ASI सर्वेक्षण: गायब हो गए 24 ऐतिहासिक स्मारके, शेर शाह की बंदूके

लोकसभा में पूछे गए प्रश्नों के जवाब में संस्कृति मंत्री ने बताया कि देश में कुल संरक्षित स्मारकों की संख्या 3,686 हैं। 14 रक शहरीकरण विकास से प्रभावित हुए हैं। 12 जलाशयों व बांधों की चपेट में आ गए। केवल 24 स्मारक ऐसें हैं जो लापता हैं। जबकि 2009 में लापता स्मारकों की संख्या 35 बताई गईं थीं।

अलग-अलग पार्टियों के 10 सांसदों द्वारा पूछे एक ही सवाल के जवाब में जानकारी देते हुए बताया कि नौ वर्षों में खोज और पहचान अभियान के तहत 11 लापता स्मारकों को ढूंढ निकाला गया है। इनमें से एक अलमोड़ा स्थिति कुटुम्बरी देवी मंदिर भी शामिल है।

मंदिर गिरने की वजह से पास के गांव वाले अवशेषों को अपने पास ले आए और उन्हें मंदिर का रूप दे दिया। आज वो मंदिर उसी गांव में संरक्षित है। इस बात की जानकारी एएसआई के वेबसाइट पर देहरादून सर्किल के पुरातत्वविदों ने दी है।

शेर शाह सूरी की बंदूकों का पता अपर असम के सादिया स्थित चपकखुवा में 2014 में चला। इसी तरह पिछले दशक में जम्मू और कश्मीर एवं कर्नाटक में दो स्मारक लापता बताए गए थे लेकिन अब उन्हें ढूंढ निकाला गया है।

लोहित में तांबे का मंदिर और पुणे में यूरोपियन कब्रों सहित कुछ अन्य स्मारमकों की पहचान करने में भी पुरातत्वविदों को सफलता मिली हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश और मध्य भारत व अन्य राज्यों में कई स्मारक लापता बताए गए हैं। यूपी में लापता स्मारकों की संख्या 2009 के आठ से बढ़कर 10 हो गई है।

इनटैक दिल्ली के पूर्व संयोजक एके मेनन का कहना है कि रखरखाव सही तरीके से न होने के कारण कुछ स्मारक लापता हो गए। कुछ शहरीकरण की प्रक्रिया में विलीन हो गए जिसके बारे में लोग जानकारी नहीं देते।

उन्होंने इससे साफ है कि देश में ताजमहल की तरह सभी स्मारक सुरक्षित नहीं और और सरकार को ऐसे स्मारकों की चिंता करने की जरूरत है। तय है कि जिनका रखरखाव ठीक से नहीं होता है वो अतिक्रमण और उपेक्षा के शिकार हो जाते हैं।

जो स्मारक आज भी लापता हैं उनकी पहचान के लिए व्यापक स्तर पर जांच की आवश्यकता है। कुछ मामलों में प्रशिक्षित कर्मचारियों का अभाव जिम्मेदार रहा है।

एएसआई एंटीक्विटीज के निदेशक डीएन डिमरी का कहना है कि विकास की प्रक्रिय में स्मारकों के गिरने व अन्य कारणों से पता भी बदल गए हैं। अलमोड़ा का कुटुम्बरी देवी मंदिर की खोज इसी के प्रमाण हैं।

जहां पर मंदिर के ढहने के बाद अवशेषों को गांववालों ने मंदिर र का रूप दे दिया। ऐसी स्थिति में मंदिर का खसरा नंबर भी बदल जाता है। कुछ का पता इसलिए भी नहीं लग पा रहा है कि उनके खसरा नंबर सदियों के दौरान बदल चुके हैं।

सौजन्य- पत्रिका