मगर राजधानी के एमकेपी कॉलेज के छात्र संघ चुनाव में जिस तरह से एबीवीपी का सूपड़ा साफ हुआ है, उसने बीजेपी को सकते में डाल दिया है। मामला सिर्फ एक कॉलेज में किसी संगठन की हार या जीत से जुड़ा नहीं है। इसका विस्तार कहीं आगे तक है। बात निकाय, पंचायत, कैंट चुनाव से होते हुए लोकसभा चुनाव तक पहुंचनी है। इन स्थितियों के बीच, विधानसभा चुनाव में प्रचंड हार के बाद कांग्रेस को उसके छात्र संगठन एनएसयूआई ने मुस्कराने और उम्मीदों से भर जाने का मौका तो दे ही दिया है।
बीजेपी सरकार और संगठन दोनों के लिए विचार करने योग्य कई सारी बातें सामने हैं। सवाल भी कई हैं। क्या पांच महीने पुरानी सरकार के कामकाज छात्रों को पसंद नहीं आ रहे हैं ? क्या कॉलेजों में भगवा और सुधार के एजेंडे को लागू करने की कसरत के खिलाफ माहौल है, या फिर बीजेपी और उनके सहयोगी संगठनों के सपने बडे़ हैं और उस हिसाब से तैयारी छोटी है ?