नजरिया: ट्रम्प और किम जोंग की मुलाक़ात, जीत किसकी?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प आज ख़ुशी से फूले नहीं समा रहे हैं, उनको लगता है कि उनकी नार्थ कोरिया के प्रमुख किम जोंग के साथ सिंगापूर में होने वाली मुलाक़ात को तारीख में हमेशा याद रखा जाएगा, लेकिन अमेरिकियों की मानसिकता को जानने वाले लोगों को पता है कि अमेरिकियों के साथ किया जाने वाला कोई अन्तर्राष्ट्रीय अनुबंध कोई हैसियत नहीं रखता, क्योंकि दूसरा राष्ट्रपति आकर उसको बदल देगा या फिर उस अनुबंधनामे पर इतनी धुल डाल देगा कि वह भूतकाल के तहखाने का हिस्सा बन जाए।

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जरा सोचिए, ईरान के साथ किये गए परमाणु समझौते का क्या हुआ? फिलिस्तीनियों के अधिकार दिलवाने के लिए कैंप डेविड और ऑस्लो में जो अनुबंध अमेरिकियों ने कराए थे उनका क्या अंजाम हुआ? पेरिस के पर्यावरण समझौते से पिछले साल अमेरिका बाहर क्यों निकला? इस मुलाक़ात से बिलकुल पहले ट्रम्प ने जी-7 देशों के साथ होने वाले अनुबंध का क्या हश्र किया?

क्यों कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के लिए ट्रम्प ने आपत्तिजनक शब्द कहे? अमेरिका का हर राष्ट्रपति अपनी मर्जी और अपनी सलाहियत के तहत फैसले करता है इसी लिए वह नया इतिहास लिखने के बजाय खुद ही तारीख के पन्नों पर रोशनाई की शीशी अंडेलेता रहेगा।बहरहाल डोनल्ड ट्रम्प को मौक़ा मिल ही गया है कि वह अपनी पीठ थपथपायें, हालाँकि उसके असल हकदार किम जोंग उन हैं, जिन्होंने अपनी शक्ति के बिल पर अमेरिका जैसी शक्ति को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया है।