AMU में आरक्षण को लेकर गुरुवार को अहम बैठक, जामिया को भी समन देने की तैयारी

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग को आरक्षण नहीं देने का मामला विश्वविद्यालय प्रशासन पर भारी पड़ सकता है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग वहां आरक्षण लागू कराने को लेकर प्रतिबद्ध है। आयोग ने इसके लिए गुरुवार को यूनिवसिर्टी के कुलपति को दिल्ली तलब किया है। वहीं आयोग इसके बाद जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय पर भी शिकंजा कसने की तैयारी कर रहा है।

आरक्षण लागू करने को लेकर प्रतिबद्ध है आयोग

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष डॉ. राम शंकर कठेरिया ने साफ कह दिया है कि वे वहां आरक्षण लागू कराने को लेकर प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने कहा कि पार्लियामेंट एक्ट के तहत अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने पिछले 10 सालों में 7 हजार करोड़ से ज्यादा का सरकारी अनुदान लिया है। अगर विश्वविद्यालय फंडिंग ले सकता है, तो संविधान की व्यवस्था के मुताबिक दलितों को आरक्षण क्यों नहीं दे सकता।

उन्होंने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। यह एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है और भारत के संविधान के अधीन पारित सभी आदेश-निर्देश यहां लागू हैं। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय की 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने 1968 में अजिज बाशा केस में सर्वसम्मति से फैसला दिया है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।

अदालत ने नहीं माना अल्पसंख्यक का दर्जा

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय इलाहाबाद हाईकोर्ट न्यायमूर्ति अरुण टंडन ने 2005 के फैसले का हवाला देकर बचने की कोशिश कर रहा है। यूनिवर्सिटी का कहना है कि उसे अनुच्छेद 15 (5) के तहत अल्पसंख्यक संस्थानों को अनुच्छेद 30 के अन्तर्गत संवैधानिक आरक्षण से छूट प्राप्त है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में केंद्र सरकार के 1981 के संशोधन अधिनियम को भी रद्द करते हुए कहा था कि यह संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है।

हालांकि अदालत ने 1967 के फैसले को सही मानते हुए फैसला दिया था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय नहीं है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 1981 में एएमयू एक्ट में संशोधन कर उसे अल्पसंख्यक संस्थान करार दिया था।