याकूब की फांसी के ख़िलाफ़ थे साल्वे, अब ‘देशभक्त’ कैसे?

इंटरनैशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने पाकिस्तान में कैद भारतीय नागरिक कुलभूषण यादव की फांसी की सजा पर अंतिम फैसला आने तक रोक लगा दी तो भारत का पक्ष रखने वाले वकील हरीश साल्वे का चारों ओर गुणगान होने लगा। सोशल मीडिया के धुरंधरों के लिए हरीश प्रखर राष्ट्रवाद के अपराजित योद्धा की प्रतिमूर्ति लगने लगे। चारों ओर साल्वे की दलीलों की चर्चा होने लगी। खासकर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा 1 रुपए फीस लेने का खुलासा उनके राष्ट्रवादी चरित्र का प्रमाणपत्र साबित हुआ। लेकिन क्या आप जानते हैं कि 12 मार्च 1993 में मुंबई में 1 दर्जन से अधिक स्थानों पर हुए सीरियल बम ब्लास्ट के मुख्य दोषियों में शामिल याकूब मेमन को जब 15 वर्षों की सुनवाई के बाद फांसी की सजा सुनाई गई तो हरीश साल्वे ने क्या कहा था?

हरीश ने एक यूएस ज्यूरिस्ट के हवाले से कहा था, ‘The Supreme Court is final not because it is right, but it is right because it is final.’ जब सुप्रीम कोर्ट ने मेमन को फांसी की माफी देने से इनकार कर दिया तो साल्वे ने कहा था कि वह सुप्रीम कोर्ट की राय से इत्तेफाक नहीं रखते।

पीएम मोदी अगर आज कोई ऐसा कदम उठाते हैं जिससे लोगों को कठिनाई होती है या कोई ऐसी बात कह देते हैं जो प्रधानमंत्री पद की गरिमा के लिए अशोभनीय कही जा सकती है, तो उसका विरोध करने पर उनके अंधभक्त ‘राष्ट्रद्रोही’ की उपाधि से नवाजने लगते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गुजरात दंगा पीड़ितों की ओर से पक्ष रखते समय जब साल्वे पर तहलका मैगजीन द्वारा तत्कालीन प्रदेश सरकार (मोदी सरकार) से ‘डीलिंग’ का आरोप लगाया गया तो उन्होंने कहा, ‘मैं नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के बुरे कामों के खिलाफ केस लड़ रहा हूं।’ आज वह देशभक्त नंबर 1 हैं। यानी मोदी के अंधभक्त उनकी इस बात से सहमत हैं कि मोदी और उनकी गुजरात सरकार ने बुरे काम किये थे। ऐसा मैं इसलिए लिख रहा हूं कि यदि कोई एक बार यह कह देता है कि उसकी पत्नी को भारत में किसी भी कारण से डर लगता है तो उसकी फिल्मों का आजीवन बहिष्कार हो जाता है, वह जिस कंपनी को प्रमोट कर रहा होता है, उसका बहिष्कार कर दिया जाता है, उसे ‘देशद्रोही’ करार दिया जाता है। और अगर वही लोग किसी को आज देशभक्त कह रहे हैं तो जाहिर है कि उसने जीवन में कभी कुछ गलत नहीं कहा होगा, कुछ बुरा नहीं किया होगा।

हाल ही में जब एनडीटीवी चैनल पर ‘देश के लिए खतरा उत्पन्न करने वाली रिपोर्टिंग’ के आरोप में बैन लगने की बात हुई तो सारे ‘राष्ट्रवादी’ कह रहे थे कि जो एनडीटीवी देखेगा, जो उसके पक्ष में बोलेगा-लिखेगा वह देशद्रोही होगा। निश्चय ही, मैं भी इस बात से सहमत हूं कि देश सबसे पहले होना चाहिए। लेकिन मेरे प्यारे राष्ट्रवादियों! यही साल्वे साहब तो एनडीटीवी की ओर से कोर्ट पहुंच गए थे। तब तो यह भी देशद्रोही हुए। फिर आखिर इतनी जल्दी ‘देशभक्त’ वाली श्रेणी में कैसे आ गए?

