कोर्ट ने कहा कि जिस समाज में महिलाओं का सम्मान नहीं होता है, उसे सिविलाइज्ड नहीं कहा जा सकता। कोई भी मुस्लिम पति ऐसे तरीके से तलाक नहीं दे सकता है, जिससे समानता और जीवन के मूल अधिकारों का हनन होता हो। कोई भी पर्सनल लॉ संविधान के दायरे में ही लागू हो सकता है।
वहीं दूसरी तरफ फतवे को लेकर कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई फतवा मान्य नहीं है, जो न्याय व्यवस्था के विपरीत हो। साथ ही साथ दहेज उत्पीड़न से जुड़ा एक मामले को भी कोर्ट ने रद्द कर दिया।
दरअसल, वाराणसी की तीन तलाक से पीड़ित सुमालिया नाम की एक महिला ने पति अकील जमील के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज कराया था।
तलाक के बाद पति ने कोर्ट से याचिका दायर कर मुकदमे को रद्द करने की मांग की थी। लेकिन जस्टिस एस. पी. केशरवानी की एकल पीठ ने इन टिप्पणियों के साथ याचिका खारिज कर दी।
इसके बाद कोर्ट ने एसीजेएम वाराणसी के समन आदेश को सही करार देते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया यह आपराधिक केस बनता है। फतवे को कानूनी बल प्राप्त नहीं है, इसलिए इसे जबरन थोपा नहीं जा सकता है। यदि इसे कोई लागू करता है तो अवैध है और फतवे का कोई वैधानिक आधार भी नहीं है।