मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक जारी, तीन तलाक़ अहम मामला

हैदराबाद। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तीन दिवसीय बैठक शहर में जारी है और इसमें तीन तलाक़ के मसले पर विस्तृत चर्चा की तैयारी है। महिलाओं और परिवार के हित को ध्यान मे रखकर बोर्ड ने मॉडल निकाहनामे में एक लाइन जोड़ी है, जिसमें शौहर ये वादा करेगा कि वो भविष्य में एक ही वक्त में तीन तलाक नहीं कहेगा। तलाक जरूरी होने पर वो एक वक्त में एक ही तलाक देगा ताकि परिवार टूटने की गुंजाइश न बने।

हालांकि बोर्ड एक साथ तीन तलाक को सामाजिक बुराई मानता है और इस पर सामाजिक स्तर पर ही पाबंदी लगाने के पक्ष में है। बता दें कि बोर्ड पहले ही तलाक के मामले में कोड ऑफ कंडक्ट जारी कर एक साथ तीन तलाक देने वाले का सामाजिक बहिष्कार करने का एलान कर चुका है। बैठक में बोर्ड को मुस्लिमों के व्यक्तिगत कानूनों के संरक्षण और इसके रोडमैप को अंतिम रूप देने की उम्मीद है।

आइए हम इस विवाद के बारे में कुछ अतीत देखें। भारतीय मुस्लिमों के अपमान के लिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और उलेमा जिम्मेदार हैं। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक के वैकल्पिक तरीके (एक पूर्व इस्लामिक अभ्यास) के लिए पूछा था। जिस पर बोर्ड और उलेमा ने सही तरीके को दोहराते हुए तीन तलाक़ को खत्म करने का उपाय रखा। केन्द्र के द्वारा लाए गए तीन तलाक बिल के मसौदे पर पहले ही बोर्ड आपत्ति दर्ज करा चुका है।

बोर्ड ने जहां तीन तलाक को धर्म से जुड़ा मामला बताया था वहीं, सरकार की तरफ से कहा गया कि यह बिल किसी धर्म से नहीं बल्कि महिलाओं के हित के लिए है। वे यह सोचने में उलझन में थे कि सुप्रीम कोर्ट उन्हें कानून प्रवर्तन अधिकार देगा। वे स्थिति की गंभीरता से अनजान थे। वे सोच रहे थे कि सुप्रीम कोर्ट इसे अवैध ठहराएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

तत्पश्चात तीन तलाक़ पर संभावित प्रतिकूल फैसले का मुकाबला करने के लिए असदुद्दीन ओवैसी, मौलाना अरशद मदनी आदि ने इस रणनीति को लेकर आवाज उठाई। यही कारण है कि जज बोर्ड और उलेमा से वैकल्पिक व्यवस्था के लिए पूछ रहे थे। इसका नतीजा यह है कि अब आरएसएस मुस्लिमों के लिए तलाक का कानून बनाएगी। कानूनों का विरोध करने वाली कोई भी पार्टी मुस्लिम पार्टी बन जाएगी।