याद करिए 6 जून 2011 की वह काली रात… केन्द्र सरकार से भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून की मांग के साथ एक सन्यासी भगवा वस्त्र पहनकर अनशन कर रहा था। आधी रात को दिल्ली पुलिस ने बाबा रामदेव के समर्थन में बैठी भीड़ पर जमकर लाठी-डंडे चलाए। दरअसल, वे डंडे दिल्ली पुलिस नहीं बल्कि केन्द्र में बैठी तत्कालीन कांग्रेस सरकार चला रही थी। मामला जब कोर्ट में पहुंचा तो दिल्ली पुलिस की ओर से हरीश साल्वे खड़े थे। यानी अगर आसान शब्दों में कहें तो कांग्रेस के दमनकारी रवैये का बचाव करने के लिए हरीश साल्वे सामने आए थे।

सलमान खान का वह ‘हिट ऐंड रन’ वाला ओपन ऐंड शट केस याद है? सबको पता था कि गलती किसकी है लेकिन कोर्ट ने सलमान को बरी कर दिया। पता है सलमान की पैरवी कौन कर रहा था? जवाब है- हरीश साल्वे।

दिसंबर 1984 में हुआ भोपाल गैस कांड याद है? मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3,787 लोगों की गैस से मरने वालों के रूप में पुष्टि की थी। अन्य अनुमान बताते हैं कि 8000 लोगों की मौत तो दो सप्ताह के अंदर ही हो गई थी और लगभग 8000 लोग रिसी हुई गैस से फैली बीमारियों से मारे गये थे। 2006 में सरकार द्वारा दाखिल एक शपथ पत्र में माना गया था कि रिसाव से करीब 5 लाख 58 हजार 125 लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए और आंशिक तौर पर प्रभावित होने की संख्या लगभग 38 हजार 478 थी। 3 हजार 900 लोग तो बुरी तरह प्रभावित हुए और पूरी तरह अपंगता के शिकार हो गये थे।

 

दिसंबर 1984 में हुआ भोपाल गैस कांड याद है? मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3,787 की गैस से मरने वालों के रूप में पुष्टि की थी। अन्य अनुमान बताते हैं कि 8000 लोगों की मौत तो दो सप्ताहों के अंदर हो गई थी और लगभग अन्य 8000 लोग तो रिसी हुई गैस से फैली बीमारियों से मारे गये थे। 2006 में सरकार द्वारा दाखिल एक शपथ पत्र में माना गया था कि रिसाव से करीब 5,58,125 सीधे तौर पर प्रभावित हुए और आंशिक तौर पर प्रभावित होने की संख्या लगभग 38,478 थी। 3,900 लोग तो बुरी तरह प्रभावित हुए एवं पूरी तरह अपंगता के शिकार हो गये थे। हादसे के लिए जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड के भारत में चेयरमैन केशब महिंद्रा थे। भोपाल गैस त्रासदी के बाद यूनियन कार्बाइड केस की सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में उन्होंने केशब महिंद्रा का पक्ष रखा था। कोर्ट ने महिंद्रा समेत यूनियन कार्बाइड के सात अधिकारियों के ख़िलाफ़ ग़ैर-इरादतन हत्या के आरोपों को ख़ारिज़ कर दिया था। इसके ख़िलाफ सरकार ने ‘क्यूरेटिव पिटिशन’ डाली की थी, जिसमें महिंद्रा की पैरवी साल्वे ने की थी।

मैं एक वकील के तौर पर साल्वे की दलीलों और उनकी वकालत का सम्मान करता हूं। लेकिन क्या किसी केस के लिए सिर्फ 1 रुपए ले लेना उन्हें देशभक्ति का सर्टिफिकेट दे सकता है?

ये लेख नव भारत टाइम्स से लिया गया है और  लेखक के निजी विचार है