सोमवार को देर रात अफगानिस्तान के राज्य क़ंदूज़ के शहर दश्त आर्ची के मदरसे पर हुए एक हवाई हमले में मदरसे में शिक्षा हासिल कर रहे दर्जनों बच्चों की मौत हो गई। सोशल मीडिया पर चल रही खबरों के मुताबिक मरने वाले छात्रों की संख्या 100 के करीब है, जबकि अफगानिस्तान की सरकार का कहना है कि उस मदरसे में तालिबान की ख़ुफ़िया बैठक चल रही थी, जिसमें अहम तालिबानी नेता शामिल थे इसलिए वहां हमला करके तालिबानी आतंकवादियों को मार दिया गया।
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अफगानिस्तान की रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता जनरल मोहम्मद रादमनश का कहना है कि हमले के समय मदरसे में कोई छात्र मौजूद नहीं था और जो छात्र मरे हैं वह हवाई हमले के बाद होने वाली फायरिंग में मारे गए हैं, मगर क़ंदूज़ के जनता का कहना है कि अफगानिस्तान की सरकार का दावा बिलकुल झूठा है और जिस समय हवाई हमला हुआ उस समय मदरसे में कुरान हिफ्ज़ करने वाले छात्रों की दस्तारबंदी चल रही थी।
हमले में शहीद होने वाले बच्चों के माता पिता का कहना है कि उन के जिगर के टुकड़ों के शरीर पर गोलियों का निशान नहीं था, बल्कि हवाई हमले में मारे जाने के साक्ष्य था। गौरतलब है कि इस खबर को पश्चिमी मीडिया ने बिलकुल अहमियत नहीं दी और पूरी तरह से नजरअंदाज किया, अगर यही जालिमाना हरकत किसी एसी सरकार ने की होती जो अमेरिका की विरुद्ध है तो क्या पश्चिमी मीडिया का रवैया ऐसा ही होता?
पश्चिमी मीडिया की की चुप्पी की वजह यह है कि वह अगर इस हवाई हमले के खिलाफ शोर मचाता तो सारा आरोप अफगानिस्तान की सरकार के बजाय अमेरिका के सर जाता क्योंकि अफगानिस्तानी एयरफ़ोर्स के पास हवाई शक्ति के नाम पर कुछ हेलीकॉप्टर और ट्रांसपोर्ट विमान हैं, बाक़ी जो कुछ भी हवाई शक्ति है वह अमेरिका की नेतृत्व में वहां अपना कब्जा जमाने वाली नाटो के हाथों में है।