असम में बीस लाख मुस्लिम खो देंगे नागरिकता

असम में मुसलमानों की आबादी क़रीब 34 फ़ीसदी है, उनमें अधिकतर बंगाली नस्ल के मुसलमान हैं जो बीते सौ सालों के दौरान यहां आकर आबाद हुए हैं। ये लोग बेहद ग़रीब, अनपढ़ और अप्रशिक्षित खेतीहर मज़दूर हैं। उनके पास सन 1941 से अब तक के सभी दस्तावेज़ मौजूद हैं, लेकिन उन्हें बांग्लादेशी क़रार दिया गया है। उन्हें फ़ॉरेनर्स ट्राइब्यूनल में अब साबित करना है कि वो बांग्लादेश नहीं हैं।

हिंदू संगठन आरएसएस, सत्ताधारी पार्टी भाजपा और उसकी सहयोगी स्थानीय पार्टियों का कहना है कि असम में लाखों ग़ैरक़ानूनी बांग्लादेशी शरणार्थी आकर बस गए हैं। चुनाव आयोग ने बीते दो साल से मतदाता सूची में उन लोगों को ‘डी-वोटर’ यानी संदेहास्पद नागरिक लिखना शुरू कर दिया है जो नागरिकता के दस्तावेज़ या सबूत नहीं पेश कर सके। ग़ैर क़ानूनी बांग्लादेशी बाशिंदों की पहचान के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में असम के सभी नागरिकों की एक सूची तैयार की जा रही है।

‘नेशनल रजिस्टर फ़ॉर सिटीजंस’ यानी एनआरएस की अंतिम सूची जून में जारी की जाएगी। एआरएस के प्रमुख प्रतीक हाजेला ने बताया कि नागरिकों की इस सूची में उन लोगों को शामिल नहीं किया जाएगा जिन्हें डी-वोटर या विदेशी क़रार दिया गया है। वो कहते हैं कि सभी नागरिकों के वंशानुक्रम की जांच हो रही है। इसके अलावा 29 लाख औरतों ने पंचायत के प्रमाण पत्र दिए हैं उनकी भी गहराई से जांच की जा रही है।

प्रतीक का कहना है कि इसके नतीजे में नागरिकता और राष्ट्रीयता से कितने लोग बाहर हो जाएंगे ये कहना मुश्किल है। सिविल सोसायटी और मानवाधिकारों के लिए काम कर रहे संगठनों का कहना है कि नागरिकता की अंतिम सूची जारी होने के बाद लाखों मुसलमान बेवतन हो सकते हैं।

जस्टिस फ़ोरम के अब्दुलबातिन खंडकार कहते हैं कि डी-वोटर्स और ‘घोषित विदोशी’ की संख्या करीब पांच लाख है और उनके बच्चों की संख्या पंद्रह लाख होगी। ये सभी सूची में शामिल नहीं होंगे। हमे आशंका है कि कम से कम बीस लाख बंगाली नस्ल के बाशिंदे नागरिकता और राष्ट्रीयता से वंचित हो जाएंगे। बीते महीने नागरिकों की पहली सूची जारी हुई थी। कचहार ज़िले के हनीफ़ ख़ान ने सूची आने के बाद आत्महत्या कर ली थी।