता है। खून ऊपरी धड़ में पंप होता है।
जुलुस से पाचन क्रिया मज़बूत होती है। नसों और जोड़ों के दर्द के इलाज करने में मददगार है, लचीलापन बढ़ता है और पैल्विक मांसपेशियों को मजबूत करता है।
नमाज़ के दौरान सजदे में जाने के सबसे ज्यादा फायदे हैं। यह स्थिति मस्तिष्क के ललाट वाले हिस्से को उत्तेजित करती है। और शरीर के ऊपरी हिस्सों में खून का बहाव होता है, खासकर सिर और फेफड़े में।
इसके अलावा सजदा करने से पेट की मांसपेशियों भी विकसित होती हैं। इससे गर्भवती महिलाओं को ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में मदद मिलती है, जोड़ों का लोच बढ़ता है और तनाव, चिंता, चक्कर आना और थकान में कमी आती है।
इसलिए दिन में नमाज पांच बार जरूरी है। ये सिर्फ कुछ फायदे हैं जो नमाज से जुड़े हैं।
अब यह कहना एकदम दुरुस्त है कि मुसलमान पिछले 1,400 वर्षों से निरंतर योग कर रहे हैं। इसलिए आपसे कोई व्यक्ति पूछता है कि आप योग करते हैं तो कहें कि हां, हां और हां।
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