गुवाहाटी। सोमवार को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की बैठक के बाद नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 पर असमिया बहुसंख्यक ब्रह्मपुत्र घाटी और बंगाली-वर्चस्व वाली बराक घाटी के लोगों के बीच झुकाव स्पष्ट हो गया। जेपीसी की पांच दिवसीय यात्रा के पहले दिन में ब्रह्मपुत्र घाटी के बिलों के खिलाफ आने वाले संगठनों और व्यक्तियों का भारी बहुमत देखा गया।
विवाद यह है कि यदि विधेयक पारित हो जाता है, तो असम में विशेष रूप से बांग्लादेश से प्रवासियों के साथ बाढ़ आ जाएगी। यहां तक कि बीजेपी के सहयोगी एजीपी का मानना है कि बिल के पारित होने से असमिया लोगों की हिस्सेदारी खड़ी हो जाएगी। राजनीतिक दलों और व्यक्तियों सहित 135 संगठनों ने यहां दिनभर परामर्श के दौरान अपने विचार प्रस्तुत किए।
असम समझौता आधार होना चाहिए जिस पर विदेशी लोगों का पता लगाना चाहिए और निर्वासित होना चाहिए। एजीपी अध्यक्ष ने कहा कि यह बिल असमिया लोगों के लिए गंभीर खतरा पैदा करेगा।
कृषि मंत्री अतुल बोराहम ने कहा कि एक क्षेत्रीय पार्टी के रूप में ऐसा होने की अनुमति नहीं देंगे। यह बिल बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता को तेजी से ट्रैक करना चाहता है।
इसे 2016 में लोकसभा में रखा गया था, लेकिन विशेष रूप से तृणमूल कांग्रेस के सांसदों से विपक्ष का सामना करना पड़ा। पूर्व मुख्यमंत्री और एजीपी विधायक प्रफुल्ल कुमार महंत ने ज्ञापन को अलग से प्रस्तुत किया।
महंत ने कहा कि प्रस्तावित संशोधन नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) को अद्यतन करने की पूरी प्रक्रिया को ‘निराश’ करेगा।