अभिसार शर्मा का ब्लॉग- “हम सवाल करने से क्यों डरते हैं आजकल?”

हमारा कर्त्तव्य है सवाल पूछना . है न ? मगर इस पूरे संदीप कुमार SEX CD प्रकरण में कितने सवाल किये हैं हमने ? क्या हमने पुछा के

१. ये विडियो कितना पुराना है ? क्योंकि इस वक़्त तीन किस्म की चर्चाएँ हैं . सीटी उद्घोषक यानी whistleblower ओमप्रकाश की मानें तो 2 महीने पुराना है . पीढित महिला इसे एक साल पुराना वाकया बताती हैं. टाइम्स ऑफ़ इंडिया में राज शेखर झा के रिपोर्ट में इस विडियो में पुलिस को 2010 का एक कैलेन्डर दिख रहा है . क्या किसी चैनल ने गंभीरता से ये सवाल किये ? ये बात अलग है के किसी ने भी संदीप कुमार को बलात्कारी,ब्लैकमेलर और बेवफा जैसे जुमलों से नवाजने में थोडा भी वक़्त नहीं लगाया ? और वो तब तब पीढित महिला सामने भी नहीं आई थी ?

२. क्या ये सामन्य सवाल पुछा गया के संदीप कुमार , जो आजकल सत्ता सुख भोगने के बाद ,इतने “हृष्ट पुष्ट” हो गए हैं, इस विडियो में इतने दुब्ले क्यों दिख रहे हैं.ये सवाल तो पूछा जाना चाहिए था न ?

३. क्या किसी ने सवाल पूछे के ये विडियो किसने जारी किया ? इसकी टाइमिंग की क्या एहमियत है ? सेक्स विडियो का प्रसार कानूनन अपराध है और साफ़ है के इसके प्रसार में उस शक्स का हाथ है जिसने ये विडियो शूट करके सार्वजनिक वितरण के लिए जारी किया . उस शक्स को लेकर खुद पुलिस में असमंजस है .क्या ये सवाल पूछ रहा है कोई ?
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४. सवाल ये भी उठ सकता है के पीढित महिला इस विडियो के सार्वजनिक होने के बाद सामने क्यों आई? मगर ये सवाल बेमानी है,क्योंकि आप और हम अपने comfort zone से किसी “बलात्कार पीढित” की मनोदशा पे टिपण्णी नहीं कर सकते . बशर्ते वो बलात्कार पीढित है.

५. मैं नहीं जानता खुद का सेक्स विडियो बनाने पर कानून क्या कहता है,( वो किसी दिन और ) अलबत्ता किसी की सहमति के बगैर ,उसे सार्वजनिक तौर पर दिखाना गुनाह ज़रूर है. तो ये सार्वजनिक किया किसने ? ये सवाल पुछा किसी ने ?

६. पूर्व पत्रकार आशुतोष, संदीप कुमार की तुलना अगर गाँधी से करते हैं , तो उससे ज्यादा वाहियात कोई चीज़ नहीं हो सकती , मगर राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा उन्हें ब्लॉग के आधार पर समन भेजना कहाँ तक जायज़ है? क्या ये सवाल भी ज़रूरी नहीं है . हाँ ,ये बात अलग है के कुछ राष्ट्रवादियों ने उन पत्रकारों को नहीं बक्शा जिन्होंने ये सवाल उठाने की हिम्मत की.

मैं जानता हूँ इस वक़्त आपके ज़हन में दो सवाल हैं .पहला , ये जांच करना मीडिया का काम थोड़े ही है. बिलकुल सही कहा आपने. ये काम जांच एजेंसीज का है. मगर मीडिया ये तर्क देने का अधिकार पहलेही खो चुका है. पूछिए आरुषी के माता पिता से. जब प्रतिभाशाली पत्रकारों ने टीवी चैनल्स के परदे पर , और आरुषी के पडौसी के घर में घूम घूम कर इस मामले की पड़ताल की थी. हाल में हुए शीना बोरा हत्याकांड में जारी हुए मोबाइल फ़ोन कॉल्स के आधार पर, एक चैनल का स्टूडियो, इस मामले की सबसे विश्वसनीय पड़ताल का अखाड़ा बन गया था . तब आपने ज़रूर देखी होगी वो ऊर्जा, वो तेज ,मेरी बिरादरी के होनहार के हावभाव में . और दूसरा सवाल , मैं संदीप कुमार की पैरवी क्यों कर रहा हूँ ? दरअसल ये पैरवी नहीं, ये महज़ जिज्ञासा है . और आजकाल पत्रकार बंधुओं में जिज्ञासा कम होने लगी है. मेरी दिक्कत ये है के पुरानी आदतें जल्दी मरती नहीं . ( Old Habits Die Hard का तर्जुमा ) अब इसमें आप आम आदमी पार्टी से पैसे लेकर लिखने का आरोप भी नहीं लगा सकते , क्यों संदीप कुमार को तो उन्होंने भी त्याग दिया है .उन्हें तो न खुदा ही मिला,न विसाले सनम !

