7 बिलीयन आबादी

अक़वाम-ए-मुत्तहिदा ने दुनिया की आबादी के 7 बिलीयन के निशाना को पहूंचने से क़बल ही मायूसकुन रिपोर्ट जारी करके ग़ुर्बत, भूकअफ़लास फ़ाक़ाकशी के इस दौर को मज़ीद ख़ौफ़ज़दा करदिया था।

अब दुनिया के इंसानों ने अपने वजूद का निशाना 7 बिलीयन को पालिया है तो आगे चंद सालों में इंसान 10 बिलीयन हो जाएंगी। आलमी मईशत ग़ैर मरबूत होने के साथ आबादी के मैदान में भी आलमी शरह एक दूसरे से ग़ैर मरबूत है। तरक़्क़ी याफ़ता मुल्कों की आबादी एक अरब और इस की आमदनी आलमी मजमूई आमदनी का इसी फ़ीसद है जबकि तरक़्क़ी पज़ीर ममालिक की आबादी 5 अरब और इस की आमदनी आलमी मजमूई आमदनी का 20 फ़ीसद है।

कुर्राह-ए-अर्ज़ पर सांस लेने वाले इंसानों की तादाद जिस तेज़ी से बढ़ रही है इस के असरात भी शिद्दत से पैदा हो रहे हैं। माहौलियात का मसला सब से संगीन है। जब सांस लेने वाले इंसान बढ़ जाऐंगे तो माहौलियात का निज़ाम सर्किल भी मुतास्सिर होगा। आबादी में इज़ाफ़ा को इस्लामी नुक़्ता से देखा जाय तो ये ख़ालिक़ कायनात की मस्लिहत पर मबनी बात है।

मगर इंसानों ने अपने वजूद के बावजूद क़ुदरत के वसाइल से इस्तिफ़ादा करने में जिन इमतियाज़ात और इख़्तयारात का बेजा इस्तिमाल किया है इस से आलमी आबादी और तरक़्क़ी की शरह में अदम तवाज़ुन पैदा हुआ। पानी, ग़िज़ा, मादिनी ज़ख़ाइर, साफ़ सुथरी फ़िज़ा हर इंसान बशर के लिए लाज़िम-ओ-मल्ज़ूम हैं। ख़ुदातरस बंदों का एहसास है कि अल्लाह ही रज़्ज़ाक़ वरहीम है इस के ज़िम्मा सब काम हैं।

इंसान तो सिर्फ अपनी ग़लतीयों की सज़ा पाता है। आबादी के मसला पर आज सारी दुनिया में जो वावेला मचा हुआ है ये इंसान की ही पैदा करदा शरह और ग़लतीयों का नतीजा है। माहौलियात, ग़िज़ा पानी और आमदनी के लिए एक इंसान दूसरे इंसान की हक़तलफ़ी करता है तो क़ुदरती वसाइल से इस्तिफ़ादा करने का मयार और मिक़दार भी तबदील हो जाती है।

तरक़्क़ी याफ़ता ममालिक अपनी सलाहीयतों से अपने शहरीयों को बेहतर ज़िंदगी का इंतिज़ाम करते हैं। जबकि तरक़्क़ी पज़ीर ममालिक अपने हुकमरानों की कार्यवाईयों, मनमानी, ख़राब पालिसीयों या यकतरफ़ा सोच की वजह मसाइल से दो-चार होते हैं। ग़रीब ममालिक आलमगरीत की तक़लीद में अवाम का सरासर ख़सारा करते हैं। तरक़्क़ी याफ़ता ममालिक जैसे अमरीका, यूरोप का माज़ी का मआशी ढांचा और मौजूदा सयासी, मआशी और समाजी हालात में यकसर तबदीली आचुकी है।

कल तक ख़ुशहाली के गीत गाने वाले ममालिक मआशी बोहरान से दो-चार हैं। इस की वजह हुकमरानों की फ़ाश गलतीयां हैं क्योंकि हुकमरानों ने चंद मुतमव्विल अफ़राद के इशारों या उन के फ़ायदा के लिए माबाक़ी दुनिया के इंसानों का हक़ ज़िंदगी छीन लेने की कोशिश की जिस के नतीजा में बढ़ती आबादीयों पर तवज्जा नहीं दी गई जिस से मआशी और समाजी हालात दगरगों होते गई। दूसरी तरफ़ तरक़्क़ी पज़ीर ममालिक ने बड़े मुल्कों का दामन थाम कर अपना ख़सारा करलिया इन में हिंदूस्तान की हुकूमतों की ख़ारिजा पालिसीयां भी काबिल-ए-ज़िकर हैं।

