अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के वाइस चांसलर (रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल) जमीरूद्दीन शाह ने यूनिवर्सिटी के अंदर भाजपा के मौजूज़ा प्रोग्राम (proposed program) पर सख्त एतराज जताया है। HRM स्मृति ईरानी को लिखे अपने खत में उन्होंने प्रोग्राम की वजह से फिर्कावाराना तनाव फैलने की खदशा जताया है।
दरअसल भाजपा एएमयू को जमीन वक्फ करने वाले इलाके के जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह की 1 दिसंबर को होने वाली सालगिरह मनाना चाह रही है, लेकिन यूनिवर्सिटी का मानना है कि इस प्रोग्राम की वजह से फिर्कावाराना माहौल बिगड सकता है, लिहाजा इसकी इज़ाज़त नहीं दी जा सकती।
इस मुद्दे को लेकर जुमेरात के रोज़ राजा महेंद्र प्रताप की सालगिरह को लेकर अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) और उत्तर प्रदेश भाजपा टकराव की राह पर आगे बढ रहे हैं। भाजपा ने एएमयू को जमीन वक्फ करने वाले जाट राजा महेन्द्र प्रताप सिंह की एक दिसंबर को 128वीं सालगिरह मनाने की खाहिश जताया था जिसका एएमयू ने एहतिजाज किया है।
एएमयू ने इस बारे में Human Resource Development Minister स्मृति ईरानी को खत लिखकर आगाह किया है कि मुकामी भाजपा लीडर यूनिवर्सिटी कैम्पस में फिर्कावाराना माहौल को बिगाड़ने का बढावा दे रहे हैं।
यूनिवर्सिटी के चांस्लर लेफ्टिनेंट जनरल जमीरूद्दीन शाह ने खत में कडे लफ्ज़ों में मुकामी भाजपा लीडरों की जाट राजा महेन्द्र प्रताप की सालगिरह मनाने की मांग का एहतिजाज किया है।
उन्होंने लिखा कि इस प्रोग्राम से एएमयू में स्टूडेंट्स के बीच तनाव हो सकता है। चांसलर ने मामले को सुलझाने के लिए भाजपा लीडरों और अखिल भारतीय विद्याथी परिषद् (एबीवीपी) से भी बात की है, लेकिन भाजपा लीडर अपने रूख पर अडे हुए हैं। उनका कहना है कि अगर यूनिवर्सिटी इसकी इज़ाज़त नहीं देती है, तो वे एहतिजाजी मुज़ाहिरा करेंगे। इस मामले में एएमयू के प्रोफेसर्स का कहना है कि मामले का सियासी रंग दिया जा रहा है।
सभी जानते हैं कि यूनिवर्सिटी की तामीर राजा महेन्द्र समेत हजारों लोगों की वक्फ की गई जमीन पर किया गया है। इसकी वजह से किसी एक की सालगिरह मनाना और दूसरों की अनदेखी करना ठीक नहीं होगा। कौन थे राजा महेन्द्र राजा महेन्द्र अलीगढ इलाके के जाट वंश के राजा थे।
उन्होंने आजादी की लडाई में भी हिस्सा लिया था। 1915 में उन्होंने अफगानिस्तान की दारुल हुकूमत काबुल में अराज़ी हुकूमत की तश्कील किये थे जिसके तहत खुद को सदर , मौलवी बरकतुल्लाह को वज़ीर ए आज़म और मौलवी अबिदुल्लाह को वज़ीर ए दाखिला बनाया ऐलान किया था।
साथ ही ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जिहाद छेड दिया था। आजादी के बाद वह दूसरी लोकसभा में आज़ाद एमपी भी चुने गए। उन्हें 1932 में नोबेल अमन अवार्ड के लिए नामज़द भी किया गया। मीरूद्दीन शाह ने भाजपा और उसके तालिब ए इल्म की तंज़ीम एबीवीपी के लीडरों के साथ एक बैठक भी की थी, लेकिन कोई हल नहीं निकला। बैठक के बाद एम एएमयू ने साफ किया कि वह इस प्रोग्राम के लिए इज़ाज़त नहीं दे सकता है।
बैठक के दौरान एएमयू इंतेज़ामिया ने भाजपा और एबीवीपी से कहीं और प्रोग्राम मुनाकिद करने के लिए भी कहा, जिसे मंजूर नहीं किया गया। शाह का यह कहना है कि एएमयू के ज्यादातर तालिब ए इल्म भी इस प्रोग्राम की ताइद में नहीं हैं। इस मामले पर अब सियासत भी तेज हो गई है। भाजपा ने एएमयू के इस फैसले की मुखालिफत किया है, वहीं समाजवादी पार्टी समेत कई दूसरी पार्टियां प्रोग्राम के एहतिजाज में उतर आए हैं।