इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अदालत के परिसर में स्थित मस्जिद को तीन महीने के अंदर हटाने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट के परिसर में बनी मस्जिद को अतिक्रमण बताते हुए अदालत ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को तीन महीने के अंदर मस्जिद को हटाकर कब्जा वापस करने का आदेश दिया।
चीफ जस्टिस डी बी भौंसिले और न्यायमूर्ति एमके गुप्ता की खंडपीठ ने एडवोकेट अभिषेक शुक्ला के जरिए दर्ज की गई याचिका पर यह फैसला सुनाया। अदालत ने मस्जिद की प्रबंधन कमीटी को दूसरी जगह जमीन के लिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को अर्जी देने और उसकी निर्माण आठ सप्ताह में करने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि भविष्य में हाईकोर्ट की जमीन पर पूजा या नमाज़ पढने की इजाजत नहीं दी जाएगी।
चीफ जस्टिस के उक्त फैसले पर प्रबंधन कमीटी की पैरवी कर रहे वकीलों में एक सीनियर वकील रवि किरण जैन ने प्रतिक्रिया ज़ाहिर करते हुए कहा कि यह सरासर ग़लत फैसला है। उन्होंने कहा कि जो तर्क हमने पेश किए थे उसमें ऐसे फैसले की कोई गुंजाईश ही नहीं थी। अदालत की ओर से किसी के आस्था को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए, अदालत से हमें एसी उम्मीद नहीं थी। आज जो हिंदुत्व का एजेंडा पूरे देश पर हावी है, इससे अदालत भी प्रभावित नज़र आ रही है।
इसके अलावा वेलफेयर पार्टी ऑफ़ इंडिया के राज्य के जनरल सेक्रेटरी जावेद मोहम्मद ने कहा कि यह फैसला जो चीफ जस्टिस डीबी भोंसले का है वह निष्पक्ष नहीं है। उक्त पीआईएल पर लंबी बहस कराना और यह फैसला संघी विचार को सामने रखते हुए लिया गया है। इस तरह के फैसले की हम निंदा करते हैं और कोर्ट से अपील करते हैं कि इस तरह के फैसले को वापस लिया जाए या दोबारा इस पर विचार किया जाए।
एडवोकेट के के राय ने कहा कि यह एडवोकेट स्वर्गीय नफीस काज़मी साहब का पुराना बंगला है। उन्होंने इस बंगले को मस्जिद के नाम पर वक्फ कर दिया और इस में जज भी नमाज़ पढने आते थे। उस समय हाईकोर्ट की इमारत का वजूद भी नहीं था। आज तक इस पर हाईकोर्ट ने कभी एतराज़ नहीं किया। लेकिन अचानक एक मामूली वकील जो योगी जी की सरकार में पीआईएल दायर कर दिया और जल्दबाजी में चीफ जस्टिस ने अपना फैसला सुना दिया, जो सरासर गलत है। 30 साल से हाईकोर्ट को पता नहीं था लेकिन अचानक उसको सारी जानकारी हो गई।