संपादकीय: यूपी के सबसे ईमानदार विधायक आलम बदी से एक मुलाक़ात, जो बदल देता है विचार

शम्स तबरेज़, सियासत न्यूज़ ब्यूरो।
लखनऊ: ये हैं विधायक आलम बदी उम्र तकरीबन 80 साल और  चौथी बार विधायक की रेस में दौड़ने को तैयारी में है। आज़मगढ़ की आवाम इनकी ईमानदारी की कसमें खाया करती है। इनके विरोधी भी इनकी तारीफ करते है। इनके आगे ईमानदारी भी एक ईमानदार नज़र आती है, महात्मा गाँधी से इनकी तुलना की जाए तो ये दूसरे गांधी हो सकते हैं।
आलम बदी उत्तर प्रदेश में आज़मगढ़ के निज़ामाबाद विधानसभा के मौजूदा विधायक हैंं और चौथी बार विधायक बनने की तैयारी में हैं। इनके कार्यों के चलते लोग इनको बिना मांगे वोट दिया करते हैं। आलम बदी सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर थे लेकिन जब ईमानदारी के आगे नौकरी आकर खड़ी हो गई तो उन्होने इस्तीफा देना मुनासिफ समझा और जनकल्याण में लग गए। आलम बदी के बारे उनके प्रशंसक और समाजवादी अल्पसंयक सभा प्रदेश सचिव शमीम अशरफ ने आलम बदी के जनसेवक के रूप से हमारा परिचय कराया। आलम बदी के पास न तो अपनी गाड़ी है और न ही कोई बंगला। आलम ​टीन करकट के मकान में रहते हैं और साईकल से यात्रा करते हैं।
आलम बदी उस व्यक्ति का नाम है, जिसका टेण्डर लेने में बड़े से बड़ा ठेकेदार कोसो दूर भागता है, क्योंकि आलम बदी के विधानसभा में एक नाली का भी टेण्डर कोई ठेकेदार लेता है, तो आलम बदी उसके सामने कुर्सी लगाकर सुबह से शाम तक बैठे रहते हैं, जब तक ठेकेदार उनके पसंद लायक कार्य न कर दे और वह संतुष्ट नहीं हो जाते। लेकिन इस ईमानदारी के चलते कोई भी ठेकेदार उनका कार्य लेने से कतराता है। आलम बदी जिस कार्य को पूरा कराते हैं। आलम बदी के कराए गए कामों में कोई भी सरकारी अधिकारी रोक—टोक या खामियां नहीं निकालता। आलम बदी की देखरेख में कराया गया कार्य टिकाऊ होता है।
आलम बदी सरकारी सुविधा नहीं लेते आलम बदी किसी भी सरकारी बंगले मे नहीं रहते वो अपने कमज़ोर और टीन—करकट के आशियाने में रहते है।
काली चाय पीते हैं और साधारण सा पैज़ामा कुर्ता पहनते हैं।
जब कहीं दौरे पर निकलना होता है, तो सुरक्षा कर्मी और उनके सचिव काफी पेरशान हो जाते हैं, क्योकि उनका कोई गारंटी नहीं होता कि वह गाड़ी से यात्रा करेंगे या साईकल लेकर ही चल देंगे।​ आलम बदी कहीं भी भीड़ में खो जाते हैं और उनके बगल के आदमी को भी भनक नहीं होती कि सामने से गुज़रने वाला आदमी एक विधायक है। उनके सुरक्षाकर्मी उनको खोजते रहते हैं, बाद में पता चलता है कि विधायक जी घर पहुंच गए हैं।


विधानसभा सत्र के दौरान जब उनको लखनऊ जाना होता है, तब वो दूसरे नेताओं की तरह हवाई जहाज़ से सफर नहीं करते और न ही किसी ट्रेन की प्रथम श्रेणी में यात्रा करते हैं, ​बल्कि आज़मगढ़ से ही बस में सवार हो जाते हैं। आवाम के बीच नोंकझोंक करते धक्का—मुक्की खाते लखनऊ और फिर आज़मगढ़ का रफर तय करते हैं।
