उत्तर प्रदेश में दो भाषाएँ सबसे अधिक प्रचलित हैं एक हिंदी और उसके बाद उर्दू. हालाँकि सबसे ज़्यादा प्रचलित तो इन दोनों भाषाओं का मिलाजुला रूप है.अगर बात उर्दू की करें तो लखनऊ समेत प्रदेश में कई ऐसे शहर हैं जहां इस भाषा के चाहने वाले बड़ी संख्या में हैं.
इसी को देखते हुए डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ट्रस्ट ने मांग की है कि राज्य निर्वाचन आयोग उर्दू ज़बान को मिले दूसरी राजभाषा के दर्जे को ध्यान में रखते हुए निकाय चुनाव में इसका इस्तेमाल करे. इस बारे में ट्रस्ट के अध्यक्ष अब्दुल नसीर नासिर ने राज्य निर्वाचन आयुक्त एसके अग्रवाल को ज्ञापन सौंपा है. पिछले कई सालों में ये मांग उठती रही है कि उर्दू ज़बान को सरकारी काम काज में ठीक से इस्तेमाल किया जाए ताकि जो लोग सिर्फ़ उर्दू जानते हैं उन्हें परेशानी ना हो.