यूपी में महागठबंधन की कवायद फिर शुरू हो गयी है। अखिलेश यादव और मायावती गठबंधन को लेकर काफ़ी सहज दिख रहे हैं। इसी बीच कांग्रेस को महागठबंधन में शामिल करने की पहल शुरू हो चुकी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा था कि कांग्रेस को महागठबंधन से दूर रखने का मतलब बीजेपी को फायदा पहुंचाने जैस है।
मार्च में फूलपुर और गोरखपुर के उपचुनाव के नतीजे आने के बाद एक-दूसरे को मुबारकबाद देने के बहाने बीएसपी चीफ मायावती और एसपी मुखिया अखिलेश यादव ने पहली बार औपचारिक रूप से मुलाकात कर रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलाने की कोशिश की थी। उसके बाद दोनों के दरम्यान वन-टु-वन कोई मुलाकात नहीं हुई। मई महीने में कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के मौके पर जरूर दोनों नेताओं ने मंच साझा किया था।
अगर एसपी-बीएसपी गठबंधन होता है तो उसकी तस्वीर क्या होगी? सबसे ज्यादा जो चिंता दोनों पार्टियों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को खाए जा रही है कि वह यह है कि आखिर दोनों नेता गठबंधन को लेकर कोई कदम क्यों नहीं बढ़ा रहे, बात वहीं क्यों अटकी हुई है, जहां मार्च में शुरू हुई थी।
बीएसपी चीफ ऐसी किसी भी स्थिति से बचना चाहती हैं जैसा 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव के मौके पर कांग्रेस के साथ हो गया था। कांग्रेस ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित को अपना चुनावी चेहरा बनाते हुए तत्कालीन समाजवादी सरकार से हिसाब मांगते हुए की थी, लेकिन चुनाव के वक्त दोनों पार्टियों को गठबंधन करना पड़ गया। मायावती को लगता है कि गठबंधन के ऐलान के बाद चुनाव के मौके पर अगर यह किसी वजह से परवान नहीं चढ़ पाया तो स्थिति ज्यादा शर्मनाक होगी।
अभी बहुत सारे पत्ते खुलने बाकी हैं। मायावती को इस वक्त गैर एनडीए खेमे में प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल माना जा रहा है। मायावती को लगता है कि अपनी उम्मीदवारी पुख्ता करने के लिए भविष्य में न जाने किस तरह गठबंधन की जरूरत पड़े, ऐसे में वह फौरी तौर पर समाजवादी पार्टी के साथ अपने को लॉक कर भविष्य की संभावनाओं को खत्म नहीं करना चाहती। फिलहाल वह अपने सारे विकल्पों को खुला रखना चाहती हैं।