उनके एक प्रशंसक ने सियासत से बात करते हुए बताया कि एक बार बस कंडक्टर उनसे टिकट लेने पर अड़ गया, उसको नहीं पता था, कि साधारण सा दिखने वाला ये बूढ़ा आदमी कोई विधायक है, बाद में किसी यात्री ने उनके पहचान की पुष्टि की। मुलायम सिंह यादव के काफी पसंदीदा माने जाते हैं और उनका कहा नेताजी भी टालने की हिम्मत नहीं करते।
आलम बदी के जैसा दूसरा मिलना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन आलम बदी का नाम नेताओं को आईना दिखाने के काफी है। जो नेता विधायक बनने से पहले ही दर्जनों गाड़ियों का लाव लश्कर लेकर चलते हैं और आलीशान ईमारतों में रहना अपना स्टेटस करार देते हैं, उनके लिए आलम बदी एक अच्छे और ईमानदार जनप्रतिनिधि होने का उदाहरण हैं।
सियासत की टीम जब आज़मगढ़ में पहुंची तब हमारे पास आलम बदी का डाटा मौजूद नहीं था, मैंने तत्काल दिल्ली में आज़मगढ़ के ही रहने वाले अपने मित्र वसीम आज़मी से फोन पर बात की, आलमबदी का डाटा एकत्र किया और चल दिया उनके आवास पर। जब सियासत की टीम आलम बदी के घर पहुंची तो सुबह का वक्त था और आलम बदी अपने आवास पर मौजूद थे। आलम बदी अचानक बाहर आए और पूछा किससे काम है हमें भी नहीं पता था कि सामने खड़ा आदमी एक विधायक है और यही आलम बदी हैं। जब हमे आभास हुआ कि यही आलम बदी हैं तो तुरन्त हमने अस्सलामो अलैकुम कहा और जब वालेकुम अस्सलाम का जवाब मिला तब बताया कि आपका इंटरव्यू चाहिए तो आलम बदी ने कहा देखो बेटा पहले चाय पियो और 11 मार्च के बाद आना तब थोड़ी मायूसी हुई, लेकिन किसी भी नेता के घर चाय पीना हमारे लिए एक नई बात थी क्योंकि नेताओं के घर की चाय और पानी पत्रकारिता के कलम को कमज़ोर बना देती है, लेकिन आलम बदी की पहली झलक ने हमे उनके घर की पेश की गई चाय पीने के मजबूर होना पड़ा। आलम बदी के साथ हमें बैठकर चाय पीने का मौका मिला तो मैने तुरंत अपने कैमरामैन को कैमरा आॅन करने का ईशारा दे दिया और माईक्रोफोने को चुपके से अपने पास रख लिया ताकि आलम बदी से जो बातें हो वो किसी इंटरव्यू से कम न हो। आलम बदी ने ​मुंझसे खुलकर बात की उनको भी नहीं पता था, कि अनजाने में उनका इंटरव्यू हो रहा है। खैर बात तो गई और जब सियासत ने फेसबुक पेज पर आलम बदी के इंटरव्यू का वीडियो जारी किया तो उसे देखने वालों की बाढ़ आ गई। लेकन आलम बदी ने एक पत्रकार के दिल में घर कर लिया और जब तक ​हमने पूर्वांचल कवर किया तब तक उनको याद किया। नेताओं की चापलूस नीति को देखकर अक्सर पत्रकार सारे नेताओं को चोर और लुटेरे ही मानते हैं लेकिन आलम बदी ने कहीं न कहीं इस विचार पर फिर से विचार करने के मजबूर किया है। मैं व्यक्तिगत तौर पर आलम बदी को उनकी ईमानदार, खुद्दारी और बेहतर काम के लिए उनको सलाम पेश करता हूं। (शम्स तबरेज़, लखनऊ ब्यूरो चीफ, ‘द सियासत डेली’)