बांसवाड़ा : नामुमकिन कुछ नहीं है, ज़िद,जुनून और कुछ करने का ज़ज़्बा होना चाहिए । जो हौसला रखता है वो अपनी मंज़िल पर पहुंचता है, क़ामयाबी उसके क़दम चूमने को बेताब रहती है।
अर्शिया अंजुम एक ऐसी ही ज़िद्दी और जुनूनी लड़की है । अर्शिया ने एक बार फिर साबित कर दिया कि मुस्लिम लड़कियां किसी से कम नहीं हैं बस उन्हें मौका मिलना चाहिए ।
राजस्थान के बांसवाड़ा की रहने वाली अर्शिया अंजुम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में वैज्ञानिक बन एक मिसाल क़ायम की है. वो यहां सैटेलाइट उपकरणों में काम आने वाली तकनीक बनाने की दिशा में काम कर रही हैं. अर्शिया फिलहाल इसरो के अहमदाबाद सेंटर में कार्यरत हैं.
अर्शिया अंजुम साधारण परिवार से ताल्लुक़ रखती हैं. अर्शिया के पिता आबिद खान बांसवाड़ा शहर में एक निजी हॉस्पिटल में एंबुलेंस चलाकर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं, अर्शिया की अम्मी उज़्मा खान एक हाउस वाइफ़ हैं.
अर्शिया ने मीडिया से बातचीत में बताया कि यह एक ज़िम्मेदारी का काम है. साथ ही इसमें बड़ी गोपनीयता रखनी होती है. एक ही तकनीकी पर काम करते हुए कभी-कभी 24 घंटे हो जाते हैं और पता ही नहीं चलता कि दूसरा दिन हो गया है.
स्पेस सेंटर में जब वर्किंग होती है, तो पूरा फोकस टारगेट पर होता है. लेकिन इस बात की संतुष्टि होती है कि हम जो कुछ कर रहे हैं, वह आने वाले समय में देश का भविष्य होगा.
अर्शिया ने मुस्लिम समाज की बेटियों की शिक्षा को लेकर कहा कि हर बेटी में इस बात की जिद होनी चाहिए कि वह कुछ कर सकती है। साथ ही उसके माता-पिता को प्रोत्साहित करना चाहिए।
पिता आबिद खान कहते हैं कि भले ही हमनें संघर्ष कर अपनी बेटी को आगे बढ़ाया लेकिन कोई पूछता है कि आपकी बेटी क्या करती है, तब यह कहते हुए गर्व महसूस होता है कि मेरी बेटी इसरो की वैज्ञानिक है।