अगर हिंदूस्तान की ख़ारिजा पालिसी उस की आबादी के तनाज़ुर में तैय्यार की जाती तो हिंदूस्तान को मआशी तौर पर मौजूदा हालात से भी ज़्यादा बेहतर इस्तिहकाम मिलता।

हिंदूस्तान जैसे तरक़्क़ी पज़ीर ममालिक को अपनी ज़रूरीयात की तकमील के लिए अपने ही वसाइल पर इन्हिसार करने की ज़रूरत थी लेकिन इस ने आलमगीरीयत के ज़रीया अपनी मईशत को दाव पर लगा दिया उस की वजह से हिंदूस्तान की आबादी का तनासुब पहले के बनिसबत बेहतर होने के बावजूद भूकअफ़लास और ग़ुर्बत की शरह पर क़ाबू पाया नहीं जा सका।

बल्कि ये शरह तशवीशनाक हद तक बढ़ गई है। आलमगीरीयत की ग़लत तशरीह की वजह से असल में बेरोज़गारी बढ़ गई, समाजी नापायदारी और सयासीअदम इस्तिहकाम पैदा हुआ। लाखों अवाम को कुर्राह-ए-अर्ज़ के वसाइल से इस्तिफ़ादा करने से महरूम रखा गया। जिन मुल्कों ने क़ुदरत के वसाइल से इस्तिफ़ादा क्या उन की आबादी पर ख़ुशहाली छाई रही। दुनिया के माबाक़ी मुल्कों को या तो क़ुदरती वसाइल से इस्तिफ़ादा करने की इजाज़त नहीं दी गई या इन में ऐसी सलाहीयत थी कि वो क़ुदरती वसाइल के ज़रीया अपने अवाम को बेहतर ज़िंदगी फ़राहम करती। हिंदूस्तान और चीन की आबादी में बेतहाशा इज़ाफ़ा को पेशे नज़र रख कर ही नसबंदी, इसक़ात-ए-हमल की बड़े पैमाना पर तशहीर की गई। 1970ए- से इस पर सख़्ती से अमल हो रहा है।

इस के बावजूद मुल़्क की आबादी का तनासुब हर रियासत में मुख़्तलिफ़ पाया जाता है। ख़ासकर आबादी के तनासुब के एतबार से शुमाली हिंदूस्तान और जुनूबी हिंद में फ़र्क़ पाया जाने लगा है। जुनूबी हिंद में आबादी का तनासुब घट गया और शुमाली हिंद की आबादी ने रोज़गार, ग़ुर्बत और समाजी मसाइल पैदा करदिए जिसे नक़्ल-ए-मकानी का रुजहान पैदा होने लगा। जब लोग एक रियासत से दूसरे रियासत को रोज़गार केलिए मुंतक़िल हूँ तो यहां सक़ाफ़्ती टकराव पैदा होगा और यही हाल इन दिनों हिंदूस्तानी रियास्तों में देखा जा रहा है।

यूपी, बिहार की अक्सरीयत पड़ोसी रियास्तों को नक़्ल-ए-मकानी कररही है। ऐसे वाक़ियात पर माहौलियात या आबादी पर क़ाबू पाने के लिए मुहिम चलाने वाले अफ़राद की तवज्जा नहीं जाती। हुकूमतें भी अपनी पालिसीयां आबादी पर क़ाबू पाने की जानिब मर्कूज़ करती हैं। इस पर करोड़ों रुपय ख़र्च किए जाते हैं मगर आबादी की शरह दिन बह दिन बढ़ती है।

अगर हुकूमतें अपनी तवज्जा आबादी को बेहतर तालीम, सेहत और बहुविद् फ़राहम करने पर मर्कूज़ करे तो ये इंसान आइन्दा चल कर बाशऊर शहरी बनेगा जब इंसान में शऊरी कैफ़ीयत पैदा होगी तो इस से गलतीयां सरज़द नहीं होंगी। एक इंसान जब अपने वजूद की एहमीयत को समझने में कामयाब हो जाय तो वो दूसरे इंसानों को तकलीफ़ देने वाले कामों से गुरेज़ करेगा यही सोच आम इंसानों में आजाए तो फिर आबादी में इज़ाफ़ा तशवीशनाक नहीं बल्कि रहमत-ओ-करम साबित होगा।