नई दिल्ली: पिछले कुछ दिनों से पट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों को लेकर अब मोदी सरकार की नीति की आलोचना जोर पकड़ने लगी है। आम लोग पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार के समय पेट्रोल और डीजल पर वसूले जा रहे अपेक्षाकृत कम करों की तुलना अभी के समय के करों से करने लगे हैं।
लोग सवाल कर रहे हैं कि जब मनमोहन सरकार के अंतिम दिनों में कच्चा तेल 107 डॉलर प्रति बैरल तक चला गया था और अभी उसका दाम सिर्फ 80 डॉलर प्रति बैरल ही है। इसके बावजूद दिल्ली में पेट्रोल और डीजल तब के मुकाबले करीब साढ़े तीन रुपये और 13 रुपये प्रति लीटर महंगा बिक रहा है।
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बता दें कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 107 डॉलर प्रति बैरल होने के बावजूद मार्च 2014 में दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल 73 रुपये और डीजल 55 रुपये में मिल रहा था। इसकी दो वजहें थीं। पहली यह कि पेट्रोल और डीजल पर केंद्र सरकार तब केवल 9.48 और 3.56 रुपये (क्रमश:) का उत्पाद शुल्क वसूल रही थी। इसके अलावा उस समय डीजल पर प्रति लीटर 8.37 रुपये की सब्सिडी भी दी जा रही थी। इसका मतलब यह हुआ कि एक लीटर डीजल पर उसे करीब पांच रुपये का घाटा हो रहा था।
दूसरी ओर आज पेट्रोल पर साढ़े उन्नीस रुपये तो डीजल पर साढ़े पंद्रह रुपये का उत्पाद शुल्क वसूला जा रहा है। इस तरह मोदी सरकार मनमोहन सरकार की तुलना में एक लीटर पेट्रोल पर 10 रुपये ज्यादा कमा रही है जबकि डीजल में उसे पांच रुपये नुकसान के बजाय करीब 15 रुपये का फायदा हो रहा है।