हैदराबाद 12 मई: हुक़ूक़ हासिल करने के लिए बसा-औक़ात मांगने के बजाये छीनना पड़ता है। मुल्क में बदलती जमहूरी इक़दार को देखते हुए ये बात कही जा सकती है कि हुकूमतों को अपने हुक़ूक़ की अदायगी के लिए मजबूर करने एहतेजाज का रास्ता इख़तियार करना ज़रूरी है। वो ज़माना अब नहीं रहा जब ख़ुद हुकमरानों को अवामी मसाइल और ज़रूरीयात का एहसास होता था और वो मुतालिबे से पहले ही मसाइल की यकसूई करते रहे। अब तो हुक़ूक़ हासिल करने के लिए जमहूरी अंदाज़ में एहतेजाज और तहरीक चिल्लाना जमहूरीयत का हिस्सा बन चुका है।
हालिया अरसा में मुल्क के बाज़ हिस्सों में मुख़्तलिफ़ तबक़ात में एहतेजाज और तहरीक के ज़रीये हुकूमतों को मुतालिबात क़बूल करने पर मजबूर किया। खासतौर पर गुजरात और हरियाणा की मिसालें सामने हैं, जहां आला तबक़ात से ताल्लुक़ रखने वालों ने हुकूमत को रिजर्वेशन की फ़राहमी पर मजबूर कर दिया। मुत्तहदा आंध्र प्रदेश में मुस्लिम अक़लियत के साथ की गई नाइंसाफ़ी हर किसी भी अयाँ हैं।
हर शोबे में मुस्लिम अक़लियत को ना सिर्फ नजरअंदाज़ कर दिया गया बल्कि मन्सूबा बंद अंदाज़ में मुलाज़िमतों और तालीम से दूर करने की कोशिश की गई। पिछ्ले 60 बरसों की नाइंसाफ़ीयों का नतीजा है कि आज सरकारी मुलाज़िमतों में मुसलमानों का फ़ीसद बरा-ए-नाम हो कर रह गया है। हुकूमतों ने हमेशा अक़लियतों के साथ ख़ुशकुन वादों से काम लिया। मुसलमानों की पसमांदगी की वजूहात का जायज़ा लिया जाये तो उस के लिए हुकूमतों के साथ साथ ख़ुद मुसलमानों के अवामी नुमाइंदे और सियासी क़ाइदीन ज़िम्मेदार दिखाई देंगे जिन्हों ने हमेशा अपने मुफ़ादात को मिली मुफ़ादात पर तर्जीह दी जिसका नतीजा ये निकला कि मुस्लमान दिन-ब-दिन हर शोबे में पसमांदा हो गए।
तेलंगाना रियासत के क़ियाम के बाद केसीआर की ज़ेर क़ियादत टीआरएस हुकूमत ने जिस अंदाज़ में मुसलमानों से हमदर्दी का इज़हार किया, उम्मीद जागी थी कि हुकूमत पसमांदगी के ख़ातमे में संजीदा है। हुकूमत के दो साल मुकम्मिल हो गए लेकिन मुसलमानों की पसमांदगी के ख़ातमे की सिम्त एक भी ठोस क़दम नहीं उठाया गया।
12 फ़ीसद रिजर्वेशन की फ़राहमी का एलान महिज़ एक खिलौना बन चुका है जिससे मुसलमानों को बहलाने की कोशिश की जा रही है। हुकूमत के क़ियाम के चार माह में रिजर्वेशन की फ़राहमी का एलान किया गया लेकिन सुधीर कमीशन आफ़ इन्क्वारी के क़ियाम के ज़रीया मसले को तूल देदिया गया।
चन्द्रशेखर राव अगर ये तसव्वुर करते हैं कि मुस्लमान हमेशा उनका वोट बैंक बरक़रार रहेंगे तो ये उनकी भूल होगी। मुस्लमान भले ही अक़लियत में हूँ लेकिन तेलंगाना में उनका मौकुफ़ बादशाह गिर का है और वो जिसे चाहें इक़तिदार की कुर्सी तक पहुंचा सकते हैं। 12 फ़ीसद मुस्लिम रिजर्वेशन के लिए अवाम में शऊर बेदारी की रोज़नामा सियासत की मुहिम के असरात हर ज़िला में दिखाई दे रहे हैं।
अवाम की तरफ से ओहदेदारों और हुकूमत के ज़िम्मेदारों को नुमाइंदगियों का सिलसिला जारी है लेकिन ज़रूरत इस बात की है कि अब इस जमहूरी तहरीक के लायेहा-ए-अमल में तबदीली की जाये। अगर मुस्लमान रिजर्वेशन के मसले पर ख़ामोशी इख़तियार करलींगे तो फिर आने वाले दौर में रिजर्वेशन का हुसूल नामुमकिन हो जाएगीगा। त
तेलंगाना में 12 फ़ीसद रिजर्वेशन पर अमल आवरी से सरकारी मुलाज़िमतों में 25000 से ज़ाइद मुसलमानों को नुमाइंदगी हासिल हो सकती है।