फिल्म ‘मुल्क’ में अनुभव सिन्हा ने हिन्दू-मुस्लिमों के बीच विभाजन को दर्शाया है

एक ऐसे समय में जब मनुष्य द्वारा गायों का सम्मान किया जा रहा है, जबकि पत्रकारों और विद्वानों की हत्या की जा रही है, देश भर में विश्वविद्यालयों पर हमला किया जा रहा है ऐसे वक़्त में अनुभव सिन्हा के मुल्क देश के संविधान और न्यायिक कार्यवाही में विश्वास को दोहराया हैं।

लेखक-निर्देशक अनुभव सिन्हा की फिल्म ‘मुल्क’ में वकील बनी तापसी जब आतंकवाद के शक में आरोपी बनाए गए मुसलमान चरित्र मुराद अली मोहम्मद का रोल निभाने वाले ऋषि कपूर से पूछती है, ‘एक आम देशप्रेमी कैसे फर्क साबित करेगा दाढ़ी वाले मुराद अली मोहम्मद में और उस दाढ़ीवाले टेरेरिस्ट में? कि आप एक अच्छे मुसलमान हैं, आतंकवादी नहीं? आप देश के प्रति अपने प्रेम को कैसे साबित करेंगे?’ तो फिल्म का किरदार ऋषि ही नहीं बल्कि दर्शक भी बहुत कुछ सोचने पर मजबूर हो जाता है।

इसमें कोई शक नहीं कि लेखक-निर्देशक अनुभव सिन्हा की ‘मुल्क’ आज के दौर की सबसे ज्यादा जरूरी फिल्म बन पड़ी है। अनुभव फिल्म में हम (हिंदू) और वो (मुसलमान) के बीच के विभाजन की ओर ध्यान आकर्षित करके आज के धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य पर करारा प्रहार करते हैं।

इसकी शुरुआत बनारस के एक खुशहाल मुसलमान परिवार से होती है, जहां वकील मुराद अली मोहम्मद (ऋषि कपूर) अपने हिंदू पड़ोसियों के साथ मेल-मिलाप से रहता है। इस परिवार का एक दिलचस्प किरदार है, उनकी वकील बहू आरती मोहम्मद (तापसी पन्नू) जो लंदन से अपने ससुराल वालों से मिलने आती है।

कहानी में टर्निंग पॉइंट तब आता है, जब अली मोहम्मद के भतीजे शाहिद( प्रतीक बब्बर) की शिनाख्त एक आतंकी हमले के जिम्मेदार आतंकवादी के रूप में होती है और तब पूरे परिवार को आतंकवादी मान लिया जाता है। परिवार की जिंदगी रातों-रात बदल जाती है।

शाहिद के पिता बिलाल (मनोज पाहवा) को इस आतंकी हमले का साजिशकर्ता मानकर गिरफ्तार कर लिया जाता है। सम्मानित वकील मुराद अली मोहम्मद को भी आरोपी बनाया जाता है। इस परिवार को आतंकवादी साबित करने के लिए सरकारी वकील संतोष आनंद (आशुतोष राणा) और पुलिस अफसर दानिश जावेद (रजत कपूर) कमर कस लेते हैं।

असल में दानिश जावेद ही वह पुलिस अफसर है, जिसने शाहिद का एनकाउंटर किया था। अब मुराद अली मोहम्मद के पास अपने व अपने परिवार को निर्दोष साबित करने और अपने खोए हुए सम्मान को दोबारा पाने के अलावा और कोई चारा नहीं रह जाता। वह खुद अपने केस की पैरवी के लिए उठ खड़ा होता है, मगर कोर्ट में उसकी देशभक्ति और उसके मुसलमान होने को लेकर जिस तरह के सवाल उठाए जाते हैं।

उन्होंने अपनी फिल्म के जरिए ऐसे मुद्दों और विषय पर प्रश्न किए हैं, जो आपके और हमारे जेहन में एक अरसे से दबे हुए हैं और हमारी सोच को कुंठित किए जा रहे हैं, मगर कोई भी इस पर संवाद नहीं करना चाहता। उन्होंने फिल्म में जेहाद के असली अर्थ की व्याख्या करते हुए बता दिया है कि उसका मतलब आतंकवाद नहीं बल्कि स्ट्रगल होता है।

फिल्म में विभाजन की राजनीति पर भी प्रकाश डाला गया है। कदाचित यह पहली बार है, जब लेखक-निर्देशक ने दर्शाया है कि किसी परिवार में पैदा हुआ आतंकी भले पुलिस की गोलियों का शिकार होकर अपने अंजाम तक पहुंच जाए, मगर उसके बाद उसके परिवार पर क्या बीतती है?

मुराद अली मोहम्मद के रूप में ऋषि कपूर ने अपने रोल को बेहद ही संयमित और प्रभावशाली ढंग से जिया है। उन्होंने अपनी केंद्रीय भूमिका को कहीं भी कमतर नहीं होने दिया है। आतंकवादी करार देकर अपनी देशभक्ति को साबित करने का दर्द उन्होंने बखूबी बयान किया है।

बिलाल के रूप में मनोज पाहवा की बेबसी और मासूमियत दर्शकों को गहराई तक जज्बाती कर देती है। उन्होंने अपने करियर का बेहतरीन अभिनय किया है। तापसी पन्नू ने आरती मोहम्मद के रूप में एक बहू और वकील दोनों पक्षों को लाजवाब अंदाज में दर्शाया है।

सरकारी वकील के रूप में आशुतोष राणा ने उम्दा अभिनय अदायगी की है। तापसी और आशुतोष दोनों के बीच कोर्ट रूम ड्रामा दर्शकों की तालियों का हकदार साबित होता है।

शाहिद के रूप में प्रतीक अपनी छाप छोड़ जाते हैं। फिल्म के अन्य किरदारों में नीना गुप्ता, प्राची पंड्या शाह और अन्य कलाकरों ने अपने किरदारों को ईमानदारी से निभाया है। संगीत के मामले में ‘ठेंगे से’ और ‘पिया सामने’ जैसे गाने विषय के अनुरूप हैं।