तीन तलाक बिल जिस अंदाज़ में केंद्रीय सरकार ने लोकसभा में पास करवाया उसके बाद से कानून के माहरीन, जनता और पमुख हस्तियों की ओर से सरकार की नियत और काम करने के तरीके पर न सिर्फ लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं बल्कि उनके खिलाफ आवाज़ भी उठाई जा रही है।
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इसी संबंध में गुरुवार की शाम को इस्लाम जिमखाना, मरीन लाइन्स में एक बैठक आयोजन किया गया जिसमें वकीलों ने बिल की कमियों, पैदा होने वाले खतरे और नुकसान पर विचार किया। वकीलों ने अपने पाने अंदाज़ में कानूनी पहलुओं पर प्रकाश डाली और कई सवाल खड़े करके सरकार को भी घेरने की कोशिश की।
एडोवोकेट क़ाज़ी महताब हुसैनी ने कहा कि एक बैठक में 3 तलाक देना ठीक नहीं है, लेकिन इस संबंध से सरकार जो बिल ला रही है और जिस तरह उसमें एक बैठक में 3 तलाक़ देने वाले के लिए 3 साल की सज़ा का प्रस्ताव दी गई है तो क्या 7 फेरे लेने वालों के लिए 7 साल की सज़ा होगी? एडवोकेट क़ाज़ी महताब ने आकंडे की रौशनी में महिलाओं की स्थिति का खुलासा करते हुए बताया कि इस समय देश में 4 करोड़ से अधिक बेवाएं हैं, 20 करोड़ महिलाएं अछूत हैं, जबकि 20 लाख से अधिक महिलाओं को उनके पतियों ने इस अंदाज़ में छोड़ रखा है कि न तो अपने पतियों के साथ हैं और न ही उनको अलग क्या गया है।
इन हालात में सरकार उन महिलाओं के लिए क्या सोच रही है। उन्होंने सरकार की नियत पर सवाल उठाते हुए कहा कि अन्य मुद्दे के मुकाबले 3 तलाक के मामले सिर्फ नाम के हैं फिर भी उसे इस तरह पेश किया जा रहा है जैसे सबसे बड़ा और अहम यही मुद्दा हो। उसके अलावा अदालतों में जारी मामले से यह साफ होता है कि मुस्लिम महिलाओं से कहीं ज्यादा दुखी हिन्दू मां बहनें हैं।