अभिसार शर्मा का ब्लॉग- ‘आपकी नीयत पर शक़ है मैडम’

क्या ये बताने की जरूरत है कि देश मे फर्जी न्यूज़ यानि फेक न्यूज़ का सबसे ज्यादा फायदा किसको हुआ है ? क्या ये बताने की जरूरत है कि कासगंज मे किस दंगाई पत्रकार ने गलत बयानी और झूठ अपने शो मे प्रसारित किया था और उसके झूठ से खुद उसकी संस्था इतनी परेशान हो गई कि उन्हे मामले को संभालने के लिए एक अदद पत्रकार को जमीन पर भेजना पड़ा?

मकसद था कि कासगंज के सहारे ऐसा दोहराव पैदा हो, ऐसा ध्रुविकरण पैदा हो कि वोटर खुद हिंदू मुसलमान के आधार पर बंट जाए और क्या ये बताने की जरूरत है कि इसका फायदा सिर्फ और सिर्फ बीजेपी को होता है?

दंगा हो सो हो, तनाव हो सो हो, भाड़ मे जाए देश का सुख चैन। क्या मेरी ये चिंता बेमानी है ? बताईये न बिहार मे क्या हो रहा है? कैसे नियम कानून की धज्जियां उड़ा कर यात्राएं निकाली गईँ, माहौल को भड़काया गया और नतीजा आपके सामने है।

वो बिहार जिसमे साम्प्रदायिक दंगे न के बराबर होते थे, वहां मानो झड़ी से लग गई और क्या ये कहना गलत होगा कि बीजेपी का प्रौपगैंडा वार या जंग जो वो इन पत्रकारों और फर्जी भड़काऊ वेबसाईट्स के जरिए करती है, उसका असर सीधा सियासी तौर पर वोट के बंट जाने के तौर पर सामने आता है ?

Postcard और दैनिक भारत नाम की दो दंगा भड़काऊ ऐजेंसियां, इन्हे न सिर्फ बीजेपी के बड़े नेताओं का समर्थन हासिल है, अलबत्ता जब Postcard से जुड़े दंगाबाज महेश हेगड़े की गिरफ्तारी हुई, तब न सिर्फ पूरी मोदी भक्त मंडली बल्कि कई बीजेपी नेता औऱ सासंद उसके पक्ष मे उतर आए। यहां तक कि बीजेपी के सांसद के पैसे से खड़े हुए चैनल ने तो हेगड़े को पत्रकार तक बता दिया.

सूचना और प्रसारण मंत्री फेक न्यूज़ मे जो क्रान्ति लाने वाली थी, जिसे प्रधानमंत्री ने पत्रकारों मे आक्रोश देख कर धराशाई कर दिया और स्मृति ईरानी का सपना अधूरा रह गया। पत्रकरों पर लगाम लगाने का यही प्रयास बीजेपी की राजस्थान सरकार ने किया था वो भी चुनावी साल मे। उसमे बड़े अधिकारियों पर रिपोर्ट करने पर कई बंदिशें लगाई जा रही थीं।

स्मृतिजी भी यही हरकत चुनावी साल मे ही कर रही थीं.
मकसद साफ है कि जो झुका नहीं है उसे बरगलाओ. एक शिकायत के आधार पर आपकी मान्यता ( accredition) 15 दिन तक लटक जाए . बाद मे एनबीए और प्रेस काउंसिल फैसला करती रहेगी . सवाल ये नहीं कि फैसला तो पत्रकारों की ईकाई को करना है , सवाल ये कि आप संदेश क्या देना चाह रहे हैं.

सवाल ये कि इन हरकतों से सत्ता के खिलाफ रिपोर्ट करने वाले , कठिन सवाल करने वालों पर इसका क्या असर पड़ेगा . आधार मे कमियां बताने वाली रिपोर्ट के पत्राकार के खिलाफ आप एफआईआर दर्ज करवा देते हैं. कुछ दिनों मे सम्पादक हरीश खरे को इस्तीफा तक देना।

क्या ये बताने की जरूरत है कि मौजूदा सरकार मे पत्रकार को किन किन दबावों से गुज़रना पड़ रहा है . कैसे कैसे फोन काल्स आते हैं ? आपके एक एक शब्द एक एक बोली पर निगाह है। अगर ये सब न हो रहा होता तो स्मृतिजी की पहल पर विश्वास किया जा सकता था।

क्या ये फरमान उस पत्रकार के लिया था जो टीवी पर दंगा भड़काने का काम करता है ? नहीं.

क्या ये फरमान उन फर्जी दंगा भड़काऊ ऐजेंसियों के लिए है जो कथित तौर पर बीजेपी और सहयोग संस्थाओं की मदद से चल रही है, जिन्हे उनके नेता खुले आम समर्थन करते हैं ? नहीं।

आप TRUEPICTURE. IN नाम की वेबसाईट को ही ले लीजिए . ये वो वेबसाईट है दिसका हवाला सूचना प्रसारण मंत्री देती रहती है अखबारों और टीवी चैनल्स की खबरों को गलत साबित करने के लिए . बड़े बड़े मंत्री मसलन पीयुष गोयल , एमजे अकबर इसका हवाला देते हैं . क्या आप जानते हैं कि जब आप कनाट प्लेस मे इसके दफ्तर पहुंचते हैं तो वहां बैठे लोग कहते हैं कि ऐसी कोई वेबसाईट यहां से आपरेट नहीं करती . वेबसाईट के मालिक राजेश जैन जिन्होने 2014 मे मोदी के सोशियल मीडिया अभियान संभाला था वो इसपर जवाब नहीं देते ?

मेरा एक सीधा सा सवाल है कि जब आपके हितों को बाकायदा प्राईम टाईम मे प्रासारित कुछ पत्रकार कर रहे हैं , जब आपने आपसे सवाल करने वाले पत्रकारों के लिए हालात मुश्किल कर दिए हैं तो आपको ऐसे फरमानों की जरूरत क्या है .

मुद्दा नीयत का है. आपकी नीयत साफ नहीं है . आप वो हैं जो सवाल करने पर शिकायत कर देते हैं , आपके जवाब पर मुस्कुराने पर शिकायत कर देते हैं , लिहाज़ा आपके हर कदम पर शक पैदा होता है .

इस अविश्वास की खाई को पाटने क गम्भीर प्रयास कीजिए . जो आपके चाटुकार हैं वो आपके सत्ता से बाहर होने के बाद आपका साथ छोड़ देंगे . आप जब विपक्ष मे थे …तब ये चाटुकार कहां थे पत्रकारिता के मानचित्र पर . बोलिए ?

पत्रकार विपक्ष होता है . और मै आज भी विपक्ष मे हूं और उस वक्त भी जब आप विपक्ष मे थे …और तब भी जब आप सत्ता से बाहर होंगे।

(यह लेखक के अपने विचार है, वरिष्ठ टीवी पत्रकार अभिसार शर्मा के फेसबुक से लिया गया लेख है)