और टाइम्स ऑफ़ इंडिया की खबर की मानें तो न सिर्फ संदीप कुमार को जल्द बेल मिल जाएगी,अलबत्ता कानूनी कार्रवाही को जारी रखना भी मुश्किल लग रहा है . ये सवाल पहले भी पूछे जा सकते थे .मगर ये ख़ामोशी असमंजस पैदा करती है .

ऐसा लगता है के कुछ सवाल पूछने मुश्किल होते जा रहे हैं . मसलन ,कितने अखबारों , news चैनल्स ने रिलायंस के नए क्रांतिकारी अभियान में प्रधानमंत्री की तस्वीर इस्तेमाल किये जाने पर सवाल किया ? क्या ये बहस का मुद्दा नहीं ? क्या इसमें कोई conflict of interest नहीं? उसी हफ्ते देश के 18 करोड़ सरकारी मुलाजिम एक दिन की हड़ताल पर थे, ये मुद्दा भी न जाने क्यों ध्यान से भटक गया . एक हैडलाइन तक नहीं? मुझे याद है , जब मनमोहन प्रधानमन्त्री थे, तब ये मुद्दा ज़ोरों से उठाया जाता था . जगह जगह रिपोर्टर्स तैनात कर दिए जाते थे . मस्त भौकाल बनता था . वो भी क्या दिन थे.

ज़रूर कुछ मजबूरियां रही होंगी , वरना यूँहीं कोई बेवफा नहीं होता…

राहुल गांधी की सभा के बाद खाट पर बवाल मचा . वहां आये किसानों ने सभा के बाद , न खटिया छोड़ी, न उसका पाया . मगर उसमे राहुल गांधी की खटिया कैसे खड़ी हो गयी? राहुल गांधी का मज़ाक उड़ाया जाना कितना वाजिब था ?
मेरा ये मानना रहा है के पत्रकार को विपक्ष के तौर पर काम करना चाहिए .मगर कुछ महीनों से ऐसा लगने लगा है के बीजेपी, अब भी विपक्ष में है . उनके समर्थक अब भी हम जैसे देश द्रोही पत्रकारों को कांग्रेस, AAP और कुछ मामलों में नितीश कुमार से भी पैसे लेकर काम करने का आरोप लगा चुके हैं . उनका ताना , “ ये सब केजरीवाल के 526 करोड़ रुपये का कमाल है” ! वो ये भी कहते हैं , और वो क्या, ये बात तो खुद मोदीजी ने कही है ,” मैंने लोगों की कमाई , जो इतने सालों से चल रही थी ,वो बंद करवा दी, तकलीफ तो होगी ही!

मिसाल के तौर पर मोदीजी की विदेश यात्रा का हवाला दिया जाता है ,के किस तरह से उन्होंने आते ही पत्रकारों का PM के जहाज़ में जाना बंद करवा दिया . इसे मुफ्तखोर पत्रकारों के लिए बड़ा झटका माने जाने लगा . यहाँ तक की एक संघी वेबसाइट में उन पत्रकारों के नाम का खुलासा भी हुआ ,जो PM के जहाज़ में “ऐश” करते थे. इस लिस्ट में शामिल होने का सौभाग्य मुझे भी हुआ है. इस खबर की सबसे हैरत में डाल देने वाली बात ये, की इस वेबसाइट के सलाहकार बोर्ड में कुछ ऐसे पत्रकार भी थे ,जो अनगिनत बार पूर्व प्रधानमंत्रियों के साथ (कांग्रेसी कार्यकाल में ) उनके हवाई जहाज़ में जाते रहे हैं . वो शायद गलती से ये बताना भूल गए के टिकेट के अलावा ,एयर इंडिया ONE में जाने वाला पत्रकार, हर चीज़ का पैसा देता है. वो बताना भूल गए के आपने पत्रकारों को एयर इंडिया वन से नीचे उतार तो दिया ,मगर अब उस हिस्से में कोई नहीं बैठता , अब वो खाली जाता है. पत्रकार साथ इसलिए भी जाते थे ,क्योंकि हर यात्रा के अंत में , प्रधानमंत्री के साथ औपचारिक तौर पर रूबरू होने का मौका मिलता था . उनसे सवाल पूछने का मौका मिलता था. अब वो सवाल बंद हो गए हैं . क्या करें भाई. अब सारी बातें “मन की बात” में सामने आ जाती हैं . एक प्रजातंत्र में सवाल की आखिर क्या अहमियत ? है न ?

तो गज़ब समा है ,न सवाल पूछने की मंशा है ,न जवाब देने की इच्छा .

