गोंडा: अब मैं डरने लगा हूँ!

जब-जब गोंडा के मृतक की तस्वीर सामने आती मैं पेज आगे को स्लाइड कर जाता, लोग मेसेज कर रहे की आपने उनपर कुछ लिखा कयों नहीं ? उन्हे कैसे बताऊँ कि दिल का सुकुन छीन चुका है, डर का आलम यह है की टीवी कई बरसों से नहीं देखा और अब फेसबुक बड़ी मुश्किल से लाॅग इन कर पा रहा हूँ,

कयोंकि अपने भाई बहनों के साथ सरेआम पिटाई, कत्ल, बलात्कार इत्यादी जैसी खबरें अब हर दिन कहीं न कहीं से सामने आ रही है, हाँ मैं डरता हूँ उस भीड़ के आतंक से जिसको खुन पीने की लत लग चुकी है, हाँ मैं डरता हूँ उस मिडिया समुह से जिसे टीआरपी की गंध सुंघने कि ऐसी लत लग चुकी है जिसमें दंगा-फसाद कत्ले-आम चीखो-पुकार देखने और सुनने की सारी शक्ति समाप्त हो चुकी है,

हाँ मैं डरता हूँ उन सियासतदानों के उस चेहरे से जो गिरगिट के बनिसबत 100 गुना तेजी से रंग बदलते हैं जिन्हे विदेशों में हुए किसी कत्ल पर आंसू बहाने का समय है परंतु अपने देश में हर दिन कोई न कोई इसका शिकार हो रहा, जिन्की नींद केरल में गाय कटने पर टुट जाती है पर रोजाना इन्सानों के कटने पर नहीं, जिन्हे तलाक़ मुस्लिम औरतों पर जुल्म लगता है परंतु राष्ट्रीय राजमार्ग पर सरेआम चार-चार मुस्लिम औरतों की असमतरेजी पर सब खामोश रहते हैं।

हाँ मैं डर रहा हूँ, उस समाज से जो आईएस द्वारा किये गए कत्ल का विडियो देख कर मचल जाते हैं उनका मन दया भावना से भर जाता है लेकिन अपने ही देश में कोई भीड़ किसी को पीट-पीटकर मार डालती, कोई भीड़ किसी दाढ़ी टोपी वाले से जबरन “जय श्रीराम” के नारे लगवाती और फिर इनसब का विडियो भी बनाती जिसे देखकर इन दयावान इंसानों के आंखे नम नहीं होती बल्कि खुशी होती है, ये जश्न तक मनाते हैं।

तो बोलिए मुझे डर कयों न लगे ? मैं कैसे देख सकता इन लहु से रंगे तसवीरों को, और फिर इन्हे देखकर लिखूं तो क्या लिखूं ? और किस किस के लिए लिखूं ? मोहसिन शेख के लिए लिखो तो “अख़लाक़” हो जाता है, अखलाक को इंसाफ मिला भी नहीं की हिमांचल में ज़ाहिद को कुचल दिया जाता है, उसका दर्द कम भी नहीं हुआ कि मोहम्मद मज़लूम और इनायतुल्लाह को पेड़ पर टांग कर हैंग टिल डेथ कर दिया जाता है, केस दर्ज होने से पहले ही बिजनौर , मेवात , में बहनों की चीखें और उनके बलात्कार हुए जिस्म को उठाए गाँव का दर्द सामने आ जाता है,

इसका किसी चैनल में खबर आने से पहले ही मिन्हाज़ को मार डाला जाता है उसकी 8 माह की बच्ची अपने बाप को भूली भी नहीं की नजीब को अगवा कर लिया जाता है और उसकी माँ बहन को सरेआम रोड पर घसीटा जाता है, उसकी माँ और बहन की आँखें सूखी ही नहीं थी की भोपाल में 8 मुसलमान कैदियों को पहले जेल से भगाया जाता और फिर घेर कर छलनी छलनी कर दिया जाता है,

इधर से उबरे नहीं की बंगाल पुलिस द्वारा संघी मानसिकता दिखाकर 18 वर्षीय फरदीन खान को पीटकर मार डाला जाता है , वहां के खून सूखे ही नहीं होते की बिहार झारखंड में मुस्लिम नाबालिग से गैंगरेप और पुरे गाँव द्वारा कत्ल की खबरें आ जाती, अभी पुलिस ने उसका केस दर्ज भी नहीं किया था की 60 वर्षीय बुजुर्ग पहलु खान को कुचल कर मार दिया जाता है,

इसी बीच मुजफ्फरनगर से लेकर कई जगहों पर दंगों में सैकड़ों मुस्लिम मार भी दिए जाते हैं, ये सब गिन भी नहीं पाते की झारखंड जमशेदपुर में 4 लोगों की हत्या हो जाती है, अभी उन्के आंसू रुके नहीं थे की बुलंदशहर के अलग-अलग हिस्सों में कई घटनाओं के साथ हाईवे पर एक परीवार का जीवन अंधेरी कोठरी में डाल दिया जाता है

जिसमें एक कत्ल और परीवार की चार महिलाओं से गैंगरेप, और अभी तो ये दर्द से हम उबरे भी नहीं की गोंडा में दो मुसलमानों को यह कहकर मार डाला गया की “टोपी वाले को मारो” , हाँ हाँ मैं डरता हूँ, और कौन इतनी हिम्मत वाला शख्स होगा जो रोजाना अपने भाईयों को बेकसूर ही मरता देख सकेगा ? कौन ऐसा भाई या बेटा होगा जो रोजाना अपनी बहनों माओं की असमतरेजियाँ के किस्से पढ़ पाएगा ? क्या यह नहीं लगता की सीरिया और फलस्तीन के लोग हमसे बेहतर हैं ?

कम से कम हमारी तरह शांत बैठकर एक और मौत का इंतेजार तो नहीं करते, सच में हम हांडी के पानी में पड़े उस मेंढक की तरह हैं जो हाँडी के गरम होते देख हाथ पैर नहीं मारता बल्कि अपने जिस्म को ठोड़ा ठोड़ा उस तपिश को सहने के लायक बनाता रहता है और अंत में जब वो हाँडी इतना गर्म हो जाता की मेंढक उसकी गर्मी सहन न कर पाए तो वह उसी में मर जाता है, कयोंकि उसने अपनी सारी तवानाई उस गर्म पानी में जीवित रहने में लगा दी थी।