बुरहान की तरह मुझे भी आतंकवादी संगठन में शामिल हो जाना चाहिए था: उमर खालिद

देशद्रोह का आरोप झेल रहे जेएनयू के स्टूडेंट उमर खालिद एक बार फिर से सुर्ख़ियों में आ गए है। इस बार उमर ने कश्मीर में आतंक का पोस्टर ब्वाय बन चुके बुरहान की मौत पर उसकी शान में कसीदे गढ़े हैं और बुरहान की सरहाना करते हुए सरकार और राष्ट्रवाद पर भी निशाना साधा है। उमर ने फेसबुक पर पोस्ट करके बुरहान की मौत पर अफ़सोस जताया और अर्जेंटीना के मार्क्सवादी चे ग्वेरा का उदाहरण देते हुए कहा शायद बुरहान के आखिरी शब्द भी कुछ ऐसे होते कि अगर मैं मर जाऊं तो कोई और मेरी बंदूक उठा ले और गोलियां चलाता रहे’।

उमर ने आगे लिखा कि बुरहान  आजाद होकर रहा और आजाद होकर ही मरा। उसको मौत का खौफ नहीं था। उसे अधीनता का डर था और इससे नफरत थी। बदनसीब भारत सरकार उस आदमी को कैसे हरा सकती है, जिसने खुद खौफ को हरा दिया हो। तुम हमेशा कश्मीर के एकजुट लोगों के दिलों में रहोगे बुरहान। उमर ने आतंकी बुरहान को श्रद्धांनजलि दी। इसके साथ ही  उमर ने लिखा है कि मैं हार चूका हूँ क्यूंकि जब सैकड़ों लोग इतने संगठित तरीके से मुझे फंसाने पर तुले हों तो मैं उनका सामना कैसे कर सकता हूं। हां, मैं गलत था, मुझे तुम्हारे साथ मिल जाना चाहिए था और बुरहान की मौत का जश्न मनाना चाहिए था। देशद्रोही, आतंकवादी, लड़ाकू मुझे भी उस गिरोह में शामिल हो जाना चाहिए था।

माफ करें, क्यूंकि मैं इनसे छुटकारा चाहता हूं। कल से, मैं राष्ट्रवादी मर्दानगी को संतुष्ट करने के लिए खुद शामिल हो जाऊंगा और हत्याओं, बलात्कार, यातनाओं, गायब हो जाने, अप्सफा और हर चीज पर जश्न मनाऊंगा। सिर्फ बुरहान वानी ही क्यों, मैं 12 वर्षीय लड़के समीर राह की पीट-पीट कर की गई हत्या को सही ठहराऊंगा। आसिया और नीलोफर का सोफियां में कभी बलात्कार और हत्या नहीं हुई थी, वे पास की झील में गहरे पानी में डूबकर मरे थे। 17 वर्षीय तुफैल मत्तो मरने के ही लायक था जो गलत समय, गलत जगह पर प्रदर्शनकारियों में शामिल हो गया, यह उसकी गलती थी। हंदवारा और कुनान पोशपोरा में तो कभी कुछ हुआ ही नहीं। कल से मैं एक शुतुरमुर्ग होऊंगा, मैं धौसियाया जाऊंगा, और मैं एक कायर भी होऊंगा जो एक पद पर रहते हुए कमजोरों को सताए जाने पर सुख का अहसास करूंगा। लेकिन मेरे राष्ट्रवादी हो जाने पर एक छोटा सा सवाल है कि क्या ऐसा करके कश्मीर की जमीनी हकीकत बदल जाएगी?”