बीजेपी सत्ता में आसीन है और उसे सुख विपक्ष में बैठी पार्टी का हासिल है . इसे कहते हैं ,दोनों हाथ में लड्डू . न कश्मीर पर सवाल , न पाकिस्तान नीति के असमंजस पर सवाल और न दलित संघर्ष पर बहस. दलित संघर्ष से याद आया ,कितनी खूबसूरती से हमने गुजरात के दलित संघर्ष को छिपा दिया था . अब , ये भी कोई खबर हुई भला ? कोई ऐसी खबर कैसे चला सकता है , जिसमे गुजरात मॉडल पे ज़रा भी आंच आये ? सारा खेल ही बिगड़ जाएगा .
पिछले एक साल में कम से कम तीन ऐसे मौके हैं ,जब मेरी रिपोर्ट की वजह से मुझे निशाना बनाया गया है. न सिर्फ मुझे बल्कि मेरे परिवार को भी नहीं बक्शा गया है. और ये सिर्फ मेरी बात नहीं . रविश कुमार का लेख पढ़ा होगा आपने .आउटलुक की नेहा दीक्षित पर हमला वाकई सिहरन पैदा करने वाला था.राना अय्यूब, स्वाति चतुर्वेदी, सगोरिका घोष ये सब किसी न किसी वजह से निशाने पर रहे हैं . उनपे किये जाने वाले भद्दे हमले किसी भी सभ्य समाज का हिस्सा नहीं हो सकते .

पिछले हफ्ते की ही बात बताता हूँ आपको. अपने परिवार के साथ बैठ कर लंच कर रहा था . अचानक मोबाइल पर एक सूचना आई.मुझे “धर्मो रक्षति रक्षित” नाम के एक ग्रुप में शामिल कर लिया गया है,बगैर मेरी अनुमति के. जिज्ञासावश , जब मैंने उसमे झांका , तो पहला सन्देश ही चौंका देने वाला था

“ ये देश देश भक्तों का है ,तालिबानियों का नहीं”

बजा फ़रमाया . अब आगे गौर कीजिये :

“ ये शर्मा वाकई ब्राह्मण है?”

“भाई पता करो ज़रा, कहीं मिलावट तो नहीं?”

मैंने बार बार इस ग्रुप से एग्जिट करने का प्रयास किया , मगर मुझे बार बार उसी ग्रुप में शामिल किया जाता रहा .

सदस्यगण लगातार आनंद की प्राप्ति कर रहे थे …गौर कीजिये :

“मेरे को शक है ये भगोड़ा ब्राह्मण हो नहीं सकता”

“ब्राह्मण जैसे काम है नहीं इसके”

NDTV के महिला पत्रकारों के बारे में क्या क्या कहा जा रहा था ,उसे मैं यहाँ लिख भी नहीं सकता .

मुझे आखिरकार एक एडमिनिस्ट्रेटर को फ़ोन करके उसे चेताना पड़ा के अगर ये जारी रहा तो मुझे पुलिस में शिकायत करनी पड़ेगी . पूरा रविवार ,खुद को उस ग्रुप से डिलीट करते हुए गुज़र गया . बला की बेशर्मी थी इन लोगों में .और ये पहली बार नहीं है .बिहार चुनावों के दौरान जब मैंने “ऑपरेशन भूमिहार“ किया था ,जिसमे दास्ताँ थी १० गाँवों की, जिन्हें 67 साल से वोट नहीं देने दिया गया और ४० साल से स्थानीय नेता जगदीश शर्मा ( जिन्हें बीजेपी का समर्थन हासिल था ) उन्हें वोट नहीं देने दे रहे थे . मेरी रिपोर्ट का नतीजा ये हुआ के प्रशासन चुस्त हुई और अतिरिक्त बल भेजे गए . नतीजा 80 साल के महतो ने ज़िन्दगी में पहली बार वोट दिया . मतदान के तुरंत बाद मेरे मोबाइल फ़ोन पर अश्लील भद्दे कॉल्स आने लगे . ऑडियो क्लिप्स भेजी गयी. मुझे ,मेरी पत्नी , मेरी बाकी परिवार सबके लिए गंदे शब्दों का इस्तेमाल किया गया. पटना में स्थित मेरी दोस्त ज्योत्स्ना के मुताबिक, प्लान ये भी था के मेरे लाइव शो में मेरे सर पर गरम “टार” उढेला जायेगा . शुक्र है ज्योत्स्ना का जिन्होंने उन्हें समझाया के ऐसा करने से आप वो भी सही साबित करेंगे ,जो अभिसार ने अपनी रिपोर्ट में नहीं भी कहा. मुझे ज़िन्दगी में पहली बार पुलिस सुरक्षा लेनी पड़ी .

कहने का अर्थ ये के कुछ डरे हुए हैं , कुछ बेबस और जिनकी रीढ़ किसी तरह से तनी हुई है,उसे तोड़ने का प्रयास. सवाल पूछना इसलिए दुर्लभ हो गया है शायद .

मगर एक और श्रेणी भी है. ये हैं बरसाती पत्रकार . ये अचानक राष्ट्रवादी हो गए हैं ये अचानक मोदी समर्थकों को भाने लगे हैं . मेरे मशविरा है तमाम मोदी भक्तों को, के इनसे बच के रहें . आज मोदीजी हैं .कल कोई और होगा . मगर ये लोग सलामत रहेंगे .क्योंकि इन्हें दूसरी तरफ झुकने में ज़रा सी भी तकलीफ नहीं होगी और वैसे भी सियासत तो चाटुकारिता पर ही चलती है . क्यों?